खोज परिणाम

  • रूप काहू ब्रज बाल को । पद्माकर (शब्द॰) । कभी कभी केवल पादपूरणार्थक भी प्रयोग होता है । जैसे, भारत कहो तो आज तुम क्या हो वहो भारत अहो ।-भारत॰, पृ॰ ८५ ।...
    २ KB (१०२ शब्द) - २२:३२, २१ मई २०१७
  • तीर्थ । गय ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ गज, प्रा॰, गय] हाथी । उ॰—सुरगण सहित इंद्र ब्रज आवत धवल बरन ऐरावत देख्यो उतरि गगन ते धरनि धँसावत । अमरा शिव रवि शशि चतुरानन...
    २ KB (११६ शब्द) - २२:५९, २१ मई २०१७
  • ।—जायसी (शब्द॰) । २. विलंब । देर । उ॰—बेर न कीजे बेग चलि, बलि जाउँ री बाल ।— ब्रज॰ ग्रं॰, पृ॰ ६ । यौ॰—बेर बखत=समय कुसमय । मौके बैमोके । जरूरत के समय । उ॰—अपने...
    ३ KB (२४१ शब्द) - १६:५४, १६ अगस्त २०२१
  • शिष्ट बोलचाल की भाषा तो मानी गई, पर देश को साहित्य की सामान्य काव्यभाषा वह ब्रज (जिसके अंतर्गत राजस्थानी भी आ जाती है) और अवधी रही । इस बीच में मुसलमान खड़ी...
    ९ KB (६५७ शब्द) - १७:४३, २४ मार्च २०२४
  • श्रीवल्लभ नखचंद्र छटा बिनु हो हिय माँझ अँधेरो' । इनकी गणना 'अष्टछाप' अर्थात् ब्रज के आठ महाकवियों और भक्तों में थी । अष्टछाप में ये कवि गिने गए हैं—कुंभनदास...
    ८ KB (५६० शब्द) - २२:०६, २६ मई २०१६