राढ़
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संज्ञा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
राढ़ ^१ वि॰ [हिं॰ राड़] दे॰ 'राड़' । उ॰— तुलसी तेरी भलाई अजहू बूझैं । राढ़उ राउत होत फिरि कै जूझै ।— तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ५४६ । यौ॰—राढ़ रोर । उ॰— ऐसेउ साहब की सेवा सों होत चोर रे । आपनी ना बूझि ना कहे को राढ़ रोर रे ।— तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ४९६ ।
राढ़ ‡ ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ राटि (= लड़ाई)] रार । झगड़ा । उ॰— उन्हीं के किए सब धंधा गंदा हुआ । वह देतीं तो यह राढ़ क्यों बढ़ती ।— दुर्गाप्रसाद मिश्र (शब्द॰) ।