ष
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यूनिकोड नाम | देवनागरी अक्षर ष |
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देवनागरी | U+0905 |
उच्चारण
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ष संस्कृत या हिंदी वर्णमाला के व्यंजन वर्णों में ३१ वाँ वर्ण या अक्षर । इसका उच्चारणस्थान मूर्धा है । इससे यह मूर्धंन्य वर्णों में कहा गया है । इसका प्रयोग केवल संस्कृत के शब्दों में होता है और उच्चारण दो प्रकार से होता है । कुछ लोग 'श' के समान इसका उच्घारण करते हैं और कुछ लोग 'ख' के समान । इसी से हिंदी की पुरानी लिखावट में इस अक्षर का व्यवहार कवर्गीय 'ख' के स्थान पर होता था । जैसे,— देषि (देखि), लषन (लखन) इत्यादि । अनेक धातुएँ जो दंत्य 'स' से आरंभ हैं वे संस्कृत धातुपाठ में मूर्धन्य 'ष' से लिखी गई हैं इस अक्षर का परिवर्तन अधिकतर 'श', 'स' और 'ख' के रूप में होता है । एक तरह से इसका शुद्ध उच्चारण 'ऋ' की तरह, लुप्तप्राय है । व्रज और अवधी में यह 'स' लिखा जाता है ।
ष ^१ संज्ञा पुं॰
१. विद्वान् पुरुष । आचार्य ।
२. कुच । चूचुक ।
३. नाश ।
४. शेष । बाका ।
५. प्राप्त ज्ञान का क्षय ।
६. मुक्ति । मोक्ष ।
७. स्वर्ग ।
८. अंत । समाप्ति । अवधि ।
९. गर्भ ।
१०. धैर्य । सहिष्णुता ।
११. निद्रा । नींद (को॰) ।
१२. कच । केश । बाल (को॰) ।
१३. गर्भविमाचन (को॰) ।
ष ^२ वि॰
१. बहुत अच्छा । उत्तम । श्रेष्ठ ।
२. विद्वान् (को॰) ।