विक्षनरी:आयुर्वेद शब्दावली

विक्षनरी से
  • आयुर्वेद -- आयुर्वेद शब्द दो शब्दों 'आयु' और 'वेद' से मिलकर बना है। आयु का अर्थ होता है 'जीवन' और वेद मतलब 'विज्ञान' होता है। अर्थात आयुर्वेद का अर्थ जीवन-विज्ञान या आयुर्विज्ञान होता है।
  • अग्नि -- भौमाग्नि, दिव्याग्नि, जठराग्नि
  • अनुपान -- जिस पदार्थ के साथ दवा सेवन की जाए। जैसे जल , शहद
  • अपथ्य -- त्यागने योग्य, सेवन न करने योग्य
  • अनुभूत -- आज़माया हुआ
  • असाध्य -- लाइलाज
  • अजीर्ण -- बदहजमी
  • अभिष्यन्दि -- भारीपन और शिथिलता पैदा करने वाला, जैसे दही
  • अनुलोमन -- नीचे की ओर गति करना
  • अतिसार -- बार बार पतले दस्त होना
  • अर्श -- बवासीर
  • अर्दित -- मुंह का लकवा
  • अष्टांग आयुर्वेद -- कायचिकित्सा, शल्यतन्त्र, शालक्यतन्त्र, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, भूतविद्या, रसायनतन्त्र और वाजीकरण।
  • आत्मा -- पंचमहाभूत और मन से भिन्न, चेतनावान्‌, निर्विकार और नित्य है तथा साक्षी स्वरूप है।
  • आम -- खाये हुए आहार को 'जब तक वह पूरी तरह पच ना जाए', आम कहते हैं। अन्न-नलिका से होता हुआ अन्न जहाँ पहुँचता है उस अंग को 'आमाशय' यानि 'आम का स्थान' कहते हैं।
  • आयु -- आचार्यों ने शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग को आयु कहा है : सुखायु, दुखायु, हितायु, अहितायु
  • आहार -- खान-पान
  • इन्द्रिय -- कान, त्वचा, आँखें, जीभ, और नाक
  • उपशय -- अज्ञात व्याधि में व्याधि के ज्ञान के लिए, तथा ज्ञात रोग में चिकित्सा के लिए, उपशय का प्रयोग किया जाता है। ये छः हैं- १) हेतुविपरीत, २) व्याधिविपरीत ३) हेतु-व्याधिविपरीत ४) हेतुविपरीतार्थकारी ५) व्याधिविपरीतार्थकारी तथा ६) हेतु-व्याधिविपरीतार्थकारी
  • उष्ण -- गरम
  • उष्ण्वीर्य -- गर्म प्रकृति का
  • ओज -- जीवनशक्ति
  • औषध -- (१) द्रव्यभूत (जांगम, औद्भिद, पार्थिव) तथा (२) अपद्रव्यभूत (उपवास, विश्राम, सोना, जागना, टहलना, व्यायाम आदि)
  • कष्टसाध्य -- कठिनाई से ठीक होने वाला
  • कल्क -- पिसी हुई लुग्दी
  • क्वाथ -- काढ़ा
  • कर्मज -- पिछले कर्मों के कारण होने वाला
  • कुपित होना -- वृद्धि होना, उग्र होना
  • काढ़ा करना -- द्रव्य को पानी में इतना उबाला जाए की पानी जल कर चौथाई अंश शेष बचे , इसे काढ़ा करना कहते हैं
  • कास -- खांसी
  • कोष्ण -- कुनकुना गरम
  • गरिष्ठ -- भारी
  • ग्राही -- जो द्रव्य दीपन और पाचन दोनों काम करे और अपने गुणों से जलीयांश को सुखा दे, जैसे सोंठ
  • गुरु -- भारी
  • चतुर्जात -- नागकेसर, तेजपात, दालचीनी, इलायची।
  • त्रिदोष -- वात, पित्त, कफ ; इन तीनों दोषों का सम मात्रा (उचित प्रमाण) में होना ही आरोग्य और इनमें विषमता होना ही रोग है।
  • त्रिगुण -- सत, रज, तम।
  • त्रिकूट -- सौंठ, पीपल, कालीमिर्च।
  • त्रिफला -- हरड़, बहेड़ा, आंवला।
  • त्रिस्कन्ध -- आयुर्वेद की तीन प्रधान शाखाएं : हेतु, लिंग, औषध
  • तीक्ष्ण -- तीखा, तीता, पित्त कारक
  • तृषा -- प्यास, तृष्णा
  • तन्द्रा -- अधकच्ची नींद
  • दाह -- जलन
  • दीपक -- जो द्रव्य जठराग्नि तो बढ़ाये पर पाचन-शक्ति ना बढ़ाये, जैसे सौंफ
  • धातु -- रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र  : ये सात धातुएँ हैं।
  • निदान -- कारण, रोग उत्पत्ति के कारणों का पता लगाना
  • निदानपञ्चक -- निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय, सम्प्राप्ति
  • नस्य -- नाक से सूंघने की नासका
  • पंचांग -- पांचों अंग, फल फूल, बीज, पत्ते और जड़
  • पंचकर्म -- वमन, विरेचन, अनुवासन बस्ति, निरूह बस्ति तथा नस्य
  • पंचकोल -- चव्य,छित्रकछल, पीपल, पीपलमूल और सौंठ
  • पंचमूल बृहत् -- बेल, गंभारी, अरणि, पाटला , श्योनक
  • पंचमूल लघु -- शलिपर्णी, प्रश्निपर्णी, छोटी कटेली, बड़ी कटेली और गोखरू। (दोनों पंचमूल मिलकर दशमूल कहलाते हैं )
  • परीक्षित -- परीक्षित, आजमाया हुआ
  • पथ्य -- सेवन योग्य
  • परिपाक -- पूरा पाक जाना, पच जाना
  • प्रकोप -- वृद्धि, उग्रता, कुपित होना
  • पथ्यापथ्य -- पथ्य एवं अपथ्य
  • प्रज्ञापराध -- जानबूझ कर अपराध कार्य करना
  • पाण्डु -- पीलिया रोग, रक्त की कमी होना
  • पाचक -- पचाने वाला, पर दीपन न करने वाला द्रव्य, जैसे केसर
  • पिच्छिल -- रेशेदार और भारी
  • बल्य -- बल देने वाला
  • बृंहण -- पोषण करने वाला ; विभिन्न लक्षणों के अनुसार दोषों और विकारों के शमनार्थ विशेष गुणवाली औषधि का प्रयोग, जैसे ज्वरनाशक, विषघ्न, वेदनाहर आदि।
  • भावना देना -- किसी द्रव्य के रस में उसी द्रव्य के चूर्ण को गीला करके सुखाना। जितनी भावना देना होता है, उतनी ही बार चूर्ण को उसी द्रव्य के रस में गीला करके सुखाते हैं।
  • भैषज्यकल्पना -- औषधि-निर्माण की प्रक्रिया जैसे स्वरस (जूस), कल्क या चूर्ण (पेस्ट या पाउडर), शीत क्वाथ (इनफ़्यूज़न), क्वाथ (डिकॉक्शन), आसव तथा अरिष्ट (टिंक्चर्स), तैल, घृत, अवलेह आदि तथा खनिज द्रव्यों के शोधन, जारण, मारण, अमृतीकरण, सत्वपातन आदि।
  • मन -- अणुत्वं चैकत्वं द्वौ गुणौ मनसः स्मृतः॥
  • मूर्छा -- बेहोशी
  • मदत्य -- अधिक मद्यपान करने से होने वाला रोग
  • मूत्र कृच्छ -- पेशाब करने में कष्ट होना, रुकावट होना
  • योग -- नुस्खा
  • योगवाही -- दूसरे पदार्थ के साथ मिलने पर उसके गुणों की वृद्धि करने वाला पदार्थ, जैसे शहद।
  • रसायन -- रोग और बुढ़ापे को दूर रख कर धातुओं की पुष्टि और रोगप्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि करने वाला पदार्थ, जैसे हरड़, आंवला
  • रेचन -- अधपके मल को पतला करके दस्तों के द्वारा बाहर निकालने वाला पदार्थ, जैसे त्रिफला, निशोथ।
  • रुक्ष -- रूखा
  • रोगीपरीक्षा -- आप्तोपदेश, प्रत्यक्ष, अनुमान और युक्ति
  • लंघन -- शरीर में लघुता लाने के लिए की जाने वाली चिकित्सा : (१) संशोधन (२) शमन
  • लघु -- हल्का
  • लिंग -- रोग की जानकारी के साधन : पूर्वरूप, रूप, संप्राप्ति तथा उपशयानुपशय
  • लेखन -- शरीर की धातुओं को एवं मल को सुखाने वाला , शरीर को दुबला करने वाला, जैसे शहद (पानी के साथ)
  • वामक -- उल्टी करने वाले पदार्थ, जैसे मैनफल
  • वातकारक -- वात (वायु) को कुपित करने वाले अर्थात बढ़ाने वाले पदार्थ।
  • वातज -- वात (वायु) दोष के कुपित होने पर इसके परिणामस्वरूप शरीर में जो रोग उत्पन्न होते हैं वातज अर्थात वात से उत्पन्न होना कहते हैं।
  • वातशामक -- वात (वायु) का शमन करने वाला , जो वात प्रकोप को शांत कर दे। इसी तरह पित्तकारक, पित्तज और पित्तशामक तथा कफकारक, कफज और कफशामक का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। इनका प्रकोप और शमन होता रहता है।
  • विदाहि -- जलन करने वाला
  • विशद -- घाव भरने व सुखाने वाला
  • विलोमन -- ऊपर की तरफ गति करने वाला
  • वाजीकारक -- बलवीर्य और यौनशक्ति की भारी वृद्धि करने वाला, जैसे असगंध और कौंच के बीज।
  • वृष्य -- पोषण और बलवीर्य-वृद्धि करने वाला तथा घावों को भरने वाला
  • व्याधि -- रोग, कष्ट
  • शरीर -- समस्त चेष्टाओं, इंद्रियों, मन और आत्मा के आधारभूत पंचभूतों से निर्मित पिंड को 'शरीर' कहते हैं।
  • शस्त्रकर्म -- छेदन, भेदन, लेखन, वेधन, एषण, आहरण, विस्रावण, सीवन
  • शमन -- शांत करना (पिपासा, क्षुत, आतप, पाचन, दीपन, उपवास, व्यायाम के प्रयोग द्वारा)
  • शामक -- शांत करने वाला
  • शीतवीर्य -- शीतल प्रकृति का
  • शुक्र -- वीर्य
  • शुक्रल -- वीर्य उत्पन्न करने एवं बढ़ाने वाला पदार्थ, जैसे कौंच के बीज
  • श्वास रोग -- दमा
  • शूल -- दर्द
  • शोथ -- सूजन
  • शोष -- सूखना
  • षडरस -- पाचन में सहायक छह रस - मधुर , लवण, अम्ल, तिक्त, कटु और कषाय।
  • सर -- वायु और मल को प्रवृत्त करने वाला गुण
  • स्निग्ध -- चिकना पदार्थ, जैसे घी, तेल।
  • सप्तधातु -- शरीर की सात धातुएं - रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र।
  • सन्निपात -- वात, पित्त, कफ - तीनो के कुपित हो जाने की अवस्था, प्रलाप
  • स्वरस -- किसी द्रव्य के रस को ही स्वरस (खुद का रस ) कहते हैं।
  • संक्रमण -- छूत लगना, इन्फेक्शन
  • संशोधन -- पंचकर्म (वमन, विरेचन, अनुवासन बस्ति, निरूह बस्ति तथा नस्य) द्वारा दोषो और मल को बाहर लाना
  • साध्य -- इलाज के योग्य
  • हिक्का -- हिचकी
  • हेतु -- रोगों का कारण : असात्म्येन्द्रियार्थसंयोग, प्रज्ञापराध तथा परिणाम

सन्दर्भ[सम्पादन]

इन्हें भी देखें[सम्पादन]

बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]