भय
संज्ञा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
भय ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. एक प्रसिद्ध मनोविकार जो किसी आनेवाली भीषण आपत्ति अथवा होनेवाली भारी हानि की आशंका से उत्पन्न होता है और जिसके साथ उस आपत्ति अथवा हानि से बचने की इच्छा लगी रहती है । भारी अनिष्ट या विपत्ति की संभावना से मन में होनेवाला क्षोभ । डर । भीति । खौफ । विशेष—यदि यह विकार सहसा और अधिक मान में उत्पन्न हो तो शरीर कांपने लगता है, चेहरा पीला पड़ जाता है, मुँह से शब्द नहीं निकलता और कभी कभी हिलने डुलने तक की शक्ति भी जाती रहती है । मुहा॰—भय खाना = डरना । भयभीत होना । यौ॰—भयभीत । भयानक । भयंकर ।
२. बालकों का वह रोग जो उनके कहीं डर जाने के कारण होता है ।
३. निऋति के एक पुत्र का नाम ।
४. द्रोण के एक पुत्र का नाम जो उसकी अभिमति नामक स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुआ था ।
५. कुब्जक पुष्प । मालती ।
भय पु ^२ वि॰ [सं॰ भू (=होना)] दे॰ 'भया' या 'हुआ' । उ॰— भय दस मास पूरि भइ धरी । पद्मावत कन्या अवतारी ।—जायसी (शब्द॰) ।