अपर
दिखावट
विशेषण
अपर (apar)
- जो पर न हो। पहला।
- पिछला। जिससे कोई पर न हो।
- अन्य। दूसरा। भिन्न। कोई और।
- उ॰ – अपर नाम उड़ुगण बिमल,बसे भक्त उर व्योम ।— भक्तमाल (श्री॰) पृ॰ ४९८।
- जिससे बढ़कर या बराबर का अन्य न हो (को॰)।
- जो दूसरा या पराया न हो। स्व- पक्षीय। अपना।
- उ॰—को गिनै अपर पर को गिनै । लोह छोह छक्के बरन ।—पृ॰ रा॰ ३३।२६।
- अश्रेष्ठ। जो पर अर्थात् श्रेष्ठ न हो। निकृष्ट। साधारण (को॰)।
- पश्चिमी। पश्चिम दिशा का (को॰)।
- दूर का। दूरवर्ती। जो पास न हो (को॰)।
संज्ञा
अपर (apar) m
- हाथी का पिछला भाग, जंघा, पैर आदि।
- रिपु। शत्रु।
- न्यायशास्त्र में सामान्य के दो भेदे में से एक।
- भविष्यत् काल या उस काल में किया जानेवाला कार्य [को॰]।
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अपर ^१ वि॰ [सं॰]
१. जो पर न हो । पहला । पूर्व का ।
२. पिछला । जिससे कोई पर न हो ।
३. अन्य । दूसरा । भिन्न । और । उ॰— अपर नाम उड़ुगण बिमल,बसे भक्त उर व्योम ।— भक्तमाल (श्री॰) पृ॰ ४९८ ।
४. जिससे बढ़कर या बराबर का अन्य न हो (को॰) ।
५. जो दूसरा या पराया न हो । स्व- पक्षीय । अपना । उ॰—को गिनै अपर पर को गिनै । लोह छोह छक्के बरन ।—पृ॰ रा॰ ३३ ।२६ ।
६. अश्रेष्ठ । जो पर अर्थात् श्रेष्ठ न हो । निकृष्ट । साधारण (को॰) ।
७. पश्चिमी । पश्चिम दिशा का (को॰) ।
८. दूर का । दूरवर्ती । जो पास न हो (को॰) ।
अपर ^२ संज्ञा पुं॰
१. हाथी का पिछला भाग, जंघा, पैर आदि ।
२. रिपु । शात्रु ।
३. न्यायशास्त्र में सामान्य के दो भेदे में से एक ।
४. भविष्यत् काल या उस काल में किया जानेवाला कार्य [को॰] ।