ई
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| यूनिकोड नाम | देवनागरी अक्षर ई |
|---|---|
| देवनागरी | U+0905 |
उच्चारण
| (file) |
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
ई हिंदी वर्णमाला का चौथा । यह यथार्थ में 'इ' का दीर्घ रूप है । इसकी उच्चारण का स्थान तालु है । इसको प्रत्यय की भाँति कुछ शब्दों में लगाकर संज्ञा और विशेषण, स्त्रीलिंग, क्रिया स्त्रीलिंग तथा भाववाचक संज्ञा आदि बानाते हैं । जैसे— घोड़ा से घोड़ी, अच्छा से अच्छी, गया से गई, स्याह से स्याही, क्रोध से क्रोधी, आदी ।
ई ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] लक्ष्मी ।
ई ^२ पुं॰ सर्व [सं॰ ई = निकट का संकेत] यह । उ॰— (क) कहहिं॰ कबीर पुकारि कै ई लेऊ व्यवहार । एक राम नाम जाने बिना भव बूड़ि मुआ संसार । — कबीर (शब्द॰) । (ख) विरल रसिक जन ई रस जान । — विद्यापति॰, पृ॰ ३०८ ।
ई ^३ अव्य [सं॰ बिं॰] जोर देने का शब्द । ही । उ॰— पत्रा ही तिथि पाइए वा घर के चहुँ पास । नित प्रति पून्यो ई रहै आनन ओप उजास । — बिहारी (शब्द॰) ।
ई ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰] कामदेव [को॰] ।
