नर
व्युत्पत्ति १
[सम्पादन]संज्ञा
[सम्पादन]नर (nar) m
- आदमी। पुरुष। मर्द। मनुष्य।
- खुँटी जो छाया आदि जानने के लिये खड़े बल गाड़ी जाती है। शंकु।
- एक देव योनि।
- विशेष – इसे रायकपुर, रोहिस, सेंधिया और गंधेल भी कहते है। विशेष – दे॰ 'गंधेल'।
- दोहे का एक भेद जिसमें १५ गुरु और १८ लघु होते है। #: जैसे – विश्वंभर नामै नहीं, मही विश्व में नाहिं। दुइ मँह झुठी कौन है, यह संशय जिय माहिं। — (शब्द॰)।
- छप्पय का एक भेद जिसमें १० गुरु और १३ लघु होते हैं।
- शतरंज का मोहरा (को॰)।
- परम पुरुष। पुराण पुरुष (को॰)।
- आदमी की लंबाई का परिमाण। पुरुष।
- सेवक।
- गय राक्षस के पुत्र का नाम।
- सुधृति के पुत्र का नाम।
- भवन्मन्य के पुत्र का नाम।
- घोड़ा (को॰)।
- जीवात्मा (को॰)।
- (हिन्दू मज़हब) विष्णु।
- (हिन्दू मज़हब) शिव। महावेद।
- (हिन्दू मिथ) अर्जुन।
- (हिन्दू मिथ) धर्मराज और दक्षप्रजापति की एक कन्या से उत्पन्न एक पौराणिक ऋषि।
- विशेष – पौराणिक गाथानुसार यह ईश्वर के अंशावतार माने जाते थे । ये और नारायण दोनों भाई थे। विशेष – दे॰ 'नरनारायण'।
व्युत्पत्ति २
[सम्पादन]विशेषण
[सम्पादन]नर (nar)
व्युत्पत्ति ३
[सम्पादन]संज्ञा
[सम्पादन]नर (nar) m
- जल। पानी।
- उ॰ – पुत्री वनिक सराप दिय भर पुहकर नर लोइ। असुर होई बीसल नृपति नरपल- चारी सोई। — पृ॰ रा॰, १। ४९१।
व्युत्पत्ति ४
[सम्पादन]नल पर आधारित
संज्ञा
[सम्पादन]नर (nar) m
- नल जिसमें से होकर पानी जाता है।
- उ॰ – नर की अरु नर नीर की एकै गति कर जोइ। जेतो नीचे ह्वै चले तेतो ऊँचे होइ। — बिहारी (शब्द॰)।
व्युत्पत्ति ५
[सम्पादन]नरकट से
संज्ञा
[सम्पादन]नर (nar) m
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]नर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. विष्णु ।
२. शिव । महावेद ।
३. अर्जुन ।
४. धर्मराज और दक्षप्रजापति की एक कन्या से उत्पन्न एक पौराणिक ऋषि । विशेष—पौराणिक गाथानुसार यह ईश्वर के अंशावतार माने जाते थे । ये और नारायण दोनों भाई थे ।—विशेष—दे॰ 'नरनारायण' ।
५. एक देव योनि ।
६. पुरुष । मर्द । आदमी ।
७. एक प्रकार का क्षुप । विशेष—इसे रायकपुर, रोहिस, सेंधिया और गंधेल भी कहते है । विशेष—दे॰ 'गंधेल' ।
८. वह खुँटी जो छाया आदि जानने के लिये खड़े बल गाड़ी जाती है । शंकु ।
९. सेवक ।
१०. गय राक्षस के पुत्र का नाम ।
११. सुधृति के पुत्र का नाम ।
१२. भवन्मन्य के पुत्र का नाम ।
१३. दोहे का एक भेद जिसमें १५ गुरु और १८ लघु होते है । जैसे—विश्वंभर नामै नहीं, मही विश्व में नाहिं । दुइ मँह झुठी कौन है, यह संशय जिय माहिं ।—(शब्द॰) ।
१४. छप्पय का एक भेद जिसमें १० गुरु और १३ लघु होते हैं ।
१५. मनुष्य । आदमी (को॰) ।
१६. शतरंज का मोहरा (को॰) ।
१७. परम पुरुष । पुराण पुरुष (को॰) ।
१८. आदमी की लंबाई का परिमाण । पुरुष ।
१९. घोड़ा (को॰) ।
२०. जीवात्मा (को॰) ।
नर ^२ वि॰ जो (प्राणी) पुरुष जाति का हो । मादा का उलटा ।
नर ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ नल] नल जिसमें से होकर पानी जाता है । उ॰—नर की अरु नर नीर की एकै गति कर जोइ । जेतो नीचे ह्वै चले तेतो ऊँचे होइ ।—बिहारी (शब्द॰) ।
नर ^४ संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'नरकट' ।
नर ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ नीर] जल । पानी । उ॰—पुत्री वनिक सराप दिय भर पुहकर नर लोइ । असुर होई बीसल नृपति नरपल- चारी सोई ।—पृ॰ रा॰, १ । ४९१ ।