विक्षनरी:हिन्दी-हिन्दी/संबंध
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हिन्दी शब्दसागर |
संकेतावली देखें |
⋙ संबंध (१)
संज्ञा पुं० [सं० संबन्ध सम्बन्ध] १. एक साथ बँधना, जुड़ना या मिलना। २. लगाव। संपर्क। वास्ता। विशेष—दर्शन में संबंध तीन प्रकार के कहे गए हैं—समवाय, संयोग और स्वरूप। ३. एक कुल में होने के कारण अथवा विवाह, दत्तक आदि संस्कारों के कारण परस्पर लगाव। नाता। रिश्ता। ४. गहरी मित्रता। बहुत मेलजोल। ५. संयोग। मेल। ६. विवाह। सगाई। ७. ग्रंथ। पोथी। ८. एक प्रकार की ईति या उपद्रव। ९. किसी सिद्धांत का हवाला। १०. व्याकरण में एक कारक जिससे एक शब्द के साथ दूसरे शब्द का संबंध या लगाव सूचित होता है। जैसे,—राम का घोड़ा। विशेष—बहुत से वैयाकरण 'संबंध' को शुद्ध कारक नहीं मानते। हिंदी में संबंध के चिह्न 'का', 'की' 'के' हैं। १०. योग्यता। औचित्य (को०)। ११. समृद्धि। सफलता (को०)। १२. नातेदारी। रिश्तेदारी (को०)।
⋙ संबंध (२)
वि० १. समर्थ। योग्य। २. उचित। उपयुक्त। ठीक [को०]।
⋙ संबंधक (१)
संज्ञा पुं० [सं० सम्बन्धक] १. मेल जोल। लगाव। मैत्री। २. जन्म या विवाहजन्य संबंध। ३. मित्र। सखा। ४. वह जिससे रिश्ता या संबंध हो। संबंधी। ५. एक प्रकार की शांति- संधि। मैत्री संधि [को०]।
⋙ संबंधक (२)
वि० १. संबंद्ध। विषयक। २. उपयुक्त। योग्य। ठिक [को०]।
⋙ संबंधयिता
वि० [सं० सम्बन्धयितृ] संबंध करने या जोड़नेवाला [को०]।
⋙ संबंधवर्जित
संज्ञा पुं० [सं० सम्बन्धवर्जित] १. संसक्ति या अन्वय का अभाव। २. वह जो किसी से लगाव या संबंध न रखता हो। ३. एक प्रकार का रचनागत दोष [को०]।
⋙ संबंधातिशयोक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्बन्धातिशयोक्ति] अतिशयोक्ति अलंकार का एक भेद जिसमें असंबंध में संबंध दिखाया जाता है। विशेष—दे० 'अतिशयोक्ति'।
⋙ संबंधिभिन्न
वि० [सं० सम्बन्धिभिन्न] संबंधियों में विभक्त। जो रिश्तों में बँटा हुआ हो [को०]।
⋙ संबधिशब्द
संज्ञा पुं० [सं० सम्बन्धिशब्द] वह शब्द जो दो व्यक्तियों या वस्तुओं में संबंध का द्योतन करे। संबंध सूचित करनेवाला शब्द [को०]।
⋙ संबंधी (१)
वि० [सं० सम्बन्धिन्] [वि० स्त्री० संबंधिनी] १. संबंध रखनेवाला। लगाव रखनेवाला। २. विषयक। सिलसिले या प्रसंग का। ३. सदगुण संपन्न (को०)। ४. जिसके साथ विवाहादि संबंध हो (को०)।
⋙ संबंधी (२)
संज्ञा पुं० १. रिश्तेदार। २. जिसके पुत्र या पुत्री से अपनी पुत्री या पुत्र का विवाह हुआ हो। समधी। ३. वह जिसका संबंध या लगाव हो (को०)।
⋙ संबंधु
संज्ञा पुं० [सं० सम्बन्धु] १. आत्मीय। भाई बिरादर। २. नातेदार। रिश्तेदार।
⋙ संब
संज्ञा पुं० [सं० सम्ब] १. खेत की दुहरी जुताई। दे० 'शंब'। २. जल। पानी (को०)।
⋙ संबत्
संज्ञा पुं० [सं० सम्वत्] दे० 'संवत्'।
⋙ संबत पु
संज्ञा पुं० [सं० सम्वत्] दे० 'संवत्'। उ०—संबत सोरह सै एकतीसा। करौं कथा हरिपद धरि सीसा।—सानस, १।३४।
⋙ संबद्ध
वि० [सं० सम्बद्ध] १. बँधा हुआ। जुड़ा हुआ। लगा हुआ। २. संबंधयुक्त। मिला हुआ। ३. बंद। ४. संयुक्त। सहित। ५. अनुरक्त (को०)। ६. विषयक (को०)।
⋙ संबद्धदर्प
वि० [सं० सम्बद्धदर्प] अभिमानी। घमंडी। दर्पयुक्त [को०]।
⋙ संबर
संज्ञा पुं० [सं० सम्बर] १. निग्रह। निरोध। प्रतिबंध। रोक। २. सेतु। बाँध। पुल (को०)। ३. दे० 'शंबर'। यौ०—संबररिपु = मनसिज। कामदेव।
⋙ संबरण
संज्ञा पुं० [सं० संवरण] रोकना। दे० 'संवरण'।
⋙ संबल
संज्ञा पुं० [सं० सम्बल] १. शाल्मली। सेमल का वृक्ष। २. रास्ते का भोजन। सफर खर्च। ३. गेहूँ की फसल का एक रोग जो पूरब की हवा अधिक चलने से होता है। ४. सेतु। बाँध (को०)। ५. संखिया। आखु पाषाण। सोमलक्षार। शेष अर्थ के लिये दे० 'शंवर' और 'शंबल'।
⋙ संबाद पु
संज्ञा पुं० [सं० सम्वाद] दे० 'सँवाद'। उ०—सो संबाद उदार जेहि बिधि भा आगे कहब।—मानस, १।१२०।
⋙ संबाध (१)
संज्ञा पुं० [सं० सम्बाध] १. बाधा। अड़चन। कठिनता। २. भीड़। संघर्ष। ३. भग। योनि। ४. कष्ट। पीड़ा। दबाव। पीडन। ५. नरक का पथ। ६. डर। भय (को०)। ७. सँकरा रास्ता। तंग राह (को०)।
⋙ संबाध (२)
वि० १. संकीर्ण। तंग। २. जनपूर्ण। भीड़ से भरा हुआ। ३. भरा। पूर्ण। संकुल।
⋙ संबाधक
संज्ञा पुं० [सं० सम्बाधक] १. दबानेवाला। सतानेवाला। २. बाधा पहुँचानेवाला। ३. भीड़ करनेवाला (को०)।
⋙ संबाधन
संज्ञा पुं० [सं० सम्बाधन] १. दबाव। रेलपेल। २. रोकना। बाधा देना। ३. अवरोध। रोक। फाटक। ४. योनि। भग। ५. शूलाग्र। ६. द्वारपाल।
⋙ संबाधना
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्बाधना] रगड़ने या घिसने की क्रिया। घर्षण [को०]।
⋙ संबी
संज्ञा स्त्री० [सं० शिम्बी] फली।
⋙ संबुक
संज्ञा पुं० [सं० शम्बुक, शम्बूक] १. दे० 'शंबुक', 'शंबूक'। उ०— संबुक भेक सेवार समाना। इहाँ न विषय कथा रस नाना।—मानस, १।३८। २. दे० 'शंबूक'।
⋙ संबुद्ध (१)
वि० [सं० सम्बुद्ध] १. जाग्रत। ज्ञानप्राप्त। सचेत। २. ज्ञानी। ज्ञानवान्। ३. पूर्ण रूप से जाना हुआ। ज्ञात।
⋙ संबुद्ध (२)
संज्ञा पुं० १. बुद्ध। २. जिन।
⋙ संबुद्धि
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्बुद्धि] १. पूर्ण ज्ञान। सम्यक् बोध। २. बुद्धिमानी। होशियारी। ३. दूर से पुकार। आह्वान। ४. पदवी। उपाधि (को०)। ५. (व्याकरण में) संबोधन कारक तथा उसकी विभाक्ति का चिह्न (को०)। ६. पूर्ण चेतना (को०)।
⋙ संबुल
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुंबुल] १. एक सुगंधित बनौषधि। बालछड़। उ०—नकली नदियों के किनारों पर पत्थर के नकली टीले बनेहुए थे, जिनपर छोटे छोटे पानी के हौज तथा चारो ओर संबुल के घने जंगल लगे हुए थे।—पीतल०, भा० २, पृ० ३७। २. गेहूँ अथवा जौ की बाल। ३. केश। अलक। जुल्फ।
⋙ संबुल खताई
संज्ञा पुं० [फ़ा०] तुर्किस्तान का एक पौधा जो औषध के काम में आता है और जिसकी पत्तियों की नसें मिठाई में पड़ती हैं।
⋙ संबेसर
संज्ञा पुं० [सं० सम् + हिं० बसेरा] निद्रा। नींद। (डिं०)।
⋙ संबोध
संज्ञा पुं० [सं० सम्बोध] १. सम्यक् ज्ञान। पूरा बोध। २. पूर्ण तत्वबोध। पूरी जानकारी। ३. धीरज। सांत्वना। ढारस। ४. समझाना। व्याख्यान करना। सूचित करना (को०)। ५. प्रेषण। क्षेपण [को०]। ६. हानि। विनाश (को०)।
⋙ संबोधन
संज्ञा पुं० [सं० सम्बोधन] [वि० संबोधित, संबोध्य] १. जगाना। नींद से उठाना। २. पुकारना। आह्वान करना। ३. व्याकरण में वह कारक जिससे शब्द का किसी को पुकारने या बुलाने के लिये प्रयोग सूचित होता है। जैसे,—हि राम ! ४. जताना। ज्ञान कराना। विदित कराना। ५. नाटक में आकाशभाषित। ६. समझाना बुझाना । समाधान करना। ७. संबोधन में प्रयुक्त किया जानेवाला शब्द (को०)। ८. जानकारी करना। समझना (को०)।
⋙ संबोधना पु
क्रि० स० [सं० सम्बोधन] समझाना। प्रबोध देना। सांत्वना देना। उ०—(क) बाजी सत दीने बगसि संबोधे सत भ्रात।—पृ० रा०, ५।३१। (ख) ज्यों ज्यों ऐसी बातन मँदोदरी संबोधै त्यों त्यों, देव दुःख पावे कहें कैसे समुझाइए। याकी बात माने सिय लैके जाइ मिले यह औरन बिसारि याकौ सौगुन बढ़ाइए।—हृदयराम (शब्द०)।
⋙ संबोधि
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्बोधि] (बोद्ध दर्शन में) पूर्ण ज्ञान [को०]।
⋙ संबोधित
वि० [सं० सम्बोधित] १. जिसे चेताया गया हो। बोध कराया हुआ। २. जिसका ध्यान आकृष्ट किया गया हो। आहूत। पुकारा हुआ [को०]।
⋙ संबोध्य
संज्ञा पुं० [सं० सम्बोध्य] १. वह जिसको संबोधन किया जाय। २. जिसे समझाया या जताया जाय।
⋙ संबोसा
संज्ञा पुं० [फ़ा० संबोसह् ?] एक पकवान जो सिंघाड़े के आकार का होता है। दे० 'समोसा'।
⋙ संबौधिया
संज्ञा पुं० [देश०] वैश्यों की एक जाति।
⋙ संबृंहण
संज्ञा पुं० [सं० सम्बृंहण] १. अच्छी प्रकार से पुष्ट या तेजस्- युक्त करना। २. वह जो पुष्टिकारक हो। शक्तिप्रद [को०]।
⋙ संभक्त
वि० [सं० सम्भक्त] १. विभक्त। जो बाँट दिया गया हो। २. शामिल होनेवाला। भाग लेनेवाला। ३. अंतःकरण से किसी का हो जानेवाला। भक्त। ४. उपभोग करनेवाला [को०]।
⋙ संभक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भक्ति] १. प्रदान करने का भाव। दे डालना। २. विभाग या हिस्सा लेना। ३. श्रद्धा या संमान करना। पूजा [को०]।
⋙ संभक्ष
संज्ञा पुं० [सं० सम्भक्ष] १. एक साथ भोजन करना। २. वह जो भक्षण करता हो। ३. भक्षण। भोजन। खाना [को०]।
⋙ संभग्न (१)
वि० [सं० सम्भग्न] १. बहुत टूटा हुआ। बिलकुल खंडित। २. हारा हुआ। ३. विफल।
⋙ संभग्न (२)
संज्ञा पुं० शिव का एक नाम।
⋙ संभर
संज्ञा पुं० [सं० सम्भर] १. भरण करनेवाला। पोषण करनेवाला। २. साँभर झील। ३. शाकंभरी प्रदेश।
⋙ संभरण
संज्ञा पुं० [सं० सम्भरण] [वि० संभरणीय, संभृत] १. पालन पोषण। २. एकत्र करना। संचय। जुटाना। ३. योजना। विधान। ४. तैयारी। सामान। ५. एक प्रकार की ईंट जो यज्ञ की वेदी में लगती थी।
⋙ संभरणी
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भरणी] सोमरस रखने का एक यज्ञपात्र।
⋙ संभरना पु
क्रि० स० [सं० √ सम्भालय् (= सुनना)] १. सँभारना। ग्रहण करना। श्रवण करना। उ०—संभरिय बत्त संभरि नरेस, आभासि भ्रित्त अप्पां असेस।—पृ० रा०, १।६१९। २. सँभालना।
⋙ संभरना पु
क्रि० अ० दे० 'सँभलना'।
⋙ संभरवै पु
संज्ञा पुं० [सं० सम्भर + पति, प्रा० वइ] शाकंभरी प्रदेश का राजा, पृथ्वीराज।
⋙ संभरि, संभरी
संज्ञा पुं० [सं० सम्भर] १. शाकंभरी प्रदेश। २. पृथ्वीराज चौहान। यौ०—संभरिधनी = पृथ्वीराज। उ०—चल्यो व्याहि संभरिधनी।—पृ० रा०, १४।१२८। संभरिवै = दे० 'संभर वै'। संभरी राव = सोमेश्वर। उ०—संभरी राव संभारि छल।—पृ० रा०, १।६५६।
⋙ संभरेस पु
संज्ञा पुं० [सं० सम्भर + ईश] पृथ्वीराज। संभर का राजा।
⋙ संभल
संज्ञा पुं० [सं० सम्भल] १. कन्यार्थी पुरुष। किसी लड़की से विवाह की इच्छा रखनेवाला व्यक्ति। २. चेटक। दलाल। ३. एक स्थान जहाँ विष्णु का दसवाँ कल्कि अवतार होनेवाला है। इसे कुछ लोग मुरादाबाद जिले का 'संभल' नाम का कसबा बतलाते हैं।
⋙ संभली
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भली] कुटनी। दूती। शंभली।
⋙ संभव
संज्ञा पुं० [सं० सम्भव] १. उत्पत्ति। जन्म। पैदाइश। जैसे,— कुमारसंभव। २. एक साथ होना। मेल। संयोग। समागम। ३. सहवास। प्रसंग। ४. अँटना। आ सकना। समाई। ५. हेतु। कारण। ६. होना। घटित होना। ७. हो सकने के योग्य होना। मुमकिन होना। जैसे,—उसका सुधरना संभव नहीं। ८. परिमाण का एक होना। एक ही बात होना। जैसे,—एक रुपया कहें या सोलह आने। (दर्शन)। ९. उपयुक्तता। समीचीनता। मुनासिबत। १०. वर्तमान अवसर्पिणी के तीसरे अर्हत् (जैन)। ११. एक लोक का नाम। (बौद्ध)। १२. नाश। ध्वंस। १३. युक्ति। उपाय। १४. उत्पादन। पालन पोषण (को०)। १५. जान पहचान। परिचय (को०)। १६. धन। दौलत। संपत्ति (को०)। १७. विद्या (को०)। १८. अस्तित्व। उपस्थिति (को०)।
⋙ संभवतः
अव्य० [सं० सम्भवतस्] हो सकता है। मुमकिन है। गालिबन्।
⋙ संभवन
संज्ञा पुं० [सं० सम्भवन] [वि० संभवनीय, सभव्य, संभूत] १. उत्पन्न होना। पेदा होना। २. हो सकना। मुमकिन होना। ३. धारण। पालन। पोषण। ४. होना। घटित होना।
⋙ संभवना पु (१)
क्रि० स० [सं० सम्भव + हिं० ना (प्रत्य०)] उत्पन्न करना। पैदा करना।
⋙ संभवना पु (२)
क्रि० अ० १. उत्पन्न होना। पैदा होना। २. संभव होना। हो सकना। उ०—धर्म स्थापन हेतु पुनि धारयो नर अवतार। ताको पुत्र कलत्र सों नहि संभवत पियार।—सूर (शब्द०)।
⋙ संभवनाथ
संज्ञा पुं० [सं० सम्भवनाथ] वर्त्तमान अवसर्पिणी के तीसरे तीर्थंकर (जैन)।
⋙ सभवनीय
वि० [सं० सम्भवनीय] जो हो सकता हो। मुमकिन।
⋙ संभविष्णु
संज्ञा पुं० [सं० सम्भविष्णु] उत्पादक। स्त्रष्टा। निर्माण— कर्ता। निर्माता [को०]।
⋙ संभवी
वि० [सं० सम्भविन्] १. हो सकनेवाला। मुमकिन। २. होनेवाला। जैसे, स्वतःसंभवी।
⋙ संभव्य (१)
संज्ञा पुं० [सं० सम्भव्य] कपित्थ। कैथ।
⋙ संभव्य (२)
वि० जो हो सकता हो। संभवनीय। मुमकिन।
⋙ संभार
संज्ञा पुं० [सं० सम्भार] १. संचय। एकत्र करना। इकट्ठा करना। २. तैयारी। सामान। साज। सामग्री। रसद वगैरह। ३. धन। संपत्ति। वित्त। ४. पूर्णता। ५. समूह। दल। राशि। ढेर। ६. पालन। पोषण। ७. अधिकता। अतिशयता। प्राचुर्य (को०)।
⋙ संभारना पु
क्रि० स० [हिं० सँभालना] १. स्मरण करना। याद करना। उ०—संभारि श्रीरघुबीर धोर प्रचारि कपि रावन हन्यौ।—मानस, ६।९४।२०। २. दे० 'सँभालना'।
⋙ संभाराधिप
संज्ञा पुं० [सं० सम्भाराधिप] शुक्रनीति के अनुसार राज- कीय पदार्थें का अध्यक्ष। तोशाखाने का अफसर।
⋙ संभारी
वि० [सं० सम्भारिन्] [वि० स्त्री० संभारिणी] भरा हुआ। पूर्ण।
⋙ संभार्य
वि० [सं० सम्भार्य] १. आश्रय देने योग्य। सहारा देने योग्य। २. जिसे उपयोग करने लायक बनाया जा सके। ३. जिसके हिस्सों को बटोर कर एक साथ संघटित रखा जा सके [को०]।
⋙ संभावन
संज्ञा पुं० [सं० सम्भावन] [वि० संभावनीय, संभावित, संभावितव्य, संभाव्य] १. कल्पना। भावना। अनुमान। २. जुटाना एकत्र करना। योग करना। ३. उपस्थित करना। संपादन। ४. आदर। संमान। पूजा। ५. पूज्यबूद्धि। प्रतिष्ठा का भाव। ६. योग्यता। पात्रता। अधिकार। काबिलीयत। ७. ख्याति। प्रसिद्धि। नाम । ८. स्वीकरण। स्वीकार। ९. संदेह (को०)। १०. एक अलंकार। दे० 'संभावना'—७। ११. प्रेम। लगाव। संबंध (को०)। १२. दे० 'संभावना'।
⋙ संभावना
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भावना] १. कल्पना। भावना। अनुमान। फर्ज। २. पूजा। आदर। सत्कार। ३. किसी बात के हो सकने का भाव। हो सकना। मुमकिन होना। ४. योग्यता। पात्रता। काबिलीयत। ५. ख्याति। प्रसिद्धि। नामवरी। ६. प्रतिष्ठा। मान। इज्जत। ७. एक अलंकार जिसमें किसी एक बात के होने पर दूसरी बात का होना निर्भर कहा जाता है। उ०—(क) एहि बिधि उपजै लच्छि जब होइ सोय समतूल। (ख) सहस जीभ जौ होय, तौ बरनै जस आप को। ८. संदेह (को०)। ९. प्रेम (को०)। १०. प्राप्ति। उपलब्धि (को०)।
⋙ संभावनीय
वि० [सं० सम्भावनीय] १. जो हो सकता हो। मुमकिन। २. कल्पना के योग्य। ध्यान में आने लायक। ३. भाग लेने लायक। जिसमें भाग लिया जा सके। ४. आदर के योग्य। सत्कार के योग्य।
⋙ संभावयितव्य
वि० [सं० सम्भावयितव्य] दे० 'संभावितव्य'।
⋙ संभावित (१)
वि० [सं० सम्भावित] १. कल्पित। विचारा हुआ। मन में माना हुआ। २. जुटाया हुआ। उपस्थित किया हुआ। ३. पूजित। आदृत। ४. विख्यात। प्रसिद्ध। ५. योग्य। उपयुक्त। काबिल। ६. संभव। मुमकिन। ७. उत्पादित। गृहीत। प्राप्त (को०)। ८. तुष्ट (को०)। ९. जिसका आदर होनेवाला हो। १०. अपेक्षित। आकांक्षित। समर्थित।
⋙ संभावित (२)
संज्ञा पुं० अनुमान। ऊहा। कल्पना [को०]।
⋙ संभावितव्य
वि० [सं० सम्भावितव्य] १. कल्पना या अनुमान के योग्य। २. सत्कार के योग्य। ३. जिसका सत्कार होनेवाला हो। ४. संभव। मुमकिन।
⋙ संभाव्य (१)
वि० [सं० सम्भाव्य] १. जो हो सकता हो। मुमकिन। २. प्रशंसनीय। श्लाघ्य। ३. पूजा या सत्कार के योग्य; अथवा जिसका सत्कार होनेवाला हो। ४. कल्पना या अनुमान के योग्य। ध्यान में आने लायक।
⋙ संभाव्य (२)
संज्ञा पुं० १. मनु के एक पुत्र का नाम। २. उपयुक्तता। काबिलियत। योग्यता। पात्रता [को०]।
⋙ संभाष
संज्ञा पुं० [सं० सम्भाष] १. कथन। संभाषण। बातचीत। २. वादा। करार। ३. नमस्कार। प्रणाम (को०)। ४. पहरा- देनेवाले आपसी पहचान के लिये जिस गुप्त शब्द का संकेत रूप में व्यवहार करते हैं वह शब्द (को०)। ५. काम संबंध। अवैधानिक मैथुन संबंध (को०)।
⋙ संभाषण
संज्ञा पुं० [सं० सम्भाषण] [वि० संभाषणीय, संभाषित, संभाष्य] १. कथोपकथन। बातचीत। २. संभोग। मैथुन (को०)। ३. पहरुओं का संकेत शब्द (को०)। ४. करार। वादा (को०)। ५. अभिवादन (को०)।
⋙ संभाषणीय
वि० [सं० सम्भाषणीय] जो बातचीत करने योग्य हो। जिससे भाषण करना उचित हो।
⋙ संभाषा
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भाषा] दे० 'संभाष', 'संभाषण' [को०]।
⋙ संभाषित (१)
वि० [सं० सम्भाषित] १. अच्छी तरह कहा हुआ। २. जिससे बातचीत हुई हो।
⋙ संभाषित (२)
संज्ञा पुं० बातचीत। वार्तालाप [को०]।
⋙ संभाषी
वि० [सं० सम्भाषिन्] [वि० स्त्री० संभाषिणी] कहनेवाला। बोलनेवाला। बातचीत करनेवाला।
⋙ संभाष्य
वि० [सं० सम्भाष्य] भाषण करने योग्य। जिससे बातचीत करना उचित हो।
⋙ संभिन्न (१)
वि० [सं० सम्भिन्न] १. भली भाँति अलग। २. पूर्ण भग्न। बिलकुल टूटा हुआ। ३. संक्षोभित। चालित। ४. गठा हुआ। ठोस। ५. प्रस्फुटित। खिला हुआ। ६. संपर्क में आया हुआ (को०)। ७. युक्त। मिला हुआ (को०)। ८. अनिश्वस्त। अवि- श्वास्य (को०)। ९. संकुचित। सिकुड़ा या सिकोड़ा हुआ (को०)। १०. छोड़ा हुआ। त्यक्त। परित्यक्त (को०)। यौ०—संभिन्न प्रलाप। संभिन्नप्रलापिक = व्यर्थ प्रलाप करनेवाला। संभिन्नबुद्धि = जिसकी बुद्धि नष्ट हो गई हो। संभिन्नमर्याद = जिसने मर्यादा का उल्लंघन किया हो। सभिन्नवृत्त = सदाचार- रहित। दुराचारी। संभिन्नसर्वांग = जिसने अपने सभी अंगों को संकुचित किया हो या कस लिया हो।
⋙ संभिन्न (२)
संज्ञा पुं० शिव [को०]।
⋙ संभिन्नप्रलाप
संज्ञा पुं० [सं० सम्भिन्न प्रलाप] व्यर्थ की बातचीत जो बौद्धशास्त्रों में एक पाप कहा गया है।
⋙ संभीत
वि० [सं० सम्भीत] बेहद डरा हुआ। अत्यधिक भयभीत [को०]।
⋙ संभु (१)
संज्ञा पुं० [सं० शम्भु, प्रा० संभु] शिव। महादेव। दे० 'शंभु'। उ०—जनम कोटि लगि रगरि हमारी। बरौं संभु नतु रहौं कुआरी।—मानस, १।८१। यौ०—संभुगन पु = शिव के गण। उ०—सिवहिं संभुगन करहि सिंगारा।—मानस, १।९२। संमुसुक्रसंभूत सुत = शिव के औरस पुत्र, स्कंद।
⋙ संभु (२)
वि० [सं० सम्भु] उत्पन्न। निर्मित। जात [को०]।
⋙ संभु (३)
संज्ञा पुं० १. जनयिता। जनक। पिता। २. एक छंद [को०]।
⋙ संभुक्त
वि० [सं० सम्भु्क्त] १. भोगा हुआ। भुक्त। २. खाया हुआ। ३. प्रयोग में लाया हुआ। प्रयुक्त। व्यवहृत। ४. पार किया हुआ। जिसका अतिक्रम किया गया हो। अतिक्रांत [को०]।
⋙ संभुग्न
वि० [सं० सम्भुग्न] पूर्णतः झुका हुआ। बल खाया हुआ [को०]।
⋙ संभूत
वि० [सं० सम्भूत] १. एक साथ उत्पन्न या आगत। किसी के साथ जात, रचित या निर्मित। २. उत्पन्न। उदभूत। जात। पैदा। ३. युक्त। सहित। ४. कुछ से कुछ हो गया हुआ। ५. उपयुक्त। योग्य। ६. तुल्य। बराबर। सदृश। समान (को०)।
⋙ संभूति
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भूति] १. उत्पत्ति। उद्भव। २. बढ़ती। विभूति। बरकत। ३. योग की विभूति। करामात। ४. क्षमता। शक्ति। ५. उपयुक्तता। योग्यता। ६. दक्ष प्रजापति की एक कन्या जो मरीचि की पत्नी थी। ७. ज्ञान। विद्या (को०)। ८. संयोग। योग (को०)।
⋙ संभूय
अव्य० [सं० सम्भूय] एक में। एक साथ। साथ में। मिलकर। साझे में।
⋙ संभूयकारी
संज्ञा पुं० [सं० सम्भूयकारिन्] स्मृति के अनुसार संघ में मिलकर व्यापार करनेवाला व्यक्ति। वह जो किसी कंपनी का हिस्सेदार हो। विशेष—बृहस्पति (स्मृति) के अनुसार यदि संघ को दैवी कारण से या राजा के कारण हानि पहुँचे तो उसके भागी सब हिस्सेदार हैं; पर यदि किसी हिस्सेदार की भूल या गलती से हानि पहुँचे तो उसका जिम्मेदार अकेला वही है।
⋙ संभूयक्रय
संज्ञा पुं० [सं० सम्भूयक्रय] कौटिल्य के अनुसार थोक माल बेचना या खरीदना।
⋙ संभूयगमन
संज्ञा पुं० [सं० सम्भूयगमन] १. कामंदक नीति के अनुसार पूरी चढ़ाई जिसमें सामंत और मौल (तअल्लुकेदार) सब अपने दलबल के साथ हों। २. एक साथ जाना। समूह या दल के साथ जाना।
⋙ संभूययान
संज्ञा पुं० [सं० सम्भूययान] दे० संभूयगमन [को०]।
⋙ संभूयसमुत्थान
संज्ञा पुं० [सं० सम्भूयसमुत्थान] १. मिलकर किया हुआ व्यापार। साझे का कारबार। २. वह विवाद या मुकदमा जो साझेदारों में हो।
⋙ संभूयसमुत्थापन
संज्ञा पुं० [सं० सम्भूयसमुत्थापन] कंपनी खोलना। साझे का कारबार करना। सहकारी समिति द्वारा व्यापार करना।
⋙ संभूयासन
संज्ञा पुं० [सं० सम्भूयासन] कामंदक नीति के अनुसार शत्रु से मेल करके और उसे उदासीन समझकर चुपचाप बैठ जाना।
⋙ संभृत (१)
वि० [सं० सम्भृत] १. एकत्र। इकट्ठा। जमा किया हुआ। बटोरा हुआ। २. पूर्ण। भरा हुआ। लदा हुआ। ३. युक्त। सहित। ४. पाला पोसा हुआ। ५. समादृत। संमानित। जिसकी इज्जत की गई हो। ६. प्रस्तुत। तैयार। ७. निर्मित। बना हुआ। ८. प्राप्त। लब्ध। अवाप्त (को०)। ९. ले जाया गया हुआ। वहन किया हुआ (को०)। १०. उत्पादित। पैदा किया हुआ (को०)। ११. शोभा से भरा हुआ। १२. उच्च। जैसे, स्वर (को०)। यौ०—संभृतबल = जिसने सेना इकट्ठी कर ली हो। सेना इकट्ठा करनेवाला। संभृतश्री = अत्यंत सुंदर। संभृतश्रृत = विद्वान्। कृतविद्य। विज्ञ। संभृतसभार = कार्य के लिये प्रस्तुत। तैयार। संभृतस्नेह = प्रेमयुक्त। प्रेमपूर्ण।
⋙ संभृत (२)
संज्ञा पुं० उच्च स्वर। चीख।
⋙ संभृतांग
वि० [सं० सम्भृताङ्ग] १. पोषित शरीरवाला। पुष्ट अंगोंवाला। २. जिसका शरीर आवृत या ढका हो [को०]।
⋙ संभृतार्थ
वि० [सं० सम्भृतार्थ] अधिक धन एकत्रित कर लेनेवाला।
⋙ संभृताश्व
वि० [सं० सम्भृताश्व] जिसके पास पुष्ट और दमदार अश्व हों [को०]।
⋙ संमृतौषध
वि० [सं० सम्भृतौषध] जिसके पास अनेक औषधियों का संचय हो [को०]।
⋙ संभृति
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भृति] १. एकत्र करने की क्रिया या भाव। २. सामान। सामग्री। ३. समूह। भीड़। जमावड़ा। ४. राशि। ढेर। ५. अधिकता। बहुतायत। ६. सम्यक् भरण पोषण। खूब पालना पोसना।
⋙ संभृष्ट
वि० [सं० सम्भृष्ट] १. खूब भूना या तला हुआ। २. कुरकुरा। करारा। ३. सुखाया हुआ (को०)। ४. क्षीण। दुर्बल। दुबला पतला (को०)।
⋙ संभेद
संज्ञा पुं० [सं० सम्भेद] १. खूब छिदना या भिदना। २. शिथिल होना। ढीला होकर खिसकना। ३. वियोग। जुदाई। अलग होना। ४. मिले हुए शत्रुओं में परस्पर विरोध उत्पन्न करना। भेदनीति। ५. किस्म। प्रकार। ६. भिड़ना। जुटना। मिलना। ७. नदियों का संगम या नदी समुद्र का संगम। ८. तोड़ना। टुकड़े टुकड़े करना (को०)। ९. एकीभवन। मिलाप। मिश्रण (को०)। १०. विकसित होना। खिलना (को०)। ११. सारूप्य। साम्य। एकरूपता (को०)। १२. मुष्टि- बंध। मुट्ठी बाँधना (को०)।
⋙ संभेदन
संज्ञा पुं० [सं० सम्भेदन] [वि० संभेदनीय, संभेद्य, संभिन्न] १. खूब छेदना या आर पार घुसना। धँसना। विदीर्णन। २. जुटाना। मिलाना। भिड़ाना। ३. तोड़ना। टुकड़े टुकड़े करना (को०)।
⋙ संभेद्य
वि० [सं० सम्भेद्य] १. भेदने या छेदने योग्य। ३. जो संपर्क में लाने योग्य हो। मिलाने योग्य [को०]।
⋙ संभोक्ता
संज्ञा पुं० [सं० सम्भोक्तृ] १. खानेवाला। भक्षक। २. उपर भोग करने या भोगनेवाला [को०]।
⋙ संभोग
संज्ञा पुं० [सं० सम्भोग] १. किसी वस्तु का भली भाँति उपयोग। सुखपूर्वक व्यवहार। २. सुरत। रति क्रीड़ा। मैथुन। ३. शृंगार रस के तीन भेदों में से एक। संयोग शृंगार। मिलाप की दशा। ४. हाथी के कुंभ या मस्तक का एक भाग। ५. स्था- यित्व। सातत्य (को०)। ६. आनंद। विनोद (को०)। ७. अधिकृति। प्रयोग । व्यवहार (को०)। यौ०—संभोगकाय = बुदध के तीन शरीर में से एक। भोग शरीर। संभोगक्षम = उपभोग लायक। संभोगयक्षिणी = एक योगिनी जिसे वीणा भी कहते हैं। संभोगवत् (वान्) = आनंदयुक्त। हर्षयुक्त। मौजमस्ती की जिंदगी बितानेवाला। संभोगवेश्म = रखेल का घर।
⋙ संभोगी (१)
वि० [सं० सम्भोगिन्] [वि० स्त्री० संभोगिनी] १. संभोग करनेवाला। २. व्यवहार का आनंद लेनेवाला। ३. कामुक (को०)।
⋙ संभोगी (२)
संज्ञा पुं० लंपट पुरुष। कामी व्यक्ति [को०]।
⋙ संभोग्य
वि० [सं० सम्भोग्य] १. जिसका व्यवहार होनेवाला हो। जो काम में लाया जानेवाला हो। २. उपभोग करने योग्य। व्यव- हार योग्य। बर्तने लायक।
⋙ संभोज
संज्ञा पुं० [सं० सम्भोज] भोजन। खाना।
⋙ संभोजक
संज्ञा पुं० [सं० सम्भोजक] १. भोजन करनेवाला। भक्षक। खानेवाला। स्वाद लेनेवाला। २. भोजन परसनेवाला। रसोइया।
⋙ संभोजन
संज्ञा पुं० [सं० सम्भोजन] [वि० संभोजनीय, संभोज्य, संभुक्त] १. सामूहिक भोज। दावत। २. खाने की वस्तु। खाना।
⋙ संभोजनी
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भोजनी] १. एक साथ मिलकर या सामूहिक रूप से भोजन करना। २. भोज के अंत में दी जानेवाली दक्षिणा [को०]।
⋙ संभोजनीय
वि० [सं० सम्भोजनीय] १. जो खाया जानेवाला हो। जिसे खिलाया जाय। २. खाने योग्य। भक्षणीय।
⋙ संभोज्य
वि० [सं० सम्भोज्य] १. जो खाया जानेवाला हो। खिलाने योग्य। २. खाने योग्य। भक्षणीय।
⋙ संभ्रम (१)
संज्ञा पुं० [सं० सम्भ्रम] १. घूमना। चक्कर। फेरा। २. उतावली। हड़बड़ी। आतुरता। ३. घबराहट। व्याकुलता। चकपकाहट। ४. हलचल। धूम। ५. सहम। सिटपिटाना। ६. उत्कंठा। गहरी चाह। शोक। हौसला। उत्साह। उमंग। ७. पूज्य भाव। आदर। मान। गौरव। ८. मूल। चूक। गलती। ९. श्री। शोभा। छबि। सोंदर्य। १०. शिव के एक प्रकार के गण। ११. मोह। भ्रम। भ्रांति (को०)। १२. अबोधता। नादानी। गँवारपन (को०)।
⋙ संभ्रम (२)
वि० १. क्षुब्ध। २. इधर उधर घूमता हुआ। जैसे नेत्र [को०]। यौ०—संभ्रमज्वलित = उतावली के कारण क्षुब्ध। संभ्रममृत् = व्याकुल उद्विग्न। घबराया हुआ।
⋙ संभ्रम (३)
क्रि० वि० आतुरता के साथ। उतावलो में। उ०—(क) सुनि सिसुरुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आईं सब रानी।— मानस, १।१९३। (ख) सहित सभा संभ्रम उठेउ रबिकुल कमल दिनेसु।—मानस, २।२७३।
⋙ संभ्रात
वि० [सं० सम्भ्रान्त] १. घुमाया हुआ। चक्कर दिया हुआ। २. घबराया हुआ। उद्विग्न। चकपकाया हुआ। स्फूर्तियुक्त। तेजस्वी। ४. संमानित। प्रतिष्ठित। ५. उतेजित (को०)। यौ०—संभ्रांतजत = (१) वह जिसके सायो उद्विग्न हों। (२) आदरणीय व्यक्ति। संभ्रांतमना = व्याकुल। उद्विग्नहृदय।
⋙ संभ्राति
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भ्रान्ति] १. घबराहट। उद्वेग। आतुरता। हड़बड़ी। ३. चकपकाहट।
⋙ संभ्राजना पु
क्रि० अ० [सं० सम्भ्राज्] पूर्णतः सुशोभित होना। उ०—राम संभ्राज सेषा सहित सर्वदा, तुलसि मानस रामपुर बिहारी।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ संमत
वि० [सं० सम्मत] दे० 'सम्मत'।
⋙ संमान
संज्ञा पुं० [सं० सम्मान] दे० 'सम्मान'।
⋙ संमित (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्मित] दे० 'सम्मित'।
⋙ संमित (२)
वि० दे० 'सम्मित'।
⋙ संमेलन
संज्ञा पुं० [सं० सम्मेलन] दे० 'सम्मेलन'।
⋙ संयंता
संज्ञा पुं० [सं० संयन्तृ] १. संयम करनेवाला। रोकनेवाला। निग्रही। २. शासक। अधिकारी। नेता।
⋙ संयंत्रित
वि० [सं० सन्यन्त्रित] १. बँधा हुआ। जकड़ा हुआ। बद्ध। २. बंद। ३. रोका हुआ। दबाया हुआ।
⋙ संय
संज्ञा पुं० [सं०] कंकाल। पंजर।
⋙ संयत् (१)
वि० [सं०] १. संबद्ध। लगा हुआ। २. अखंडित। लगातार।
⋙ संयत् (२)
संज्ञा पुं० १. नियत स्थान। बदी हुई जगह जहाँ मिला जाय। २. वादा। करार। ३. झगड़ा। लड़ाई। संघर्ष। ४. एक प्रकार की ईंट जो यज्ञ की वेदी बनाने के काम आती थी।
⋙ संयत (१)
वि० [सं०] १. बद्ध। बँधा हुआ। जकड़ा हुआ। २. पकड़ में रखा हुआ। दबाव में रखा हुआ। ३. रोका हुआ। दमन किया हुआ। काबू में लाया हुआ। वशीभूत। ४. बंद किया हुआ। कैद। ५. क्रमबद्ध। व्यवस्थित। नियमबद्ध। कायदे का पाबंद। ६. उद्यत। तैयार। सन्नदध। ७. जिसमे इंद्रियों और मन को वश में किया हो। चित्तवृत्ति का निरोध करनेवाला। निग्रही। ८. हद के भीतर रखा हुआ। उचित सीमा के भीतर रोका हुआ। जैसे,—संयत आहार। यौ०—संयतचेता = संयत चित्तवाला। संयत प्राण। संयतमना = संयत चित्तवाला। संयतमुख = दे० 'संयतवाक्'। संयतमैथुन = जो मैथुन का त्याग कर चुका हो। संयतवस्त्र = चुस्त कपड़े पहिननेवाला। संयतवाक् = कम बोलनेवाला।
⋙ संयत (२)
संज्ञा पुं० १. शिव का एक नाम। २. योगी।
⋙ संयतप्राण
वि० [सं०] जिसने प्राणवायु या श्वास को वश में किया हो। प्राणयाम करनेवाला।
⋙ संयतांजलि
वि० [सं० संयताञ्जलि] बदधांजलि।
⋙ संयताक्ष
वि० [सं०] जिसकी आँखें खुली न हों। बंद या मुँदी आँखवाला [को०]।
⋙ संयतात्मा
वि० [सं० संयतात्मन्] जिसने मन को वश में किया हो। चितवृत्ति का निरोध करनेवाला।
⋙ संयताहार
वि० [सं०] भोजन में संयम रखनेवाला। अल्पाहारी [को०]।
⋙ संयति
संज्ञा स्त्री० [सं०] वश में रखना। निरोध। रोक।
⋙ संयतद्रिय
वि० [सं० संयतेन्द्रिय] जिसने इंद्रियों को वश में कर रखा हो [को०]।
⋙ संयतोपस्कर
वि० [सं०] व्यवस्थित घरवाला। जिसके घर की साजसज्जा व्यवस्थित हो [को०]।
⋙ संयत्त
वि० [सं०] १. तत्पर। तैयार। उद्यत। २. अवहित। सावधान। सतर्क [को०]।
⋙ संयत्ता
वि० [सं० संयत्तृ] संयमन करनेवाला। नियंता [को०]।
⋙ संयत्वर
वि० [सं०] १. मौन। चुप। २. पशुसमूह [को०]।
⋙ संयद्वसु (१)
वि० [सं०] बहुत धनवाला। धनवान।
⋙ संयद्वसु (२)
संज्ञा पुं० सूर्य की सात किरणों में से एक।
⋙ संयद्वाम
वि० [सं०] १. अभिमत। सुखकर। २. प्रिय को एकत्र करने अथवा मिलानेवाला [को०]।
⋙ संयम
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संयमो, संयमित, संयत] १. रोक। दाब। वश में रखने की क्रिया या भाव। २. इंद्रियनिग्रह। मन और इंद्रियों को वश में रखने की क्रिया। चित्तवृत्ति का निरोध। ३. हानिकारक या बुरी वस्तुओं से बचने की क्रिया। परहेज। जैसे,—संयम से रहो तो जल्दी अच्छे हो जाओगे। ४. बाँधना। बंधन। जैसे,—केश संयम। ५. बंद करना। मुँदना। ६. योग में ध्यान, धारण और समाधि या उनका साधन। ७. प्रयत्न। उद्योग। कोशिश। ८. धूम्राक्ष के एक पुत्र का नाम। ९. प्रलय। १०. धार्मिक व्रत, अनुष्ठान आदि (को०)। ११. तपश्चरण। तपस्या (को०)। १२. मनुष्यता। मानवता। आदमियत (को०)। १३. व्रत, अनुष्ठान आदि करने के पूर्व किया जानेवाला धार्मिक कृत्य (को०)। १४. विनाश (को०)।
⋙ संयमक
वि० [सं०] १. नियंता। नियंत्रण करनेवाला। २. संयम करनेवाला। वृत्तियों का निरोध करनेवाला। संयमी [को०]।
⋙ संयमन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. रोक। २. दमन। दबाव। निग्रह। ३. आत्मनिग्रह। मन को वश में रखना। ४. बंद रखना। कैद रखना। ५. बंधन में बाँधना। जकड़ना। कसना। ६. खींचना। तानना (लगाम आदि)। ७. यमपुर। ८. वह प्रांगण जो चारो ओर चार मकान होने से बन जाय (को०)। २. वह जो संयमन करता हो (को०)।
⋙ संयमन (२)
वि० नियंता। नियामक [को०]।
⋙ संयमनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] यमराज की नगरी। यमपुरी जो मेरु पर्वत पर मानी गई है। उ०—इतनी बात के सुनते ही अर्जुन धनुष बाण ले वहाँ से उठा और चला चला संयमनी पुरी में धर्मराज के पास गया।—लल्लू (शब्द०)।
⋙ संयमित (१)
वि० [सं०] १. रोक में रखा हुआ। काबू में लाया हुआ। २. दमन किया हुआ। ३. बँधा हुआ। कसा हुआ। ४. पकड़ में लाया हुआ। कसकर पकड़ा हुआ। ५. जो मन को रोके हो। इंद्रियनिग्रही। ६. बंदी। कैदी (को०)। ७. धार्मिक प्रवृत्तिवाला (को०)। ८. एकत्रित (को०)।
⋙ संयमित (२)
संज्ञा पुं० स्वरों का नियंत्रण [को०]।
⋙ संयमिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'संयमनी' [को०]।
⋙ संयमी (१)
वि० [सं० संयमिन्] १. रोक या दबाव में रखनेवाला। काबू में रखनेवाला। २. मन और इंद्रियों को वश में रखनेवाला। आत्मनिग्रही। योगी। ३. जो बँधा हुआ या बंधन में हो। बद्ध (को०)। ४. बुरी या हानिकारक वस्तुओं से बचनेवाला। परहेजगार।
⋙ संयमी (२)
संज्ञा पुं० १. शासक। राजा। २. यति। ऋषि (को०)।
⋙ संयम्य
वि० [सं०] जो संयमन करने लायक हो। नियंत्रण या दमन करने के योग्य [को०]।
⋙ संयात
वि० [सं०] १. एक साथ गया हुआ। साथ साथ लगा हुआ। २. आगत। पहुँचा हुआ। प्राप्त। दाखिल।
⋙ संयाति
संज्ञा पुं० [सं०] १. नहुष के एक पुत्र का नाम। २. बहुगव या प्रचिन्वान् के पुत्र का नाम।
⋙ संयात्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. साथ साथ जाना। सहयात्रा। २. समुद्री यात्रा [को०]।
⋙ संयान
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संयात, संयायी] १. सहगमन। साथ जाना। २. यात्रा। सफर। यौ०—उत्तम संयान = मुरदे को ले चलना। ३. प्रस्थान। रवानगी। ४. गाड़ी। शकट। ५. घोड़ों को नियत्रण में रखना (को०)। ६. आकार। आकृति। साँचा (को०)।
⋙ सयाम
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'संयम' [को०]।
⋙ सयाव
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का पकवान या मिठाई। पिराक। गोझिया।
⋙ संयुक्
वि० [सं० संयुज्] १. संबंद्ध। जड़ा हुआ। २. गुणवान् [को०]।
⋙ संयुक्त
वि० [सं०] १. जुड़ा हुआ। लगा हुआ। २. मिला हुआ। जैसे,—संयुक्त अक्षर। ३. संबंद्ध। लगाव रखता हुआ। ४. सहित। साथ। ५. पूर्ण। लिए हुए। समन्वित। ७. संबंधी (को०)। ८. विवाहित (को०)। ९. संमिलित रूप से करनेवाला। १०. जड़ा हुआ (को०)। यौ०—संयुक्त कुटुंब, संयुक्त परिवार = वह कुटुंब जिसमें परिवार के सभी लोग साथ मिलकर रहते हैं।
⋙ संयुक्ता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. भगवतवल्ली। आवर्तकी लता। २. एक छंद का नाम। ३. जयचंद की कन्या।
⋙ संयुग
संज्ञा पुं० [सं०] १. मेल। मिलाप। संयोग। समागम। २. भिड़ना। भिड़ंत। ३. युद्ध। लड़ाई। उ०—रोप्यो रन रावन, बोलाए बीर बानइत जानत जे रीति सब संयुग समाज की। चली चतुरंग चमू, चपरि हने निसान, सेना सराहन जोग राति- चरराज की।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ संयुगगोष्पद
संज्ञा पुं० [सं०] मामूली झगड़ा। सामन्य बात पर कलह [को०]।
⋙ संयुगमूर्द्धा
संज्ञा पुं० [सं० संयुगमूर्धन्] युद्ध का अग्रिम मोरचा [को०]।
⋙ संयुज्
वि०, संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'संयुक्'।
⋙ संयुजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] मेल। मिलान। जोड़ [को०]।
⋙ संयुत (१)
वि० [सं०] १. जुड़ा हुआ। मिला हुआ। बँधा हुआ। २. संबंद्ध। एक साथ लगा हुआ। ३. सहित। साथ। ४. समन्वित।
⋙ संयुत (२)
संज्ञा पुं० एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में एक सगण, दो जगण और एक गुरु होता है।
⋙ संयुति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. (गणित में) दो या दो से अधिक संख्याओं का योगफल। २. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दो नक्षत्रों का योग [को०]।
⋙ सयोग
संज्ञा पुं० [सं०] १. दो वस्तुओं का एक में या एक साथ होना। मेल। मिलान। मिलावट। मिश्रण। २. समागम। मिलाप। विशेष—यह शृंगार रस के दो भेदों में से एक है। इसी को संभोग शृंगार भी कहते हैं। ३. लगाव। संबंध। ४. सहवास। स्त्री पुरुष का प्रसंग। ५. विवाह संबंध। ६. दो राजाओं की किसी बात के लिये संधि। ७. किसी विषय पर भिन्न व्यक्तियों का एकमत होना। मतैक्य। 'भेद' का उलटा। ८. दो या अधिक व्यंजनों का मेल। ९. जोड़। योग। मीजान। १०. दो या कई बातों का इकट्ठा होना। इत्तफाक। जैसे—(क) जब जैसा संयोग होता है, तब वैसा होता है। (ख) यह तो एक संयोग की बात है। ११. न्याय के २४ गुणों में से एक (को०)। १२. संचय। समान या पूरक वस्तुओं का समुदाय (को०)। १३. शिव (को०)। १४. भौतिक संपर्क (को०)। मुहा०—संयोग से=बिना पहले से निश्चित हुए। इत्तफाक से। दैववशात्। जैसे,—यदि संयोग से वे आ जाते, तो झगड़ा हो जाता।
⋙ संयोगपृथक् त्व
संज्ञा पुं० [सं०] न्याय के अनुसार ऐसा पृथक्त्व या अलगाव जो नित्य न हो।
⋙ संयोगमत्र
संज्ञा पुं० [सं० संयोगमन्त्र] विवाह के समय पढ़ा जानेवाला वेदमंत्र।
⋙ संयोगविरुद्ध
संज्ञा पुं० [सं०] वे पदार्थ जो परस्पर मिलकर खाने योग्य नहीं रहते; और यदि खाए जायँ तो रोग उत्पन्न करते हैं। जैसे,—बराबर मात्रा में घी और मधु, मछली और दूध।
⋙ संयोग शृंगार
संज्ञा पुं० [सं० संयोग श्रृङ्गार] शृंगार रस का एक भेद जिसमें नायक नायिका के मिलन आदि का वर्णन होता है [को०]।
⋙ संयोग संधि
संज्ञा स्त्री० [सं० संयोगसन्धि] कामंदकीय नीति शास्त्र के अनुसार वह संधि जो किसी उद्देश्य से चढ़ाई करने के उपरांत उसके संबंध में कुछ तै हो जाने पर की जाय। (कामंदक)।
⋙ संयोगित
वि० [सं०] संयोगयुक्त। संयोजित [को०]।
⋙ संयोगिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो अपने पति के साथ हो। वह स्त्री जो प्रिय से वियुक्ता न हो [को०]।
⋙ संयोगी
संज्ञा पुं० [सं० संयोगिन्] [स्त्री० संयोगिनी] १. मेल का। मिला हुआ। २. संयोग करनेवाला। मिलनेवाला। ३. वह पुरुष जो अपने प्रिया के साथ हो। ४. ब्याहा हुआ। विवाहित।
⋙ संयोजक
वि०, संज्ञा पुं० [सं०] १. मिलानेवाला। २. व्याकरण में वह शब्द जो शब्दों या वाक्यों के बीच केवल जोड़ने के लिये आता है। ३. किसी सभा, समिति या किसी प्रकार के कार्य की योजना करनेवाला (को०)। ४. घटित या निर्मित करनेवाला (को०)।
⋙ संयोजन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संयोगी, संयोजनीय, संयोज्य, संयोजित] १. जोड़ने या मिलाने की क्रिया। २. सहवास। स्त्री पुरुष का प्रसंग। ३. संसार के बंधन में रखनेवाला। भवबंधन का कारण (बौद्ध)। ४. आयोजन। व्यवस्था। प्रबंध। इंतजाम।
⋙ संयोजना
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. आयोजन। व्यवस्था। इंतजाम। तैयारी। २. मेल। मिलान। ३. सहवास। स्त्री पुरुष का प्रसंग। ४. भवबंधन का कारण। जन्म मरण के चक्र में बद्ध रखनेवाली बातें (बौद्ध)।विशेष—कामराग, रूपराग, अरूपराग, परिघ, मानस, दृष्टि, शीलव्रतपरभार्ष, विचिकित्सा, औद्धत्य और अविद्या इन सबकी गणना संयोजना में होती है।
⋙ संयोजनीय
वि० [सं०] जिसका संयोजन किया जा सके। संयोजन करने के योग्य।
⋙ संयोजित
वि० [सं०] मिलाया हुआ। जोड़ा हुआ।
⋙ संयोज्य
वि० [सं०] १. संयोजन के योग्य। मिलाने योग्य। २. जो मिलाया या जोड़ा जानेवाला हो।
⋙ संयोध
संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध। संग्राम [को०]।
⋙ संयोधकंटक
संज्ञा पुं० [सं० संयोगकण्टक] १. युद्ध का काँटा। २. एक यक्ष का नाम।
⋙ सरजन (१)
वि० [सं० सरञ्जन] १. प्रसन्न करने या रंजन करनेवाला। आनंद देनेवाला [को०]।
⋙ सरजन (२)
संज्ञा पुं० मन को प्रसन्न करना। रंजन करना [को०]।
⋙ सरभ
संज्ञा पुं० [सं० संरम्भ] १. ग्रहण करना। पकड़ना। २. आतु- रता। आवेग। क्षोभ। उद्विग्नता। ३. खलबली। बेकली। ४. उत्कंठा। लालसा। शौक। उत्साह। ५. क्रोध। कोप। ६. शोक। ७. ऐंठ। ठसक। गर्व। ८. फोड़े या घाव का सूजना या लाल होना (सुश्रुत)। ९. घनत्व। अधिकता। अतिरेक। बहुतायत। १०. आरंभ। शुरू। ११. एक अस्त्र का नम। १२. गर्हा। जुगुप्सा। घृणा (को०)। १३. आक्रमण की प्रचंडता (को०)। यौ०—संरंभताम्र=जो क्रोध या क्षोभ से लाल हो। संरंभदृक्= क्रोध से जिसकी आँखें लाल हो गई हों। सरंभपरुष=जो क्रोध के कारण कठोर या परुष हो। संरंभरस=अत्यंत क्रुद्ध। क्रोधपूर्ण। संरंभरूक्ष=क्रोध के कारण अत्यंत कठोर। संरंभवेग=क्रोध का आवेश। क्रोधावेश।
⋙ संरंभी
वि० [सं० संरम्भिन्] १. क्रुद्ध। कोपाविष्ट। २. उत्तेजित। विक्षुब्ध। ३. घमंडी। अहंकारी। ४. उद्योगी। व्यव- सायी [को०]।
⋙ संरक्त
वि० [सं०] १. अनुरक्त। आसक्त। प्रेममग्न। २. सुंदर। मनोहर। ३. कुपित। क्रोध से लाल। ४. रंगीन। लाल (को०)। ५. आवेश से भरा हुआ (को०)।
⋙ संरक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] देखभाल। रक्षण। [को०]।
⋙ संरक्षक
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० संरक्षिका] १. रक्षा करनेवाला। रक्षक। २. देखरेख और पालन पोषण करनेवाला। ३. सहा- यक। ४. आश्रय देनेबाला।
⋙ संरक्षकता
संज्ञा स्त्री० [सं०] संरक्षक होने का भाव। देखरेख करना [को०]।
⋙ संरक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संरक्षी, संरक्षित, संरक्ष्य, संरक्षणीय] १. हानि या नाश आदि से बचाने का काम। हिफाजत। २. देखरेख। निगरानी। जैसे,—बालक उनके संरक्षण में है। ३. अधिकार। कब्जा। ४. रोक। प्रतिबंध। ५. रख छोड़ना।
⋙ संरक्षणीय
वि० [सं०] [वि० स्त्री० संरक्षणीया] १. रक्षा करने योग्य। हिफाजत के लायक। २. रख छोड़ने लायक।
⋙ संरक्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'संरक्ष'।
⋙ संरक्षित
वि० [सं०] [वि० स्त्री० संरक्षिता] १. भलीभाँति रक्षित। हिफाजत से रखा हुआ। २. अच्छी तरह बचाया हुआ।
⋙ संरक्षितव्य
वि० [सं०] १. जिसका संरक्षण करना हो। २. जिसका संरक्षण उचित हो।
⋙ संरक्षितो
वि० [सं० संरक्षितिन्] रक्षा करनेवाला। जिसने रक्षण किया है [को०]।
⋙ संरक्षी
वि० [सं० संरक्षिन्] [वि० स्त्री० संरक्षिणी] १. संरक्षण करने वाला। २. देखभाल करनेवाला।
⋙ संरक्ष्य
वि० [सं०] १. जिसका संरक्षण करना हो। २. जिसका संरक्षण उचित हो।
⋙ संरब्ध
वि० [सं०] १. खूब मिला हुआ। खूब जुड़ा हुआ। आश्लिष्ट। २. जो एक दूसरे को खूब पकड़े हुए हो। ३. हाथ में हाथ मिलाए हुए। ४. क्षुब्ध। उद्विग्न। ५. जोश में आया हुआ। उत्तेजित। ६. क्रोध से भरा हुआ। कोपपूर्ण। जैसे,— संरंब्ध वचन। ७. क्रुद्ध। नाराज। ८. सूजा हुआ। फूला हुआ। ९. बढ़ा हुआ। वर्धित (को०)।
⋙ संराग
संज्ञा पुं० [सं०] १. लाली। २. राग। प्रेम। प्यार। ३. उग्रता। क्रोध [को०]।
⋙ संराद्ध
वि० [सं०] १. संपन्न। पूरा किया हुआ। २. लब्ध। प्राप्त [को०]।
⋙ संराद्धि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कार्य की पूर्णता। सफलता। २. प्राप्ति [को०]।
⋙ संराधक
संज्ञा पुं० [सं०] ध्यान करनेवाला। आराधना करनेवाला। पूजा करनेवाला।
⋙ संराधन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संराधनीय, संराधित, संराध्य] १. तुष्टोकरण। प्रसन्न करना। २. पूजा करना। पूजा द्वारा प्रसन्न या तुष्ट करना। ३. ध्यान। ४. जय जयकार।
⋙ संराधनीय
वि० [सं०] पूजा के योग्य।
⋙ संराधित
वि० [सं०] जिसे पूजा आदि के द्वारा प्रसन्न किया गया हो [को०]।
⋙ संराध्य
वि० [पुं०] १. जो ध्यान के द्वारा प्राप्य हो। २. तुष्ट या प्रसन्न करने योग्य। ३. जिसे अनुकूल किया जा सके [को०]।
⋙ संराव, संरावण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संरावी] १. कोलाहल। शोर। २. हलचल। धूम।
⋙ संरावी
वि० [सं० संराविन्] कोलाहल करनेवाला [को०]।
⋙ संरिहाण
संज्ञा पुं० [सं०] प्रेमपूर्वक चाटने की क्रिया। जैसे, गौ का बछड़े को चाटना [को०]।
⋙ संरुग्ण
वि० [सं०] छिन्न भिन्न। खंडित। चूर चूर।
⋙ संरुजन
संज्ञा पुं० [सं०] दर्द। पीड़ा। व्यथा [को०]।
⋙ संरुद्ध
वि० [सं०] १. अच्छी तरह रोका हुआ। २. घेरा हुआ। ३. अच्छो तरह बंद। ४. आच्छादित। ढँका हुआ। ५. ठसाठस भरा हुआ। ६. मना किया हुआ। वर्जित। ७. रुका हुआ (को०)। ८. अवरुद्ध। घिरा हुआ (को०)।यौ०—संरुद्ध चेष्ट=जिसकी चेष्टा या क्रिया रोक दी गई हो। रुद्ध चेष्टावाला। संरुद्ध प्रजनन=जिसकी प्रजनन शकित रोक दी गई हो।
⋙ सरुषित
वि० [सं०] चिढ़ा हुआ। कोपयुक्त। क्रुद्ध [को०]।
⋙ संरूढ
वि० [सं०] १. अच्छी तरह चढ़ा हुआ। २. खूब जमा हुआ। अच्छी तरह लगा हुआ। जिसने खूब जड़ पकड़ी हो। ३. अंकुरित। जमा हुआ। ४. अंगूर फेंकता हुआ। पूजता हुआ। सूखता या अच्छा होता हुआ (घाव)। ५. प्रकट। आविर्भूत। निकल पड़ा हुआ। ६. धृष्ट। प्रगल्भ। ७. प्रौढ़। दृढ़। ८. गहराई तक घुसा हुआ। जैसे, बाण (को०)।
⋙ संरोचन
संज्ञा पुं० [सं०] रामायण में वर्णित एक पर्वत का नाम।
⋙ संरोदन
संज्ञा पुं० [सं०] शूब जोर से रोना [को०]।
⋙ संरोध
संज्ञा पुं० [सं०] १. रोक। छेंक। रुकावट। २. गढ़ आदि को चारों ओर से घेरना। घेरा। ३. परिमिति। हदबंदी। ४. बंद करने या मूँदने की क्रिया। ५. अड़चन। बाधा। प्रतिबंध। ६. हिंसा। नाश। ७. क्षेप। फेंकना। ८. बंधन। शृंखला (को०)। ९. क्षति। हानि (को)। १०. कैद। बंधन (को०)।
⋙ संरोधन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संरोधनीय, संरोध्य, संरुद्ध] १. रोकना। छेंकना। रुकावट डालना। २. घेरना। ३. हद बाँधना। ४. बंद करना। मूँदना। ५. बाधा डालना। कार्य में हानि पहुँचाना। ६. बंदी करना। कैद करना।
⋙ संरोधनीय
वि० [सं०] रोकने, छेंकने या घेरने योग्य।
⋙ संरोध्य
वि० [सं०] १. जो रोका, छेंका या घेरा जानेवाला हो। २. जिसे रोकना या घेरना उचित हो। ३. जो बंधन में डालने योग्य हो (को०)।
⋙ संरोपण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संरोपणीय, संरोपित, संरोप्य] १. पेड़ पौधा लगाना। जमाना। बैठाना। २. घाव सुखाना। घाव अच्छा करना। ३. घाव पूजना। फोड़ा भरना।
⋙ संरोपित
वि० [सं०] जमाया, रोपा या लगाया हुआ।
⋙ संरोप्य
वि० [सं०] १. जो जमाया या लगाया जानेवाल हो। २. जिसे जमाना या लगाना उचित हो।
⋙ संरोषित
वि० [सं०] १. ऊपर लगाया हुआ। छोपा हुआ। लेप किया हुआ।(सुश्रुत)।
⋙ संरोह
संज्ञा पुं० [सं०] १. जमना। ऊपर छाना या बैठना। २. घाव पर पपड़ी जमना। घाव सूखना। अंगूर फेंकना। ३. अंकुरित होना। जमना। ४. प्रकट होना। आविर्भूत होना।
⋙ संरोहण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संरोहणोय, संरोही] १. जमना। ऊपर छाना। २. घाव पर पपड़ी जमना। घाव सूखना। ३. (पेड़ पौधा) जमाना। लगाना।
⋙ संलंघन
संज्ञा पुं० [सं० संलङ्घन] बीत जाना। व्यतीत होना [को०]।
⋙ संलंघित
वि० [सं० संलङ्घित] बीता हुआ। अतीत। गत [को०]।
⋙ संलक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संलक्षणीय, संलक्षित, संलक्ष्य] १. रूप निश्चित करना। विशेष लक्षणों द्वारा भेद स्पष्ट करना। २. लखना। पहचानना। तमीज करना। ताड़ना।
⋙ संलक्षित
वि० [सं०] १. लखा हुआ। पहचाना हुआ। ताड़ा हुआ। २. रूप निश्चित किया हुआ। लक्षणों से जाना हुआ।
⋙ संलक्ष्य
वि० [सं०] १. जो लखा जाय। जो पहचाना जाय। जो देखने में आ सके। २. जो लक्षणों से जाना जा सके। जो लक्षणों द्वारा लक्षित हो सके।
⋙ संलक्ष्यक्रम व्यंग्य
संज्ञा पुं० [सं०] साहित्य शास्त्र के अनुसार व्यंग्य के दो भेदों में से एक। वह व्यंजना जिसमें वाच्यार्थ से व्यंगार्थ की प्राप्ति का क्रम लक्षित हो। विशेष—इसकी द्वारा वस्तु और अलंकार की व्यंजना होती है। जैसे, 'पेड़ का पत्ता नहीं हिलता' इसका व्यंग्यार्थ हुआ कि 'हवा नहीं चलती'। इसमें वाच्यार्थ के उपरांत व्यंग्यार्थ की प्राप्ति लक्षित होती है। इसके विपरीत जहाँ रसव्यंजना या भाव- व्यंजना में क्रम लक्षित नहीं होता, उसे असंलक्ष्यक्रम व्यंग्य कहते हैं।
⋙ संलग्न
वि० [सं०] १. बिल्कुल लगा हुआ। सटा हुआ। मिला हुआ। २. भिड़ा हुआ। लड़ाई में गुथा हुआ। ३. संबद्ध। जुड़ा हुआ। ४. निमग्न। संलीन (को०)।
⋙ संलपन
संज्ञा पुं० [सं०] इधर उधर की बात चीत। प्रलाप। गपशप।
⋙ संलप्तक
संज्ञा पुं० [सं०] शिष्ट व्यक्ति। वह व्यक्ति जिससे बात चीत की जा सके [को०]।
⋙ संलब्ध
वि० [सं०] प्राप्त। पाया हुआ। गृहीत [को०]।
⋙ संलय
संज्ञा पुं० [सं०] १. पक्षियों का उतरना या नीचे बैठना। २. लीन होने की क्रिया। घुल जाना। ३. प्रलय। ४. निद्रा। नींद। लेटना। ५. घोंसला (को०)।
⋙ संलयन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संलीन] १. पक्षियों का नीचे उतरना या बैठना। २. लय को प्राप्त होना। लीन होन। ३. नष्ट होना। व्यक्त न रहना। ४. दे० 'संलय'।
⋙ संलाप
संज्ञा पुं० [सं०] १. परस्पर वार्तालाप। आपस की बातचीत। प्रेमपूर्ण वार्तालाप या कथोपकथन (को०)। ३. गुप्त बातचीत। गोपनीय वार्ता (को०)। ४. स्वयं कुछ कहना। प्रिय या प्रिया के गुणों का प्रलपन् (को०)। ५. नाटक में एक प्रकार का संवाद जिसमें क्षोभ या आवेग नहीं होता, पर धीरता होती है।
⋙ संलापक
संज्ञा पुं० [सं०] १. नाटक में एक प्रकार का संवाद। संलाप। २. एक प्रकार का उपरूपक या छोटा अभिनय।
⋙ संलापित
वि० [सं०] जिससे वार्तालाप किया गया गया हो। जिससे कहा गया हो [को०]।
⋙ संलापी
वि० [सं० संलापिन्] बातचीत या गपशप करनेवाला [को०]।
⋙ संलालित
वि० [सं०] जिसका भलीभाँति लालन किया गया हो [को०]।
⋙ संलिप्त
वि० [सं०] १. लीन। भली भाँति लिप्त। २. खूब लगा हुआ।
⋙ संलीढ़
वि० [सं० संलीढ] १. अच्छी तरह चाटा हुआ। जिसे खूब चखा गया हो। २. जिसका भोग किया गया हो [को०]।
⋙ संलीन
वि० [सं०] १. खूब लीन। अच्छी तरह लगा हुआ। २. आच्छादित। ढका हुआ। छिपा हुआ। ३. संकुचित। सिकुड़ा हुआ। ४. जो घुलकर एकरूप हो। विलीन। गर्क (को०)। यौ०—संलीन कर्ण=जिसके कान नमित या लटके हों। संलीन मानस=खिन्नमन। उदास।
⋙ संलुलित
वि० [सं०] १. जो ठीक दशा में न हो। क्षुब्ध। अस्त- व्यस्त। २. संपर्क या संसर्ग प्राप्त [को०]।
⋙ संलेख
संज्ञा पुं० [सं०] पूर्ण संयम। (बौद्ध)।
⋙ संलेप
संज्ञा पुं० [सं०] कर्दम। कीचड़ [को०]।
⋙ संलोडन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संलोड़ित] १. (जल आदि को) खूब हिलाना या चलाना। क्षुब्ध करना। मथना। २. खूब हिलाना डुलाना। झकझोरना। ३. उलट पुलट करना। उथल पुथल करना। गड़बड़ करना।
⋙ संवत् (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. वर्ष। संवत्सर। साल। २. वर्ष विशेष जो किसी संख्या द्वारा सूचित किया जाता है। चली आती हुई वर्ष गणना का कोई वर्ष। सन्। जैसे,—यह कौन संवत् है ? ३. महाराज विक्रमादित्य के काल से चली हुई मानी जानेवाली वर्षगणना। ४. संग्राम। युद्ध (को०)।
⋙ संवत् (२)
संज्ञा स्त्री० भूमिविशेष। वह भूमि जो मिट्टी खनने के लिये प्रशस्त एवं पाषाण आदि से रहित हो [को०]।
⋙ संवत पु
संज्ञा पुं० [सं० संवत्] दे० 'संवत्'। उ०—चंद्र नाग वसु पंच गिनि संवत माधव मास।—छिताई० (परिचय), पृ० ५।
⋙ संवत्सर
संज्ञा पुं० [सं०] १. वर्ष। साल। २. पाँच पाँच वर्ष के युगों का प्रथम वर्ष। विशेष—प्रभवादि साठ संवत्सर १२ युगों में विभक्त हैं जिसमें से प्रत्येक युग पाँच वर्ष का होता है। प्रत्येक युग के प्रथम वर्ष का नाम संवत्सर है। इसका देवता अग्नि कहा गया है। ३. शिव का एक नाम। ४. विक्रम संवत् (को०)। यौ०—संवत्सरकर। संवत्सरनिरोध=एक वर्ष की कैद। बरस भर का कारावास। संवत्सरफल=साल का शुभाशुभ फल। संवत्सरभुक्ति=सूर्य का एक वर्ष का मार्ग। संवत् सरभृत=जो एक वर्ष के लिये रखा हो। संवत्सरभ्रमि=वर्ष भर में परिक्रमा पूरी करंनेवाला, जैसे सूर्य। संवत्सरमुखी=ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की दशमी। संवत्सररय=एक वर्ष का पथ। वर्ष भर की राह।
⋙ संवत्सरकर
संज्ञा पुं० [सं०] शिव [को०]।
⋙ संवत्सरीय
वि० [सं०] संवत्सर से संबद्ध। वार्षिक। साल वाला। साल का [को०]।
⋙ संवदन
संज्ञा पुं० [सं०] १. परस्पर कथन। बातचीत। २. संवाद। सँदेशा। पैगाम। ३. विचार। आलोचन। ४. जाँच। ५. जादू या मंत्र के द्वारा वश में करना (को०)। ६. यंत्र। तावीज (को०)।
⋙ संवदना
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वश में करने की क्रिया। वशीकरण। २. मंत्र, ओषधि आदि से किसी को वश में करने की क्रिया। दे० 'संवदन'।
⋙ संवनन
संज्ञा पुं० [सं०] दे० १. 'संवदन'। २. यंत्र मंत्र आदि के द्वारा स्त्रियों को फँसाना। ३. प्राप्ति। उपलब्धि (को०)। ४. अनुराग। आसक्ति। प्रीति (को०)।
⋙ संवनना
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'संवदना'।
⋙ संवपन
संज्ञा पुं० [सं०] बीज वपन करने की क्रिया। खेत में बीज छीटना या बोना [को०]।
⋙ संवर
संज्ञा पुं० [सं०] १. रोक। परिहार। दूर करना। जैसे,— कालसंवर। २. इंद्रियानिग्रह। मन को दबाना या वश में करना। ३. बौद्ध मतानुसार एक प्रकार का व्रत। ४. बाँध। बंद। ५. पुल। सेतु। ६. चुनना। पसंद करना। ७. कन्या का वर चुनना। ८. आच्छादन। आवरण (को०)। ९. बोध। समझ (को०)। १०. आड़ या ओट करना। संकोचन (को०)। ११. एक प्रकार का हिरन (को०)। १२. एक राक्षस का नाम दे० 'शंबर' (को०)। १३. छिपाव। दुराव। गोपन (को०)। १४. पानी। जल (को०)। १५. एक प्रकार की मछली (को०)। १६. अपने को दृश्यमान संसार से दूर करना। (जैन)।
⋙ संवरण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवरणीय, संवृत्त] १. हटाना। दूर रखना। रोकना। २. बंद करना। ढाँकना। ३. आच्छादित करना। छोपना। ४. छिपाना। गोपन करना। ५. छिपाव। दुराव। ६. ढक्कन या परदा। ७. घेरा। जिसके भीतर सब लोग न जा सकें। बाँध। बंद। ९. सेतु। पुल। १०. किसी चित्रवृत्ति को दबाने या रोकने की क्रिया। निग्रह। जैसे,— क्रोध संवरण करना। ११. गुदा के चमड़े की तीन परतों में से एक। १२. कुरु के पिता का नाम। १३. लेने के लिये पसंद करना। चुनना। १४. कन्या का विवाह के लिये वर या पति चुनना। १५. गुप्तभेद। रहस्य (को०)। १६. कपट। व्याज। छद्म (को०)।
⋙ संवरणीय
वि० [सं०] १. निवारण करने योग्य। रोकने लायक। २. संगोपनीय। ३. विवाह के योग्य। वरने योग्य।
⋙ संवर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवर्ग्य] १. अपनी ओर समेटना। अपने लिये बटोरना। २. भक्षण। भोजन। चट कर जाना। ३. खपत। लग जाना। ४. एक वस्तु का दूसरी में समा जाना या लीन हो जाना। जेसे, जीव का ब्रह्म में लीन होना। यौ०—संवर्गविद्या=विलय, तल्लीनता अथवा रूपांतर प्राप्ति का ज्ञान। ५. गुणनफल। ६. अग्नि का एक नाम (को०)। ७. बलात् ले लेना। अपहरण करना (को०)।
⋙ संवर्गण
संज्ञा पुं० [सं०] अपना लेना। आकर्षित करना। जैसे,— मित्र संवर्गण [को०]।
⋙ संवर्ग्य
वि० [सं०] संवर्ग करने योग्य। गुणित करने योग्य [को०]।
⋙ संवर्जन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवर्जनीय, संवर्जित, संवृक्त] १. छीनना। खसीटना। ले लेना। हरण करना। २. खा जाना। उड़ा जना।
⋙ संवर्त
संज्ञा पुं० [सं०] १. जुटना। भिड़ना। (शत्रु से)। २. लपेटने की क्रिया भाव। लपेट। ३. फेरा। घुमाव। चक्कर। ४. प्रलय। कल्पांत। ५. एक कल्प का नाम। ६. लपेटी या बटोरी हुई वस्तु। ७. पिंडी। गोला। ८. बट्टी। टिकिया। ९. घना समूह। घनी राशि। १०. प्रलयकाल के सात मेघों में से एक। ११. इंद्र का अनुचर एक मेघ जिससे बहुत जल बरसता है। विशेष—मेघों के द्रोण, आवर्त्त, पुष्कलावर्त आदि कई नाम कहे गए हैं। जिस प्रकार आवर्त बिना जल का माना गया है, उसी प्रकार संवर्त अत्यंत अधिक जलवाला कहा गया है। १२. मेघ। बादल। १३. संवत्सर। वर्ष। १४. एक दिव्यास्त्र। १५. एक केतु का नाम। १६. निश्चित समय पर होनेवाला प्रलय। खड प्रलय (को०)। १७. संकोच। आकुंचन (को०)। १८. ग्रहों का एक योग। १९. विभीतक। बहेड़ा।
⋙ संवर्तक (१)
वि० [सं०] १. लपेटनेवाला। २. लय या नाश करनेवाला।
⋙ संवर्तक (२)
संज्ञा पुं० १. कृष्ण के भाई बलराम। २. बलराम का अस्त्र। लांगल। हल। ३. बड़वानल। ४. विभीतक वृक्ष। बहेड़ा। ७. प्रलय नामक मेघ। ८. प्रलय मेघ की अग्नि। ९. एक नाग। १०. एक ऋषि।
⋙ संवर्तकल्प
संज्ञा पुं० [सं०] प्रलय का एक भेद। (बौद्ध)।
⋙ संवर्तकी
संज्ञा पुं० [सं० संवर्त्तकिन्] कृष्ण के भाई बलराम।
⋙ संवर्तकेतु
संज्ञा पुं० [सं०] एक केतु का नाम। विशेष—यह संध्या समय पश्चिम देश में उदय होता है और आकाश के तृतीयांश तक फैला रहता है। इसकी चोटी धूमिल रंग लिए ताम्र वर्ण की होती है। इसकी उदय का फल राजाओं का नाश कहा गया है।
⋙ संवर्तन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवर्तनीय, संवर्त्तित, संवृत्त] १. लपे- टना। २. फेरा या चक्कर देना। ३. किसी ओर फिरना। प्रवृत्त होना या करना। ४. पहुँचना। प्राप्त होना। ५. हल नामक अस्त्र। ६. हरिवंश के अनुसार एक दिव्यास्त्र [को०]।
⋙ संवर्तनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] सृष्टि का लय। प्रलय।
⋙ संवर्तनीय
वि० [सं०] लपेटने योग्य। फेरने योग्य।
⋙ संवर्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'संवर्त्तिका'।
⋙ संवर्तिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. लपेटी हुई वस्तु। २. बत्ती। दीप की शिखा। ३. कमल की बँधी पत्ती। ४. कोई बँधा हुआ पत्ता। ५. बलराम का अस्त्र, हल। लांगल। ६. वह पत्ती जो पराग केशर के पास हो (को०)।
⋙ संवर्तित
वि० [सं०] १. लपेटा हुआ। २. फेरा या घुमाया हुआ।
⋙ संवर्द्धक संवर्धक
वि०, संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० संवर्द्धिका] १. बढ़ानेवाला। वर्धन करनेवाला। २. अतिथियों का स्वागत सत्कार करनेवाला (को०)।
⋙ संवर्द्धन, संवर्धन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवर्द्धनीय, संवर्धित, संबृद्ध] १. वृद्धि को प्राप्त होना। बढ़ना। २. पालना। पोसना। ३. बढ़ाना। उन्नत करना। ४. (बाल आदि) बढोने का साधन (को०)।
⋙ संवर्द्धन, संवर्धन (२)
वि० संवर्द्धक। बढ़ानेवाला [को०]।
⋙ संवर्द्धनीय, संवर्धनीय
वि० [सं०] १. बढ़ने या बढ़ाने योग्य। २. पालने पोसने योग्य।
⋙ संवर्द्धित, संवर्धित
वि० [सं०] १. बढ़ा हुआ। २. बढ़ाया हुआ। ३. पाला पोसा हुआ।
⋙ संवर्मित
वि० [सं०] वर्म से युक्त। जिरहवक्तर पहने हुए [को०]।
⋙ संवल
संज्ञा पुं० [सं०] १. दे० 'संबल'। २. आधार। सहारा।
⋙ संवलन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवलनीय, संवलित] १. भिड़ना। जुटना (शत्रु से)। २. मेल। मिलान। संयोग। ३. मिलावट। मिश्रण।
⋙ संवलित
वि० [सं०] १. भिड़ा हुआ। जुटा हुआ (शत्रु से)। २. मिला हुआ। ३. युक्त। सहित। ४. घिरा हुआ। ५. त्रुटित। टूटा हुआ (को०)। ६. आर्द्र या तर किया हुआ (को०)। ७. मिश्रण युक्त। मिश्रित (को०)। ८. संबद्ध।
⋙ संवल्गन
संज्ञा पुं० [सं०] उछलना। उल्लसित होना [को०]।
⋙ संवल्गित (१)
वि० [सं०] अभिद्रवित। बरबाद [को०]।
⋙ संवल्गित (२)
संज्ञा पुं० ध्वनि [को०]।
⋙ संवसति
संज्ञा स्त्री० [सं०] बहुतों की एक साथ रहने की स्थिति। एक साथ वास करना [को०]।
⋙ संवसथ
संज्ञा पुं० [सं०] १. बस्तो। गाँव या कस्बा। २. निवास। वसति। घर (को०)।
⋙ संवसन
संज्ञा पुं० [सं०] निवास स्थान। गृह [को०]।
⋙ संवस्त्रण
संज्ञा पुं० [सं०] एक समान वस्त्र धारण करना [को०]।
⋙ संवह
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो वहन करता हो। वहन करनेवाला। ले जानेवाला। २. एक वायु जो आकाश के सात मार्गों में से तीसरे मार्ग में रहतो है। ३. अग्नि को सात जिह्वाओं में से एक।
⋙ संवहन
संज्ञा पुं० [सं०] १. वहन करना। ले जाना। ढोना। २. दिखाना। प्रजर्शित करना। व्यक्त करना। ३. अगुआई या नेतृत्व करना (को०)।
⋙ संवाच्य
संज्ञा पुं० [सं०] ६४ कलाओं में से एक का नाम। बातचीत करने या कथा कहने का ढंग।
⋙ संवाटिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] सिंघाड़ा। शृंगाटक।
⋙ संवाद
संज्ञा पुं० [सं०] १. बातचीत। कथोपकथन। खबर। हाल। समाचार। वृत्तांत। ३. प्रसंगकथा। चर्चा। ४. नियति। नियुक्ति। ५. मामला। मुकदमा। व्यवहार। ६. सहमति। एक राय। ७. स्वीकार। रजामंदी। ८. बहस। मुबाहसा। ९. सादृश्य। एकरूपता। जैसे, रूप संवाद (को०)। १०. समागम। भेंट। मिलन (को०)।
⋙ संवादक
वि०, संज्ञा पुं० [सं०] १. भाषण करनेवाला। बातचीत करनेवाला। २. सहामत होनेवाला। एक राय होनेवाला। ३. स्वीकार करनेवाला। माननेवाला। राजी होनेवाला। ४. बजानेवाला।
⋙ संवाददाता
संज्ञा पुं० [सं० संवाददातृ] संवाद देनेवाला। समाचार भेजनेवाला। समाचार पत्रों में स्थानीय समाचार भेजनेवाला वह व्यक्ति जो उस कार्य के लिये नियुक्त किया गया हो। (अं० लोकल रिपोर्टर)।
⋙ संवादन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवादनीय, संवादित, संवादी, संवाद्य] १. भाषण। बातचीत करना। २. सहमत करना। एकमत होना। ३. राजी होना। सामना। ४. बजाना।
⋙ संवादिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कीट। कीड़ा। २. पिपीलिका। च्यूँटी।
⋙ संवादित
वि० [सं०] १. बोलने में प्रवृत्त किया हुआ। बातचीत में लगाया हुआ। २. राजी किया हुआ। मनाया हुआ। ३. बजाया हुआ। वादित।
⋙ संवादिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सादृश्य। तुल्यता। समानता। २. एक मेल का होना।
⋙ संवादी (२)
वि० [सं० संवादिन्] [वि० स्त्री० संवादिनी] १. संवाद करनेवाला। बातचीत करनेवाला। २. सहमत होनेवाला। राजी होनेवाला। ३. अनुकूल होनेवाला। तुल्य। समान। ४. बजानेवाला।
⋙ संवादी (२)
संज्ञा पुं० संगीत में वह स्वर जो वादी के साथ सब स्वरों के साथ मिलता और सहायक होता है। जैसे,—पंचम से षडज तक जाने में बीच के तीन स्वर संवादी होंगे।
⋙ संवार
संज्ञा पुं० [सं०] १. आच्छादन। ढाँकना। छिपाना। २. शब्दों के उच्चारण में कंठ का आकुंचन या दबाव। ३. उच्चारण के बाह्य प्रयत्नों में से एक जिसमें कंठ का आकुंचन होता है। 'विवार' का उलटा। ४. बाधा। रोध। विघ्न। अड़चन। ५. अपचय। क्षय। ह्रास। घटती (को०)। ६. रक्षण। संरक्षण (को०)। ७. उपकल्पन। व्यवस्थापन (को०)।
⋙ संवारण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवारणीय, संवारित, संवार्य] १. हटाना। दूर करना। निवारण करना। २. रोकना। न आने देना। ३. निषेध करना। मना करना। ४. छिपाना। आवृत करना। ढाँकना।
⋙ संवारणीय
वि० [सं०] १. हटाने या दूर करने योग्य। २. रोकने योग्य। ३. छिपाने या ढाँकने योग्य।
⋙ संवारित
वि० [सं०] १. रोका हुआ। हटाया हुआ। २. मना किया हुआ। ३. ढाँका हुआ।
⋙ संवार्य
वि० [सं०] १. हटाने योग्य। दूर करने योग्य। २. मना करने योग्य। रोकने योग्य। ३. ढाँकने या छिपाने योग्य।
⋙ संवावदूक
वि० [सं०] १. ठीक ठीक कह देनेवाला। ज्यों का त्यों बताने या अभिव्यक्त करनेवाला। २. जो अतिशय तुल्यता का व्यंजक हो [को०]।
⋙ संवास
संज्ञा पुं० [सं०] १. साथ बसना या रहना। २. परस्पर संबंध। ३. सहवास। प्रसंग। मैथुन। ४. वह खुला हुआ स्थान जहाँ लोग विनोद या मन बहलाव के निमित्त एकत्र हों। ५. सभा। समाज। ६. मकान। घर। रहने का स्थान। वसति। ७. सार्वजनिक स्थान। ८. घरेलू व्यवहार (को०)।
⋙ संवासित
वि० [सं०] सुगंधित किया हुआ। बासा हुआ। सुवासित। २. जो पूतिगंध से युक्त हो। दुर्गंधयुक्त। जैसे, श्वास [को०]।
⋙ संवासी
वि० [सं० संवासिन्] १. एक साथ निवास करनेवाला। एक जगह रहनेवाला। २. स्थानविशेष का रहनेवाला। ३. परिधान- युक्त। जो बस्त्र धारण किए हो [को०]।
⋙ संवाह
संज्ञा पुं० [सं०] १. ले जाना। ढोना। २. पैर दबाना। ३. खुला उपवन जहाँ लोग एकत्र हों। ४. बाजार। मंडी। ५. पीड़न। सताना। जुल्म। ६. दे० 'मर्दनीक' (को०)। ८. सात वायुओं में से एक (को०)।
⋙ संवाहक
वि०, संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० संवाहिका] १. ले जानेवाला। २. ढोनेवाला। ३. बदन मलनेवाला। मर्दनीक। पैर दबानेवाला। पाँव पलोटनेवाल। ४. गति देनेवाला। चलानेवाला। संचालक (को०)।
⋙ संवाहन
संज्ञा पुं० [सं०] [संज्ञा स्त्री० संवाहना] [वि० संवाहनीय, संवाहित, संवाही, संवाह्य] १. उठाकर ले चलना। ढोना। २. ले जाना। पहुँचाना। ३. चलाना। परिचालन। ४. शरीर की मालिश। हाथ पैर दबाना या मलना। ५. जिसकी मालिश की गई हो। ६. (मेघों का) जाना। गमन (को०)।
⋙ संवाहित
वि० [सं०] १. ले गया हुआ। वाहित। २. पहुँचाया हुआ। ढोया हुआ। ३. चलाया हुआ। परिचालित। ४. जिसका शरीर मर्दन हुआ हो। जिसके हाथ पाँव दबाए गए हों।
⋙ संवाही
वि० [सं० संवाहिन्] [वि० स्त्री० संवाहिनी] १. ले जानेवाला। पहुँचानेवाला। २. ढोनेवाला। ३. चलानेवाला। ४. अंग मर्दन करनेवाला। हाथ पैर दबानेवाला।
⋙ संवाह्य
वि० [सं०] १. वहन करने योग्य। २. मलने योग्य। दबाने योग्य। ३. व्यक्त करने या दिखाने योग्य (को०)।
⋙ संविक्त
वि० [सं०] जिसको चुनकर अलग किया गया हो।
⋙ संविग्न
वि० [सं०] १. क्षुब्ध। उद्विग्न। घबराया हुआ। २. भीत। आतुर। डरा हुआ। ३. इतस्ततः आवागमन करता हुआ (को०)। यो०—संविग्नमानस, संविग्नहृदय=किंकर्तव्य विमूढ़। हतबुद्धि।
⋙ संविघ्नित
वि० [सं०] विघ्नयुक्त। अंतराययुक्त। जिसमे विघ्न डाला गया हो [को०]।
⋙ संविज्ञ
वि० [सं०] अच्छी तरह जानकार।
⋙ संविज्ञात
वि० [सं०] १. जिसे सभी जानते हों। सर्वज्ञात। सर्वविदित। २. जो सभी को मान्य या विधेय हो [को०]।
⋙ संविज्ञान
संज्ञा पुं० [सं०] १. सम्यक् बोध। पूर्ण ज्ञान। २. सहमति। एक मत। ३. स्वीकृति। मंजूरी। यौ०—संविज्ञान भूत=जिसे सभी जानते हों। जो सबको ज्ञात हो गया हो।
⋙ संवित्
संज्ञा स्त्री० [सं०] चेतना। दे० 'संविद्'।
⋙ संवितिकाफल
संज्ञा पुं० [सं०] सेब। सेवीफल।
⋙ संवित्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. प्रतिप्रत्ति। २. अविवाद। ऐक्यमत। एक राय। ३. चेतना। संज्ञा। ४. अनुभव। ५. बुद्धि। ६. प्रति स्मरण (को०)।
⋙ संवित्पत्र
संज्ञा पुं० [सं०] शुक्रनीति के अनुसार वह पत्र जिसमें दो ग्रामों या प्रदेशों के किसी बात के लिये मेल की प्रतिज्ञा या शर्तें लिखी हों।
⋙ संविद्
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. चेतना। चैतन्य। ज्ञान शक्ति। ३. बोध। ज्ञान। समझ। ३. बुद्धि। महत्तत्व। (सांख्य)। ४. संवेदन। अनुभूति। ५. योग की एक भूमि जिसकी प्राप्ति प्राणायाम से होतो है। ६. समझौता। करार। वादा। ७. मिलने का स्थान जो पहले से ठहराया गया हो। ८. युक्ति। उपाय। तदबीर। ९. वृत्तांत। हाल। संवाद। १०. बँधी हुईं परंपरा। रीति। प्रथा। ११. नाम। १२. तोषणा। तुष्टि। १३. भाँग। १४. युद्ध। लड़ाई। १५. युद्ध की ललकार। १६. संकेत। इशारा। निशान। १७. प्राप्ति। लाभ। १८. संपत्ति। जायदाद। १९. वार्तालाप। संलाप (को०)। २०. विचारों की एकता। मतैक्य (को०)। २१. मैत्री। दोस्ती (को०)। २२. योजना (को०)। २३. स्वीकृति। सहमति (को०)। २४. संकेत शब्द। परिचायक शब्द (को०)।
⋙ संविद (१)
वि० [सं०] चेतन। चेतनायुक्त।
⋙ संविद (२)
संज्ञा पुं० वादा। समझौता। इकरार।
⋙ संविदा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. समझौता। वादा। इकरार। २. भाँग का पौधा [को०]।
⋙ संविदात
वि० [सं०] १. जाननेवाला। प्रतिभाशाली। २. अनुरूप। सामंजस्यपूर्ण [को०]।
⋙ संविदामजरी
संज्ञा स्त्री० [सं० संविदामञ्जरी] गाँजा।
⋙ संविदित (१)
वि० [सं०] १. पूर्णतया ज्ञात। जाना बूझा। सुविदित। २. ढूँढ़ा हुआ। खोजा हुआ। ३. तै पाया हुआ। सबकी राय से ठहराया हुआ। ४. वादा किया हुआ। जिसका करार हुआ हो। ५. समझाया बुझाया हुआ। उपदिष्ट। ६. ख्यात। प्रसिद्ध (को०)। ७. स्वीकृत। माना हुआ (को०)।
⋙ संविदित (२)
संज्ञा पुं० वादा। करार। प्रतिज्ञा [को०]।
⋙ संविद्वाद
संज्ञा पुं० [सं०] यूरोपीय दर्शन का एक सिद्धांत जिसमें वेदांत के समान चैतन्य के अतिरिक्त और किसी वस्तु की पारमार्थिक सत्ता नहीं स्वीकार की गई है। चैतन्यवाद।
⋙ संविद् व्यतिक्रम
संज्ञा पुं० [सं०] समझौते या करार का पालन न होना [को०]।
⋙ संविध्
संज्ञा स्त्री० [सं०] योजना। रूपरेखा। क्रम व्यवस्थापन [को०]।
⋙ संविधा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. रहन सहन। आचार व्यवहार। २. योजना। खाका। रूपरेखा (को०)। ३. व्यवस्था। आयोजन। प्रबंध। डौल।
⋙ संविधातव्य
वि० [सं०] जो आयोजन, संपादन एवं निर्माण के योग्य हो।
⋙ संविधाता
संज्ञा पुं० [सं० संविधातृ] प्रबंधक। व्यवस्थापक। स्रष्टा। निर्माता [को०]।
⋙ संविधान
संज्ञा पुं० [सं०] १. व्यवस्था। आयोजन। प्रबंध। २. विधि। रीति। दस्तूर। ३. रचना। सजना। ४. विचित्रता। अनूठापन। ५. कथा में घटनाओं का क्रम व्यवस्थापन (को०)। ६. किसी राष्ट्र का वह वैधानिक ढाँचा जिससे वह संचालित होता है। राष्ट्रविधान। वह विधान या सिद्धांतों का समूह जिसके आधार पर किसी राष्ट्र, राज्य या संस्था का संघटन और संचालन होता है। (अं० काँस्टिट्यूशन)। यौ०—संविधानज्ञ, संविधान शास्त्री=संविधान को जाननेवाला। संविधान का विशेषज्ञ। संविधान सभा=संविधान का निर्माण करनेवाली सभा या समिति।
⋙ संविधानक
संज्ञा पुं० [सं०] १. विचित्र क्रिया या व्यापार। अलौकिक घटना। २. (कथावस्तु में) घटनाओं का क्रम। किसी नाटक की पूरी कथावस्तु (को०)।
⋙ संविधि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. विधान। रीति। दस्तूर। २. व्यवस्था। प्रबंध। डौल।
⋙ संविधेय
वि० [सं०] १. जिसका डौल या प्रबंध करना हो। २. जिसे करना हो। करणीय। ३. जिसका प्रबंध उचित हो।
⋙ संविभक्त
वि० [सं०] १. अच्छी तरह बँटा या बाँटा हुआ। अच्छी तरह अलग किया हुआ। २. जिसके सब अंग ठीक हिसाब से हों। सुडौल। ३. प्रदत्त। दिया हुआ।
⋙ संविभक्ता
वि० [सं० संविभक्तृ] जो हिस्सा बँटाता हो। अन्य लोगों के साथ हिस्सा बँटानेवाला [को०]।
⋙ संविभजन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संविभजनीय] १. बाँट या हिस्सा लेना। बँटाई। २. साझा। हिस्सा।
⋙ संविभजनीय
वि० [सं०] जो लोगों में विभक्त करने योग्य हो [को०]।
⋙ संविभाग
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संविभागी] १. पूर्णतया भाग करना। हिस्सा करना। बाँट। बँटाई। २. प्रदान। ३. भाग। अंश। हिस्सा (को०)।
⋙ संविभागी
संज्ञा पुं० [सं० संविभागिन्] १. साझीदार। २. भाग या हिस्सा प्राप्त करनेवाला। भाग लेनेवाला [को०]।
⋙ संविभाव्य
वि० [सं०] समझने योग्य [को०]।
⋙ संविमर्द
संज्ञा पुं० [सं०] वह युद्ध जिसमें अत्यधिक रक्तपात हो। भीषण संग्राम [को०]।
⋙ संविषा
संज्ञा स्त्री० [सं०] अतीस। अतिविषा।
⋙ संविष्ट
वि० [सं०] १. आगत। प्राप्त। पहुँचा हुआ। २. विश्राम करता हुआ। लेटा हुआ। सोया हुआ। ३. निविष्ट। बैठा हुआ। ४. वस्त्र से आच्छादित। वस्त्र से आवृत (को०)।
⋙ संविहित
वि० [सं०] सम्यक् व्यवस्थित अथवा कृत। जिसका देखभाल या प्रबंध किया गया हो [को०]।
⋙ संवीक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवीक्षणीय, संवीक्षित, संवीक्ष्य] १. इधर उधर देखने की क्रिया। अवलोकन। २. अन्वेषण। खोज। तलाश।
⋙ संवीत (१)
वि० [सं०] १. आवृत। ढका हुआ। २. छिपा या छिपाया हुआ। ३. कवच धारण किए हुए। कवचयुक्त। ४. पहने हुए। ५. रुद्ध। रुका हुआ। ६. अन दिखाई देता हुआ। नजर से गायब। अदृश्य। लुप्त। ७. अनदेखा किया हुआ। जिसे देखकर भी टाल गए हों। ८. अभिभूत (को०)। ९. वस्त्राच्छादित (को०)। १०. परिवेष्टित। घिरा हुआ (को०)।
⋙ संवीत (२)
संज्ञा पुं० १. पहनावा। वस्त्र। आच्छादन। २. सफेद। कटभी। ३. यज्ञोपवीत (को०)।
⋙ संवीती
वि० [सं० संवीतिन्] जो यज्ञीपवीत पहने हो।
⋙ संवृक्त
वि० [सं०] १. छीना हुआ। हरण किया हुआ। २. नष्ट या उड़ाया हुआ। खरचा खाया हुआ।
⋙ संवृत्त
वि० [सं०] १. आच्छादित। ढका हुआ। बंद किया हुआ। २. घिरा हुआ। ३. लपेटा हुआ। ४. युक्त। सहित। पूर्ण। ५. रक्षित। ६. दबाया हुआ। दमन किया हुआ। ७. जो किनारे या अलग हो गया हो। ८. रुँधा हुआ (गला)। ९. धीमा किया हुआ। १०. प्रच्छन्न। गोप्य। गुप्त (को०)। ११. बलपूर्वक छीना हुआ (को०)। १२. अस्पष्ट। जो स्पष्ट न हो (को०)। १३. जो अलग कर दिया गया हो या रखा हो (को०)।
⋙ संवृत (२)
संज्ञा पुं० १. वरुण देवता। २. गुप्त स्थान। ३. एक प्रकार का जलवेतस्। एक प्रकार का बेंत। ४. उच्चारण का एक ढंग (को०)।
⋙ संवृतकोष्ठ
संज्ञा पुं० [सं०] १. कोष्ठबद्धता। कब्जियत। २. वह जिसे कब्ज की बीमारी हो (को०)।
⋙ संवृतमंत्र
संज्ञा पुं० [सं० संवृतमन्त्र] १. वह व्यक्ति जो अपनी योजना गुप्त रखता हो। २. गुप्त मंत्रणा। भेद की बातचीत।
⋙ संवृतसंवार्य
वि० [सं०] गोप्य बात को प्रकट न करनेवाला [को०]।
⋙ संवृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. ढकने या छिपाने की क्रिया। गुप्त रखने की क्रिया। २. गुप्त प्रयोजन। अभिसांधि (को०)। ३. बाधा (को०)। ४. दंभ। ढोंग। छद्म (को०)।
⋙ संवृत्त (१)
वि० [सं०] १. पहुँचा हुआ। समागत। प्राप्त। २. घटित। जो हुआ हो। ३. जो पूरा हुआ हो। (कामना, इच्छा आदि)। ४. उत्पन्न। पैदा। ५. उपस्थित। मौजूद। ६. संचित। राशीकृत (को०)। ७. व्यतीत। गत (को०)। ८. आवृत। ढका हुआ (को०)। ९. युक्त या सज्जित (को०)।
⋙ संवृत्त (२)
संज्ञा पुं० १. वरुण देवता। २. एक नाग का नाम।
⋙ संवृत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. निष्पत्ति। सिद्धि। २. एक देवी का नाम। ३. होना। घटना (को०)। ४. आवरण। संवृति। आच्छादन (को०)।
⋙ संवृद्ध
वि० [सं०] १. पूर्ण अभिवृद्ध या बढ़ा हुआ। २. उन्नत। जो ऊँचा और बड़ा हो गया हो। ३. विकसित होता हुआ। जो उन्नत हो रहा हो (को०)।
⋙ संवृद्धि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. बढ़ने की क्रिया या भाव। बढ़ती। अधिकता। २. धन आदि की अधिकता। अभ्युदय। समृद्धि। ३. शक्ति। ताकत (को०)।
⋙ संवेग
संज्ञा पुं० [सं०] १. पूर्ण वेग या तेजी। तीव्रता। २. आवेग। घबराहट। उद्विग्नता। खलबली। ३. भय। सहम। ४. जोर। अतिरेक। ५. चंडता। उग्रता (को०)। ६. तीव्र पीड़ा (को०)।
⋙ संवेजन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवेजनीय, संवेजित, संविग्न] १. उद्विग्न करना। घबरा देना। खलबली डालना। २. सहमाना। डराना। ३. भड़काना। उत्तेजित करना। यौ०—रोमसंवेजन=रोंगटे खड़े होना। पुलक होना। नेत्र- संवेजन=जरहि का पिचकारी लगाना।
⋙ संवेजनीय
वि० [सं०] जो संवेजन करने योग्य हो। जिसे संवेजित किया जाय [को०]।
⋙ संवेजित
वि० [सं०] दे० 'संविग्न' [को०]।
⋙ संवेद
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुख दुःख आदि का जान पड़ना। अनुभव। वेदना। ज्ञान। बोध।
⋙ संवेदन
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० संवेदना] [वि० संवेदनीय, संवेदित, संवेद्य] १. अनुभव करना। सुख दुःख आदि की प्रतीति करना। क्लेश, आनंद, शीत, ताप आदि को मन में मालूम करना। २. जताना। प्रकट करना। बोध कराना। ३. बोध। ज्ञान (को०)। ४. नकछिकनी नाम की घास। ५. देना। आत्म- समर्पण करना।
⋙ संवेदना
संज्ञा स्त्री० [सं०] अनुभूति। वेदना। दे० 'संवेदन'।
⋙ संवेदनीय
वि० [सं०] १. अनुभव योग्य। प्रतीति योग्य। २. जताने लायक। बोध कराने योग्य।
⋙ संवेदित
वि० [सं०] १. अनुभव किया हुआ। प्रतीत किया हुआ। २. जताया हुआ। बोध कराया हुआ। बताया हुआ।
⋙ संवेद्य (१)
वि० [सं०] १. अनुभव करने योग्य। प्रतीत करने योग्य। मन में मालूम करने लायक। २. दूसरी को अनुभव कराने योग्य। जताने योग्य। बताने लायक। ३. समझने योग्य। यौ०—स्वसंवेद्य=अपने ही अनुभव करने योग्य। जो दूसरे को बताया न जा सके, आप ही आप मालूम किया जा सके।
⋙ संवेद्य (२)
संज्ञा पुं० १. दो नदियों का संगम। २. एक तीर्थ [को०]।
⋙ संवेल्लित
वि० [सं०] संवर्धित [को०]।
⋙ संवेश
संज्ञा पुं० [सं०] १. पास जाना। पहुँचना। २. प्रवेश। घुसना। ३. बैठना। आसन जमाना। ४. लेटना। सोना। पड़ रहना। ५. काम शास्त्रानुसार एक प्रकार का रतिबंध। ६. काष्ठासन। पीढ़ा। पाटा। ७. अग्नि देवता, जो रति के अधिष्ठाता माने गए हैं। ८. शयन कक्ष। शयनागार (को०)। ९. सपना। स्वप्न (को०)। यौ०—संवेशपति=निद्रा, आराम अथवा रति के अधिष्ठाता देवता अग्नि।
⋙ संवेशक
संज्ञा पुं० [सं०] १. जमा करने या ठीक ठिकाने से रखनेवाला। सामान आदि को तरतीब देनेवाला। २. शयन करने, सोने में सहायता देनेवाला (को०)।
⋙ संवेशन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवेषणीय, संवेशनीय, संवेशित, सवेश्य] १. बैठना। २. लेटना। पड़ रहना। सोना। ३. घुसना। प्रवेश करना। ४. रति। रमण। समागम। ५. शय्या या बैठने का आसन (को०)।
⋙ संवेशनीय
वि० [सं०] जो संवेशन करने लायक हो। जो सवेशन के योग्य हो।
⋙ संवेशी
वि० [सं० संवेशिन्] लेटनेवाला। शयन करनेवाला [को०]।
⋙ संवेश्य
वि० [सं०] १. लेटने योग्य। २. घुसने योग्य।
⋙ संवेष्ट
संज्ञा पुं० [सं०] लपेटने का कपड़ा इत्यादि। बेठन। आच्छादन।
⋙ संवेष्टन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संवेष्टित, संवेष्टनीय] १. लपेटना। ढाँकना। बंद करना। २. घेरना। ३. अच्छादन। वेष्टन। बेठन (को०)।
⋙ संवैधानिक
वि० [सं० सम्+वैधानिक] विधान के अनुसार। संविधान संबंधी। कानूनी।
⋙ संव्यवहरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. भली भाँति व्यवहार करना। २. अच्छा कारोबार करना। व्यापार आदि में उन्नति करना [को०]।
⋙ संव्यवहार
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छी तरह का व्यवहार। अच्छा सलूक। एक दूसरे के प्रति उत्तम आचरण। २. मामला। प्रसंग। ३. संसर्ग। लगाव। ४. पूरा सेवन। व्यवहार। उपयोग। इस्तेमाल। ५. लेन देन करनेवाला। व्यवसायी। ६. वाणिज्य। व्यापार। ७. प्रचलित शब्द। आमफहम, लफ् ज।
⋙ संव्याध
संज्ञा पुं० [सं०] द्वंद्व युद्ध। लड़ाई [को०]।
⋙ संव्यान
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्तरीय वस्त्रा। चादर। दुपट्टा। २. वस्त्र। कपड़ा। आच्छादन।
⋙ संव्याय
संज्ञा पुं० [सं०] १. आच्छादन। वस्त्र। २. ओढ़ना।
⋙ संव्रात
संज्ञा पुं० [सं०] झुंड। गिरोह।
⋙ संशंसा
संज्ञा स्त्री० [सं०] तारीफ। स्तुति [को०]।
⋙ संशप्त
वि० [सं०] १. जो शापग्रस्त हो। २. जिसने किसी के साथ प्रतिज्ञा की या शपथ खाई हो। वाग्बद्ध।
⋙ संशप्तक
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह योद्धा जिसने बिना सफल हुए लड़ाई आदि से न हटने की शपथ खाई हो। २. वह जिसने यह शपथ खाई हो कि बिना मरे न लौटेंगे। ३. कुरुक्षेत्र के युद्ध में एक दल जिसने अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा की थी, पर स्वयं मारा गया था। ४. चुना हुआ योद्धा (को०)। ५. युद्ध में सहयोग देनेवाला वीर योद्धा।
⋙ संशब्द
संज्ञा पुं० [सं०] १. ललकार। २. निर्वचन। कथन। ३. स्तुति। प्रशसा। ४. हवाला। उल्लेख। उद्धरण (को०)।
⋙ संशब्दन
संज्ञा पुं० [सं०] १. ध्वनि या शब्द करना। २. प्रशंसा करना। ३. ललकारना या पुकारना। ४. उल्लेख करना। हवाला देना [को०]।
⋙ संशम
संज्ञा पुं० [सं०] १. पूर्ण तुष्टि। कामना की पूर्ण निवृत्ति।
⋙ संशमन
संज्ञा पुं० [सं०] १. शांत करना। निवृत्त करना। २. नष्ट करना। न रहने देना। ३. वह औषध जो दोषों को बिना घटाए बढ़ाए शोधन करे। ४. स्थिर करना।
⋙ संशमनवर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] वे ओषधियाँ जो सशमन करें। जैसे,— देवदारु, कुट, हल्दी आदि।
⋙ संशय
संज्ञा पुं० [सं०] १. लेट रहना। पड़ रहना। २. दो या कई बातों में से किसी एक का भी मन में न बैठना। अनिश्च- यात्मक ज्ञान। अनिश्चय। संदेह। शक। शुबहा। दुबधा। विशेष—यह न्याय के सोलह पदार्थों में से एक है। ३. आशंका। खतरा। डर। जैसे,—प्राण का संशय में पड़ना। ४. संदेह नामक काव्यालंकार। ५. संभावना (को०)। ६. विवाद का विषय (को०)। यौ०—संशयकर=कठिनाई में डालनेवाला। खतरे से भरा हुआ। विपत्तिकर। संशयगत=जो विपत्ति या खतरे में पड़ गया हो। संशयच्छेद=संशय का विनाश। संदेह नाश। संशयच्छेदी= संशय दूर करनेवाला। संदेह का निराकारण करनेवाला। संशयसम। संशयस्थ।
⋙ संशयसम
संज्ञा पुं० [सं०] न्याय दर्शन में २४ जातियों अर्थात् खंडन की असंगत युक्तियों में से एक। वादी के दृष्टांत को लेकर उसमें साध्य और असाध्य दोनों धर्मों का आरोप करके वादी के साध्य विषय को संदिग्ध सिद्ध करने का प्रयत्न। विशेष—वादी कहना है—'शब्द अनित्य है, उत्पत्ति धर्मवाला होने से, घड़े के समान'। इसपर यदि प्रतिवादी कहे-'शब्द नित्य और अनित्य दोनों हुआ, मूर्त होने के कारण, घट और घटत्व के समान' तो उसका यह असंगत उत्तर 'संशयशम' होगा।
⋙ संशयस्थ
वि० [सं०] १. जो संदेह में पड़ा हो। २. जो खतरे में पड़ा हो [को०]।
⋙ संशयाक्षेप
संज्ञा पुं० [सं०] १. सशय का दूर होना। २. एक प्रकार का काव्यालंकार।
⋙ संशयात्मक
वि० [सं०] जिसमें संदेह हो। संदिग्ध। शुबहे का। अनिश्चित।
⋙ संशयात्मा
संज्ञा पुं० [सं० संशयात्मन्] जिसका मन किसी बात पर विश्वास न करे। विश्वासहीन। संदेहवादी।
⋙ संशयान
वि० [सं०] संदेह करनेवाला। संशयालु [को०]।
⋙ संशयापन्न
संज्ञा पुं० [सं०] संशययुक्त। अनिश्चित।
⋙ संशयालु
वि० [सं०] १. विश्वास न करनेवाला। २. बात बात में संदेह करनेवाला। शक्की।
⋙ संशयावह
वि० [सं०] १. संशययुक्त। संदेहास्पद। २. खतरनाक।
⋙ संशायित
वि० [सं०] १. संशययुक्त। दुबधा में पड़ा हुआ। २. संदिग्ध। अनिश्चित। ३. आपत्तिग्रस्त। खतरे में पड़ा हुआ (को०)।
⋙ संशयिता
संज्ञा पुं० [सं० संयितृ] संशयकर्ता। संशय करनेवाला।
⋙ संशयो
वि० [सं० संशयि] १. संशय करनेवाला। संदेह करनेवाला। २. शक्की।
⋙ संशयोच्छेदी
वि० [सं० संशयोच्छेदिन्] संदेह को दूर करनेवाला। संदेहनाशक।
⋙ संशयोपमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का उपमा अलंकार जिसमें कई वस्तुओं के साथ समानता संशय के रूप में कही जाती है।
⋙ संशयोपेत
वि० [सं०] संशययुक्त। संदिग्ध। अनिश्चित।
⋙ संशर
संज्ञा पुं० [सं०] तोड़ना। विशीर्ण करना। चूर्ण करना [को०]।
⋙ संशरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. दलित करना। चूर्ण करना। २. भंग करना। तोड़ना। ३. युद्ध का आरंभ। दे० 'संसरण'। ४. शरण में जाना। पनाह लेना।
⋙ संशारुक
वि० [सं०] १. तोड़नेवाला। भंग करनेवाला। २. दलन या मर्दन करनेवाला।
⋙ संशासन
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छा शासन। उत्तम राज्यप्रबंध। २. आदेश। मंत्र। अनुशासन।
⋙ संशासित
वि० [सं०] १. सुशासित। अच्छे ढंग से शासित। २. आदिष्ट। अनुशासित। निर्देश प्राप्त [को०]।
⋙ संशित
वि० [सं०] १. सान पर चढ़ाया हुआ। तेज किया हुआ। चोखा या तीखा किया हुआ। टेया हुआ। तीक्ष्ण। तेज। २. उद्यत। उतारू। तत्पर। आमादा। ३. दक्ष। निपुण। पटु। ४. नोकदार। नुकीला। अनोदार। ५. सर्वथा पूरा किया हुआ। निष्पन्न (को०)। ६. निर्णीत। सुनिश्चित (को०)। ७. अपने संकल्प को दृढ़तापूर्वक निभानेवाला (को०)। ८. कर्कश। कटु। अप्रिय। कठोर। जैसे,—संशित वचन। यौ०—संशितवचन=(१) अप्रिय कथन। (२) कटुवक्ता। संशित- वाक्=कटुभाषी। संशितव्रत।
⋙ संशितव्रत
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो नियम व्रत के पालन में पक्का हो। कठोरता से नियम या व्रत आदि का पालन करनेवाला।
⋙ संशितात्मा
वि० [सं० संशितात्मन्] १. दृढ़ मनवाला। २. अनुशासित मनवाला [को०]।
⋙ संशिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. संशय। संदेह। शक। २. खूब टेना या तेज करना। खूब सान पर चढ़ाना।
⋙ संशिष्ट
वि० [सं०] बचा हुआ। बाकी रहा हुआ।
⋙ संशीत
वि० [सं०] १. जो ठंढा हुआ हो। २. ठंढ से जमा हुआ।
⋙ संशीति
संज्ञा स्त्री० [सं०] संदेह। संशय। अनिश्चय [को०]।
⋙ संशीलन
संज्ञा पुं० [सं०] १. नित्य अभ्यास। नियमित अभ्यास। २. नित्य संपर्क या साहतर्य।
⋙ संशुद्ध
वि० [सं०] १. यथेष्ट शुद्ध। विशुद्ध। २. साफ किया हुआ। स्वच्छ या शुद्ध किया हुआ। चुकाया हुआ। चुकता किया हुआ। बेबाक (ऋण)। ४. जाँचा हुआ। परीक्षित। ५. अपराध या दंड आदि से मुक्त किया हुआ। ६. जो प्रायश्चित्त आदि विधानों द्वारा दोषरहित हो। जैसे,—संशुद्ध पातक। यौ०—संशुद्धकिल्विष=निष्पाप । पापमुक्त। संशुद्धपातक=प्राय- श्चित्त द्वारा पापमुक्त।
⋙ संशुद्धि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पूरी सफाई। पूरी पवित्रता। २. शरीर की सफाई। ३. शुद्ध करना। स्वच्छ या विमल करना (को०)। ४. संशोधन। सुधार (को०)। ५. (ऋण का) भुगतान या परिशोध (को०)।
⋙ संशुष्क
वि० [सं०] १. बिल्कुल सूखा हुआ। खुश्क। २. नीरस। ३. जो सहृदय न हो। अरसिक। ४. कुम्हलाया हुआ (को०)।
⋙ संशून
वि० [सं०] अत्यंत शोथवुक्त या फूला हुआ [को०]।
⋙ संशृंगी
संज्ञा स्त्री० [सं० संश्रृङ्गी] एक प्रकार को गौ। वह गाय जिसके शृंग आमने सामने घूमे हों को०]।
⋙ संशोधक
संज्ञा पुं० [सं०] १. शोधन करनेवाला। सुधारनेवाला। दुरुस्त या ठीक करनेवाला। २. संस्कार करनेवाला। बुरी से अच्छी दशा में लानेवाला। ३. अदा करनेवाला। चुकानेवाला।
⋙ संशोधन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संशोधनोय, संशोधित, संशुद्ध, संशोध्य] १. शुद्ध करना। साफ करना। स्वच्छ करना। २. दुरुस्त करना। ठीक करना। सुधारना। संस्कार करना। त्रुटि या दोष दूर करना। कसर या ऐब निकालना। ३. चुकता करना। अदा करना। बेबाक करना। (ऋण आदि)।
⋙ संशोधन (२)
वि० [सं०] १. जिससे शुद्ध किया जाय। सुधारने, शुद्ध करने, संस्कार करने का साधन। सुधारनेवाला। २. विकारों (वात, पित्तादि) को दूर करनेवाला [को०]।
⋙ संशोधनीय
वि० [सं०] १. साफ करने योग्य। २. सुधारने या ठीक। करने योग्य। ३. कर्ज आदि जो चुकता किया जाय। बेबाक करने योग्य (को०)।
⋙ संशोधित
वि० [सं०] १. खूब शुद्ध किया हुआ। २. सुधारा हुआ। ठीक किया हुआ। दुरुस्त किया हुआ। ३. बेबाक किया हुआ। चुकाया हुआ (को०)।
⋙ संशोधी
वि० [सं० संशोधिन्] [वि० स्त्री० संशोधिनी] १. सुधारनेवाला। दुरुस्त करनेवाला। ३. चुकानेवाला। जैसे,—ऋण- संशोधी (को०)।
⋙ संशोध्य
वि० [सं०] १. साफ करने योग्य। २. सुधारने या ठीक करने योग्य। ३. जिसका सुधार करना हो। ४. जिसे साफ करना हो। ४. जिसे चुकाना या बेबाक करना हो (को०)।
⋙ संशोमित
वि० [सं०] सजा हुआ। शोभित। अलंकृत [को०]।
⋙ संशोष
संज्ञा पुं० [सं०] १. शोषण। सोखना। जज्ब करना। २. शुष्क करना। सुखाना [को०]।
⋙ संशोषण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संशोषणीय, संशोषित, सशोष्य] १. बिल्कुल सोखना। जज्ब करना। २. सुखाना।
⋙ संशोषण (२)
वि० सुखाने या सोखनेवाला [को०]।
⋙ संशोषणीय
वि० [सं०] संशोषण योग्य। सोखने योग्य।
⋙ संशोषित
वि० [सं०] सोखा या सुखाया हुआ।
⋙ संशोषी
वि० [सं० संशोषिन्] १. सोखने या जज्ब करनेबाला। २. सुखा देनेवाला। जैसे, बुखार, सुखंडी आदि रोग [को०]।
⋙ संशोष्य
वि० [सं०] सोखने योग्य। जिसे सोखना या सुखाना हो।
⋙ संश्चत्
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्रजाल। बाजीगरी। माया। जादू। २. छल। छद्म। धोखा। दाँवपेच। ३. ऐंद्रजालिक। जादूगर। मायिक [को०]।
⋙ संश्यान्
संज्ञा पुं० [सं०] १. (शोत से) ठिठुरा हुआ। सिकुड़ा हुआ। २. जमा हुआ। ३. लिपटा या लपेटा हुआ (को०)। ४. अवसन्न (को०)।
⋙ संश्रय
संज्ञा पुं० [सं०] १. संयोग। मेल। संबंध। समागम। लगाव। संपर्क। ३. आश्रय। शरण। पनाह। ४. सहारा। अवलंब। ५. राजाओं का परस्पर रक्षा के लिये मेल। अभिसंधि। विशेष—स्मृतियों में यह राजा के छह् गुणों में कहा गया है और दो प्रकार का माना गया है—(१) शत्रु से पीड़ित हो कर दूपरे राजा को सहायता लेना; और (२) शत्रु से पहुँचनेवाली हानि की आशंका से किसी दूसरे बलवान् राजा का आश्रय लेना। ६. पनाह को जगह। शरण स्थान। ७. रहने या ठहरने की जगह। घर। ८. विश्राम की जगह। विश्रामस्थान (को०)। ९. उद्देश्य। लक्ष्य। मतलब। १०. किसी वस्तु का अंग। हिस्सा।
⋙ संश्रयण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संश्रयणीय, संश्रयी, संश्रित] १. सहारा लेना। अवलंब पकड़ाना। २. शरण लेना। पनाह लेना। ३. आसाक्ति (को०)।
⋙ संश्रयणीय
वि० [सं०] १. सहारा लेने योग्य। २. शरण लेने योग्य।
⋙ संश्रयी (१)
वि० [सं० संश्रयिन्] [वि० स्त्री० संश्रयिणी] १. सहारा लेनेवाला। २. शरण लेनेवाला।
⋙ संश्रयी (२)
संज्ञा पुं० भृत्य। नौकर।
⋙ संश्रव (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुनना। कान देना। २. अंगीकार। स्वीकार। मानना। रजामंदी। ३. वादा। प्रतिज्ञा। करार।
⋙ संश्रव (२)
वि० जो सुना जा सके। सुनाई पड़नेवाला।
⋙ संश्रव (३)
संज्ञा पुं० [सं० संश्रवस्] ख्याति। प्रसिद्धि। गौरव [को०]।
⋙ संश्रवण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संश्रवणीय, संश्रुत] १. सुनना। खूब कान देना। २. अंगीकार करना। स्वीकार करना। ३. वादा करना। करार करना। ४. श्रवण का क्षेत्र। जहाँ तक कान सुन सके वह क्षेत्र या दूरी (को०)। ५. कान। श्रवण (को०)।
⋙ संश्रांत
वि० [सं० संश्रान्त] बिल्कुल थका हुआ। शिथिल। पसमाँदा।
⋙ संश्राव
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संश्रावणीय, संश्रावित, संश्राव्य] १. कान देना। सुनना। २. अगीकार। स्वीकार।
⋙ संश्रावक
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुननेवाला। श्रोता। २. चेला। शिष्य।
⋙ संश्रावयिता
वि० [सं० संश्रावयितृ] घोषित करनेवाला। सुनानेवाला [को०]।
⋙ संश्रावित
वि० [सं०] १. सुनाया हुआ। २. जोर जोर से पढ़कर सुनाया हुआ।
⋙ संश्राव्य
वि० [सं०] १. सुनाने योग्य। २. सुनाई पड़नेवाला।
⋙ संश्रित (१)
वि० [सं०] १. जुड़ा या मिला हुआ। संयुक्त। २. लगा हुआ। टिका वा ठहरा हुआ। ४. आलिंगित। संश्लिष्ट। गले या छाती से लगाया हुआ। ५. भागकर शरण में गया हुआ। हो। जो निर्वाह के लिये किसी के पास गया हो। ७. जिसने सेवा स्वोकार को हो। ८. जो किसी बात के लिये दूसरे पर निर्भर हो। आसरे या भरोसे पर रहनेवाला। पराधीन। ९. आसक्त। परायण (को०)। १०. न्यस्त। निहित (को०)। ११. उपयुक्त। उचित (को०)। १२. अंगीकृत। गृहीत। स्वीकृत (को०)। १३. संबंधी। विषयक (को०)।
⋙ संश्रित (२)
संज्ञा पुं० सेवक। भृत्य। परालंबी व्यक्ति।
⋙ संश्रुत
संज्ञा पुं० [सं०] १. खूब सुना हुआ। २. खूब पढ़कर सुनाया हुआ। ३. स्वीकृत। माना हुआ। मंजूर। ४. प्रतिज्ञात। वादा किया हुआ (को०)।
⋙ संश्लिष्ट (१)
वि० [सं०] १. खूब मिला हुआ। जड़ा हुआ। सटा हुआ। २. एक साथ किया हुआ। ३. संमिलित। मिश्रित। ४. एक में मिलाया हुआ। गड्डबड्ड। अस्पष्ट। अनिश्चित। ५. आलिंगित। परिरंभित। भेंटा हुआ। ६. सज्जित। युक्त। सहित (को०)। यौ०—संश्लिष्ट कर्म=वे काम जिनमें अच्छाई बुराई का पता न चल सके। संश्लिष्टकर्मा=अविवेकी। भले बुरे की पहचान न करनेवाला।
⋙ संश्लिष्ट (२)
संज्ञा पुं० १. राशि। ढेर। समूह। २. एक प्रकार का चँदोवा या मंडप। (वास्तु)।
⋙ संश्लेष
संज्ञा पुं० [सं०] १. मेल। मिलाप। संयोग। २. मिलान। सटाव। ३. आलिंगन। परिरंभण। भेटना। ४. चर्म रज्जु। वरत्रा। बंधन। पाश (को०)। ५. जोड़। संधि (को०)।
⋙ संश्लेषण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संश्लेषणीय, संश्लेषित, संश्लिष्ट] १. एक में मिलाना। जुटाना। सटाना। २. लगाना। अँट- काना। टाँगना। ३. संबद्ध करना (को०)। ४. बाँधने या जोड़नेवाली वस्तु।
⋙ संश्लेषणा
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'संश्लेषण'।
⋙ संश्लेषित
वि० [सं०] १. मिलाया हुआ। जोड़ा हुआ। सटाया हुआ। २. लगाया हुआ। अटकाया हुआ। ३. आलिंगन किया हुआ।
⋙ संश्लेषी
वि० [सं० संश्लेषिन्] [वि० स्त्री० संश्लेषिणी] १. मिलानेवाला। जोड़नेवाला। २. आलिंगन करनेवाला। भेंटनेवाला।
⋙ संश्वत्
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'संश्चत्' [को०]।
⋙ संसंग
संज्ञा पुं० [सं० संसङ्ग] संयोग। लगाव। संबंध [को०]।
⋙ संसंगी
वि० [सं० संसङ्गिन्] १. साथ लगनेवाला। २. संसर्ग या संपर्क में आनेवाला [को०]।
⋙ संस पु (१)
संज्ञा पुं० [सं० संशय] संशय। आशंका। उ०—करणा करी छाँड़ि पगु दीनो जानी सुख मन संस। सूरदास प्रभु असुर निकंदन दुष्टन के उर गंस।—सूर (शब्द०)।
⋙ संस † (२)
संज्ञा पुं० [देश० या सं० शस्य, प्रा० सस्स (=पैदावार, फसल)] उन्नति। बढ़ती। वृद्धि [को०]।
⋙ संसइ पु † (१)
संज्ञा पुं० [सं० संशय] दे० 'संशय'।
⋙ संसइ † (२)
वि० [सं० संशयिन्, प्रा० संसइ] संशययुक्त। शंका करनेवाला।
⋙ संसउ पु
संज्ञा पुं० [सं० संशय] दे० 'संशय'। उ०—अजहूँ कछु संसउ मन मोरे। करहु कृपा बिनवौं कर जोरे।—मानस, १। १०९।
⋙ संसकिरत †
संज्ञा स्त्री० [सं० संस्कृत] संस्कृत भाषा। उ०—भाषा तो संतन ने कहिया, संसकिरत ऋषिन की बानी है।—कबीर रे०, पृ० ४६।
⋙ संसक्त
वि० [सं०] १. लगा हुआ। सटा हुआ। मिला हुआ। २. भिड़ा हुआ (शत्रु से)। ३. संबद्ध। जुड़ा हुआ। ४. प्रवृत्त। लगा हुआ। मशगूल। लिप्त। लीन। ५. आसक्त। लुभाया हुआ। लुब्ध। प्रेम में फँसा हुआ। ६. विषय वासना में लीन। ७. युक्त। सहित। पूर्ण। ८. सघन। घना। ९. अव्यवस्थित। मिश्रित (को०)। १०. समीपवर्तीं। निकट- वर्ती (को०)।११. अनवरत। लगातार। निरंतर (को०)। १२. अस्पष्ट (वाणी) (को०)। यौ०—संसक्तचेता, संसक्तमना=जिसका मन किसी में आसक्त या लीन हो। संसक्तयुग=जुए में मँधा हुआ।
⋙ संसक्त सामंत
संज्ञा पुं० [सं० संसक्त सामन्त] पराशर स्मृति के अनुसार वह सामंत जिसकी थोड़ी बहुत जमीन चारों ओर हो और कहीं पूरे गाँव भी हों।
⋙ संसक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. लगाव। मिलान। २. जोड़। बंध। ३. संबंध। ४. आसक्ति। लगन। ५. लीनता। ६. प्रवृत्ति।
⋙ संसगर †
वि० [सं० शस्य (=अन्न, फसल)+आगार] १. उपजाऊ। जिसमें पैदावार अधिक हो। २. लाभदायक। फायदेमंद। बरकवाला।
⋙ संसज्जमान
वि० [सं०] १. साथ लगनेवाला। अनुषंगी। २. स्खलित। अस्पष्ट (स्वर)। जो शोक के कारण स्पष्ट न हो (वाणी)। ३. जो तैयार हो [को०]।
⋙ संसत्, संसद् (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. समाज। सभा। मंडली। २. राजसभा। दरबार। ३. धर्मसभा। न्याय सभा। न्यायालय। अदालत। ४. चौबीस दिनों का एक यज्ञ। ५. समूह। राशि (को०)। ६. किसी देश की चुने हुए जन प्रतिनिधियों की सर्वोच्च सभा (अं० पार्लामेट)। विशेष दे० 'पार्लामेंट'।
⋙ संसत्, संसद् (२)
वि० १. साथ साथ बैठनेवाला। २. यज्ञ में बैठने या भाग लेनेवाला [को०]।
⋙ संसद
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक यज्ञ जो २४ दिन का होता था। २. दे० 'पार्लामेंट'।
⋙ संसदन
संज्ञा पुं० [सं०] विषाद। खेद। खिन्नता [को०]।
⋙ संसनाना
क्रि० अ० [अनुध्व०] दे० 'सनसनाना'।
⋙ संसय
संज्ञा पुं० [सं० संशय] दे० 'संशय'। उ०—अस निज हृदय विचारि तजु संसय भजु रामपद।—मानस, १। ११५।
⋙ संसरण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संसरणीय, संसरित, संसृत] १. चलना। सरकना। गमन करना। २. सेना की अबाध यात्रा। ३. एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने की परंपरा। भवचक्र। ४. संसार। जगत्। ५. राजपथ। सड़क। रास्ता। ६. नगर के तोरण के पास यात्रियों के लिये विश्राम स्थान। शहर के फाटक के पास मुसाफिरों के ठहरने का स्थान। धर्मशाला। सराय। ७. युद्ध का आरंभ। लड़ाई का छिड़ना। ८. वह मार्ग जिससे होकर बहुत दिनों से लोग या पशु आते जाते हों। विशेष—बृहस्पति ने लिखा है कि ऐसे मार्ग पर चलने से कोई (जमीदार भी) किसी को नहीं रोक सकता।
⋙ संसर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] १. संबंध। लगाव। संपर्क। २. मेल। मिलाप। संयोग। ३. सहवास। समागम। संग। साथ। ४. स्त्री पुरुष का महवास। मैथुन। ५. घालमेल। घपला। अस्तव्यस्तता। ६. वात, पित्तादि में से दो का एक साथ प्रकोप। (सुश्रुत)। ७. जायदाद का एक में होना। इजमाल शराकत। साझेदारी। ८. वह विंदु जहाँ एक रेखा दूसरी को काटती हो। (शुल्वसूत्र)। ९. रब्त जब्त। परिचय। घनिष्टता। १०. समवाय (को०)। ११. अवधि (को०)। १२. स्थायित्व। स्थिरता। सातत्य (को०)।
⋙ संसर्गज
वि० [सं०] जो संसर्ग या लगाव से उत्पन्न हो [को०]।
⋙ संसर्गदोष
संज्ञा पुं० [सं०] वह बुराई जो किसी के साथ रहने से आवे। संगत का दोष।
⋙ संसर्गविद्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. लोगों से मिलने जुलने का हुनर। व्यवहारकुशलता। २. सामाजिक विज्ञान। समाज विज्ञान (को०)।
⋙ संसर्गाभाव
संज्ञा पुं० [सं०] १. संसर्ग का अभाव। संबंध का न होना। २. न्याय में अभाव का एक भेद। किसी वस्तु के संबंध में दूसरी वस्तु का अभाव। जैसे,—घर में घड़ा नहीं है। विशेष दे० 'अभाव'।
⋙ संसर्गी (१)
वि० [सं० संसर्गिन्] [वि० स्त्री० संसर्गिणी] १. संसर्ग या लगाव रखनेवाला। २. संसर्ग प्राप्त। संयुक्त। युक्त (को०)। ३. परिचित। रब्त जब्तवाला। हेली मेली (को०)।
⋙ संसर्गी (२)
संज्ञा पुं० १. मित्र। सहचर। २. वह जो पैतृक संपत्ति का विभाग हो जाने पर भी अपने भाइयों या कुटुंबियों आदि के साथ रहता हो।
⋙ संसर्गी (३)
संज्ञा स्त्री० शुद्धि। सफाई।
⋙ संसर्जन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संसर्जनीय, ससर्जित, संसर्ज्य] १. संयोग होना। मिलना। २. जुड़ना। संबद्ध होना। ३. अपनी ओर मिलाना। राजी करना। ४. हटाना। दूर करना। त्याग करना। छोड़ना। ५. शुद्धता। स्वच्छता। सफाई (को०)।
⋙ संसर्जनीय
वि० [सं०] जो संसर्जन के योग्य हो।
⋙ संसर्जित
वि० [सं०] जिसका संसर्जन किया गया हो।
⋙ संसर्ज्य
वि० [सं०] जो संसर्जन के योग्य हो।
⋙ ससर्प
संज्ञा पुं० [सं०] १. रेंगना। सरकना। २. खिसकना। धीरे धीरे चलना। ३. वह अधिक मास जो क्षय मासवाले वर्ष में होता है।
⋙ संसर्पण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संसर्पणीय, संसर्पित, संसर्पी] १. रेंगना। सरकना। २. खिसकना। धीरे धीरे चलना। ३. चढ़ना। ४. सहसा आक्रमण। अचानक हमला।
⋙ संसर्पणीय
वि० [सं०] जो रेंगने, खिसकने, चढ़ने या एकाएक आक्रमण के योग्य हो।
⋙ संसर्पित
वि० [सं०] १. जिसने संसर्पण किया हो। २. जिसपर संसर्पण किया जाय।
⋙ संसर्पी
वि० [सं० संसर्पिन्] [वि० स्त्री० संसर्पिणी] १. रेंगनेवाला। सरकनेवाला। २. खिसकने या धीरे धीरे चलनेवाला। ३. फैलनेवाला। संचार करनेवाला। ४. पानी के ऊपर तैरनेवाला। उतरानेवाला (सुश्रुत)।
⋙ संसह
वि० [सं०] बराबरी वाला। जो समान हो [को०]।
⋙ संसा पु (१)
संज्ञा पुं० [सं० संशय] दे० 'संशय'। उ०—सत जोजन पर पटक्यो कंसा। भो अप्रान सम वाही संसा।—गोपाल (शब्द०)।
⋙ संसा † (२)
संज्ञा पुं० [सं० श्वास, हिं० साँस, साँसा] श्वास। प्राणवायु। उ०—कबीर संसा जीव में, कोई समुझाइ। नाना वाणी बोलता सो कित गया बिलाइ।—कबीर ग्रं०, पृ० ३१।
⋙ संसा † (३)
संज्ञा पुं० [हिं० सँड़सा] दे० 'सँड़सा'। उ०—संसा खूटा सुख भया मिल्या पियारा कंत।—कबीर ग्रं०, पृ० १५।
⋙ संसाद
संज्ञा पुं० [सं०] १. जमावड़ा। गोष्ठी। २. सभा। समाज। मंडली।
⋙ संसादन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संसादनीय, संसादिन, संसाद्य] १. जुटाना। एकत्र करना। २. तरतीब से लगाना। क्रम- बद्ध करना।
⋙ संसादनीय
वि० [सं०] संसादन करने योग्य। जिसका संसादन किया जाय।
⋙ संसादित
वि० [सं०] १. एकत्र किया हुआ। जुटाया हुआ। २. तर- तीब दिया हुआ। लगाया हुआ। सजाया हुआ।
⋙ संसाधक
संज्ञा पुं० [सं०] १. पूर्णतया साधन करनेवाला। संपन्न करनेवाला। अंजाम देनेवाला। २. जीतनेवाला। वश में करनेवला।
⋙ संसाधन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संसाधनीय, संसाधित, संसाध्य] १. अच्छी तरह करना। पूरा करना। अंजाम देना। २. तैयारी। आयोजन। ३. जीतना। दमन करना। वश में करना।
⋙ संसाधनीय
वि० [सं०] १. साधन के योग्य। पूरा करने योग्य। २. जीतने योग्य। वश में लाने योग्य।
⋙ संसाध्य
वि० [सं०] १. पूरा करने योग्य। २. जीतने योग्य। दमन करने योग्य। ३. जिसे करना हो। करने योग्य। ४. जिसे जीतना या वश में करना हो।
⋙ संसार
संज्ञा पुं० [सं०] १. लगातार एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाते रहना। २. बार बार जन्म लेने की परंपरा। आवागमन। भवचक्र। जगत्। दुनिया। विश्व। सृष्टि। ४. इहलोक। मर्त्यलोक। ५. मायाजाल। माया का प्रपंच। जीवन का जंजाल। ६. गृहस्थी। ७. दुर्गंध खदिर। विट् खदिर। ९. मार्ग। पथ (को०)। यौ०—संसारगमन=जन्म मरण का चक्कर। संसारगुरु। संसार- चक्र। संसारतिलक। संसारपथ। संसारपदवी। संसारबंधन= जागतिक जीवन का पाश या मोह। संसार भावन। संसार मार्ग। संसारमोक्ष=संसार से छुटकारा। संसारमोक्षण= संसारयात्रा। संसारवर्जित=सांसारिकता से मुक्त। संसार- वर्त्म=संसार का मार्ग। संसारसंग=सांसारिकता। संसार- सुख=संसार का आनंद। भौतिक सुख।
⋙ संसारगुरु
संज्ञा पुं० [सं०] १. संसार को उपदेश देनेवाला। जगद्- गुरु। २. कामदेव। स्मर।
⋙ संसारचक्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. जन्म पर जन्म लेने की परंपरा। नाना योनियों में भ्रमण। २. माया ता जाल। दुनिया का चक्कर। प्रपंच। ३. जगत् की दशा का उलट फेर।
⋙ संसारण
संज्ञा पुं० [सं०] चलाना। सरकाना। गति देना।
⋙ संसारतिलक
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का उत्तम चावल। उ०—कोरहन, बड़हन, जड़हन, मिला। औ संसारतिलक खँडबिला—जायसी (शब्द०)।
⋙ संसारपथ
संज्ञा पुं० [सं०] १. सांसारिक प्रपंच। सांसारिक जीवन। २. संसार में आने का मार्ग। स्त्रियों की जननेंद्रिय।
⋙ संसारपदवी
संज्ञा स्त्री० [सं०] संसारपथ। संसारमार्ग [को०]।
⋙ संसारभावन
संज्ञा पुं० [सं०] संसार को दुःखमय जानना। विशेष—यह ज्ञान चार प्रकार का है—नरकगति, तिर्यग्गति, मनुष्यगति और देवगति।
⋙ संसारमार्ग
संज्ञा पुं० [सं०] १. स्त्रिथों की जननेंद्रिय। २. सांसा- रिक जीवन (को०)।
⋙ संसारमोक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो भवबंधन से मुक्त करे। २. संसार से छुटकारा [को०]।
⋙ संसारयात्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. संसार में रहना। जीवन बिताना। २. जिंदगी। जीवन [को०]।
⋙ संसारसारथि
संज्ञा पुं० [सं०] १. संसारपथ को पर करानेवाला। २. शिव का एक नाम।
⋙ संसारसरणि
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'संसारमार्ग' [को०]।
⋙ संसारी (१)
वि० [सं० संसारिन्] [वि० स्त्री० संसारिणी] १. संसार संबंधी। लैकिक। जैसे,—संसारी बातें। २. संसार में रहनेवाला। संसार की माया में फँसा हुआ। दुनिया के जंजाल से घिरा हुआ। जैसे,—संसारी जीवों के कल्याण के लिये यह कथा है। ३. लोकव्यवहार में कुशल। दुनियादार। ४. बार बार जन्म लेनेवाला। भवचक्र में बँधा हुआ। जैसे,—संसारी आत्मा। ५. संसरण करनेवाला। दूर तक जाने या व्याप्त होनेवाला (को०)।
⋙ संसारी (२)
संज्ञा पुं० १. प्राणी। जीव। २. जीवात्मा [को०]।
⋙ संसि पु
संज्ञा स्त्री० [सं० शस्य] दे० 'शस्य'। उ०—जिन संसिन को सींच तुम, करी सुहरी बहारि।—दीन० ग्रं०, पृ० २०१।
⋙ संसिक्त
वि० [सं०] खूब सींचा हुआ। जिसपर खूब पानी छिड़का, गया हो। आर्द्र। तर।
⋙ संसिद्ध
वि० [सं०] १. पूर्णतया संपन्न। अच्छी तरह किया हुआ। २. प्राप्त। लब्ध। ३. अच्छी तरह सीझा या पका हुआ। (भोजन)। ४. जो नीरोग हो गया हो। चंगा। स्वस्थ। ५. तैयार। उद्यत। प्रस्तुत। ६. किसी बात में पक्का। कुशल। निपुण। ७. जिसका योग सिद्ध हो गया हो। मुक्त। ८. कृतसंकल्प (को०)। ९. तोषयुक्त। संतुष्ट (को०)।
⋙ संसिद्धार्थ
वि० [सं०] जिसका उद्देश्य या अभिप्राय सिद्ध हो गया हो [को०]।
⋙ संसिद्धि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सम्यक् पूर्तिं। किसी कार्य का अच्छी तरह पूरा होना। २. कृतकार्यता। सफलता। कामयाबी। ३. स्वस्थता। ४. पक्वता। सीझना। ५. पूर्णता। ६. मुक्ति। मोक्ष। ७. परिणम। आखिरी नतीजा। ८. पक्की बात। निश्चित बात। न टलनेवाला वचन। ९. निसर्ग। प्रकृति। १०. स्वभाव। आदत। ११. मदमस्त स्त्री। मदोग्रा।
⋙ संसी
संज्ञा स्त्री० [हिं० सँड़सी] दे० 'सँड़सी'।
⋙ संसीमित
वि० [सं० सम्+सीमित] पूर्णतः संकुचित। जो सीमा के भीतर ही ही। उ०—ये राज्य अपने क्षेत्र में ही संसीमित रहते थे।—भा० सैन्य०, पृ० ५।
⋙ संसुखित
वि० [सं०] पूर्णतः तुष्ट। पूर्ण आनंदिन [को०]।
⋙ संसुप्त
वि० [सं०] खूब सोया हुआ।
⋙ संसूचक
वि०, संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० संसूचिका] १. प्रकट करनेवाला। २. जतानेवाला। ३. भेद खोलनेवाला। ४. समझाने बुझानेवाला। कहने सुननेवाला। ५. डाँटने डपटनेवाला।
⋙ संसूचन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संसूचनीय, संसूचित, संसूच्य] १. अच्छी तरह प्रकट करना। जाहिर करना। २. बात खोलना। भेद खोलना। ३. कहना सुनना। ४. डाँटना डपटना। भला बुरा कहना। भर्त्सना करना। फटकारना। ५. जताना। इंगित करना। संकेतित करना।
⋙ संसूचित
वि० [सं०] १. प्रकट किया हुआ। जाहिर किया हुआ। २. डाँटा डपटा हुआ। जिसे कुछ कहा सुता गया हो। ३. जो सूचित किया गया हो। जताया हुआ।
⋙ संसूची
वि० [सं० संसूचिन्] [वि० स्त्री० संसूचिनी] १. प्रकट करनेवाला। २. जतानेवाला। ३. भला बुरा कहनेवाला। फटकारनेवाला। दे० 'संसूचक'।
⋙ संसूच्य
वि० [सं०] १. प्रकट करने योग्य। २. जताने लायक। ३. जिसे जताना या प्रकट करना हो। ४. भला बुरा कहने योग्य। जिसे भला बुरा कहना हो; या जिसके लिये भला बुरा कहना हो।
⋙ संसृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. जन्म पर जन्म लेने की परंपरा। आवा- गमन। भवचक्र। २. संसार। जगत्। उ०—देव पाय संताप घन छोर संसृति दीन भ्रमत जग जोनि नहिं कोपि त्राता।—तुलसी (शब्द०)। ३. अनवरतता। सातत्य। नैरंतर्य। प्रवाह (को०)। ४. गति। दशा। अवस्था (को०)।
⋙ संसृष्ट (१)
वि० [सं०] १. एक साथ उत्पन्न या आविर्भूत। २. एक में मिला जुला। संश्लिष्ट। मिश्रित। ३. संबद्ध। परस्पर लगा हुआ। ४. अंतर्भूत। अंतर्गत। शामिल। ५. जो जायदाद का बँटवारा हो जाने पर भी संमिलित हो गया हो (भाई आदि)। ६. हिला मिला हुआ। बहुत मेल किए हुए। बहुत परिचित। ७. संपन्न किया हुआ। अंजाम दिया हुआ। ८. किया हुआ। बनाया हुआ। रचित। निर्मित। ९. वमनादि द्वारा शुद्ध किया हुआ। कोठा साफ किया हुआ। १०. जुटाया हुआ। इकट्ठा किया हुआ। संगृहीत। ११. स्वच्छ वस्त्रादि से युक्त (को०)। १२. मिला जुला। विभिन्न प्रकार का (को०)। १३. प्रभावित। अभिभूत। आक्रांत। जैसे, रोगसंसृष्ट। यौ०—संसृष्टकर्मा=भले बुरे हर प्रकार के कर्मोंवाला। जिसके कर्म भले और बुरे दोनों हों। संसृष्टभाव=आत्मीयता। निकट संपर्क। संसृष्टमैथुन। संसृष्टरूप=(१) मिले जुले रूप या आकृतिवाला। (२) घालमेल वाला। मिलावटी। संसृष्टहोम।
⋙ संसृष्ट (२)
संज्ञा पुं० १. घनिष्ठता। हेलमेल। निकट का संबंध। २. पुराणानुसार एक पर्वत का नाम।
⋙ संसृष्टता
संज्ञा स्त्री० [सं०] 'संसृष्टत्व' [को०]।
⋙ संसृष्टत्व
संज्ञा पुं० [सं०] १. संसृष्ट होने का भाव। २. स्मृति के अनुसार जायदाद का बँटवारा हो जाने के पीछे फिर एक में होना या रहना।
⋙ संसृष्टमैथुन
वि० [सं०] [वि० स्त्री० संसृष्टमैथुन] १. जो मैथुनरत हो। २. जो संभोग कर चुका हो। जो मैथुन कार्य संपन्न कर चुका हो [को०]।
⋙ संसृष्टहोम
संज्ञा पुं० [सं०] अग्नि और सूर्य की एक ही में मिली हुई आहुति।
⋙ संसृष्टि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक साथ उत्पत्ति या आविर्भाव। २. एक में मेल या मिलावट। मिश्रण। ३. परस्पर संबंध। लगाव। ४. हेलमेल। घनिष्ठता। मेल मुआफिकत। ५. बनाने की क्रिया या भाव। संयोजन। रचना। ६. एकत्र करना। इकट्ठा करना। जुटाना। ७. संग्रह। समूह। राशि। ८. दो या अधिक काव्यालंकारों का ऐसा मेल जिसमें सब परस्पर निरपेक्ष हों; अर्थात् एक दूसरे के आश्रित, अंतर्भूत आदि न हों। ९. सहभागिता। साझेदारी (को०)। ९. एक ही परिवार में मिल जुलकर रहना। दे० 'संसृष्टत्व'-२।
⋙ संसृष्टी
संज्ञा पुं० [सं० संसृष्टिन्] १. बँटवारे के बाद फिर से एक में हो जानेवाले संबंधी। २. साझीदार। भागीदार [को०]।
⋙ संसेक
संज्ञा पुं० [सं०] अच्छी तरह पानी आदि का छिड़काव या सिचाई।
⋙ संसेचन
संज्ञा पुं० [सं०] अच्छी तरह तर करना, सींचना या छिड़काव करना [को०]।
⋙ संसेवन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संसेवित, संसेवनीय, संसेव्य] १. पूर्णतया सेवन। हाजिरी में रहना। नौकरी बजाना। २. खूब इस्तेमाला करना। व्यवहार करना। उपयोग में लाना। बरतना। ३. लगाव में रहना। संपर्क रखना (को०)।
⋙ संसेवा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. व्यवहार की क्रिया या भाव। २. पूजा। अर्चना। ३. हाजिरी। सेवा। ४. प्रवृत्ति। झुकाव [को०]।
⋙ संसेवित
वि० [सं०] १. भलीभाँति उपयोग में लाया हुआ। २. अच्छी तरह सेवा किया हुआ [को०]।
⋙ संसेविता
वि० [सं० संसेवितृ] व्यवहार में लानेवाला। उपयोग में लानेवालाक [को०]।
⋙ संसेवी
वि० [सं० संसेविन्] १. व्यवहार करनेवाला। उपयोग करनेवाला। २. सेवा टहल करनेवाला [को०]।
⋙ संसेव्य
वि० [सं०] १. सेवा या पूजा करने योग्य। सेव्य। २. व्यवहार्य [को०]।
⋙ संसौ
संज्ञा पुं० [हिं० साँस] श्वास। प्राणवायु [को०]।
⋙ संस्करण
संज्ञा पुं० [सं०] १. ठीक करना। दुरुस्त करना। सजाना। २. शुद्ध करना। सुधार करना। ३. परिष्कृत करना। सुंदर या अच्छे रूप में लाना। ४. द्विजातियों के लिये विहित संस्कार करना। ५. पुस्तकों की एक बार की छपाई। आवृत्ति (आधुनिक)। ६. शवदाह करना (को०)।
⋙ संस्कर्तव्य
वि० [सं०] १. व्यवस्थित या तैयार करने योग्य। २. परिष्कार करने योग्य [को०]।
⋙ संस्कर्ता
संज्ञा पुं० [सं०] १. संस्कार करनेवाला। २. शुद्ध करनेवाला। शोधक (को०)। ३. भोजन पकानेवाला। पाचक (को०)। ४. वह जो छाप या मुद्रा डालता हो (को०)।
⋙ संस्कार
संज्ञा पुं० [सं०] १. ठीक करना। दुरुस्ती। सुधार। २. दोष या त्रुटि का निकाला जाना। शुद्धि। ३. सजाना। अच्छे या सुंदर रूप में लाना। ४. धो माँजकर साफ करना। परिष्कार। ५. बदन की सफाई। शौच। ६. मनोवृत्ति या स्वभाव का शोधन। मानसिक शिक्षा। मन में अच्छी बातों का जमाना। ७. शिक्षा, उपदेश, संगत, आदि का मन पर पड़ा हुआ प्रभाव। दिल पर जमा हुआ असर। जैसे,—जैसा लड़कपन का संस्कार होता है, वैसा ही मनुष्य का चरित्र होता है। ८ पूर्व जन्म की वासना। पिछले जन्म की बातों का असर जो आत्मा के साथ लगा रहता है (यह वैशेषिक के २४ गुणों में से एक है)। जैसे,—बिना पूर्व जन्म के संस्कार के विद्या नहीं आती। ९. पवित्र करना। धर्म की दृष्टि से शुद्ध करना। १०. वे कृत्य जो जन्म से लेकर मरणकाल तक द्विजातियों के संबंध में आवश्यक होते हैं। वर्णधर्मानुसार किसी व्यक्ति के संबंध में होनेवाला विधान, रीति या रस्म। विशेष—द्विजातियों के लिये षोडश या द्वादश संस्कार कहे गए हैं। मनु के अनुसार उनके नाम ये हैं—गर्भाधान, पुंसवन, सीमंतोन्नयन, जातकर्म, नामकर्म, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, उपनयन, केशांत, समावर्तन और विवाह इनमें कर्णवेध, विद्यारंभ, वेदारंभ और अंत्येष्टि कर्म को गणना करने से इनकी संख्या १६ हो जाती है। ११. मृतक की क्रिया। १२. इंद्रियों के विषयों के ग्रहण से उत्पन्न मन पर जमा हुआ प्रभाव। १२. मन द्वारा कल्पित या आरोपित विषय। भ्रांतिजन्य प्रतीति। प्रत्यय। (जैसी जगत् की, जो वास्तविक नहीं है।)। विशेष—पंच स्कंधों में चौथा स्कंध 'संस्कार' है जो भबबंधन का कारण कहा गया है। १३. साफ करने या माँजने का झाँवाँ, पत्थर आदि। झवाँ। १४. चमकाना (को०)। १५. व्याकरण की दृष्टि से शब्दों की विशुद्धि (को०)। १६. खाना बनाना। भोग्य पदार्थ तैयार करना (को०)। १७. छाप। प्रभाव (को०)। १८. उपनयन संस्कार। यज्ञोपवीत कर्म (को०)। १९. धार्मिक कृत्य या अनुष्ठान। २०. स्मरण शक्ति (को०)। २१. साथ साथ रखना (को०)। २२. पशुओं, पौधों आदि का पालन और रक्षण (को०)। यौ०—संस्कारकर्ता=संस्कार करानेवाला। संस्कारज=संस्कार से उत्पन्न होनेवाला। संस्कारनाम=जो नाम संस्कार के समय दिया गया हो। संस्कारपूत=(१) शिक्षा के कारण परिष्कृत। (२) संस्कार द्वारा जो पवित्र किया गया हो। संस्कारभूषण। संस्काररहित=संस्कारहीन। संस्कारवर्जित। संस्कार- विशिष्ट=पाक द्वारा परिष्कृत। जो पाक क्रिया के कारण उत्तम बना हो। संस्कारसंपन्न। संस्कारहीन।
⋙ संस्कारक
संज्ञा पुं० [सं०] १. संस्कार करनेवाला। शुद्ध करनेवाला। ३. मन पर छाप डालनेवाला (को०)। वह जो तैयार करता हो (को०)।५. वह जो सुधार करता हो। सुधारक (को०)। ६. वह जिसे पकाया जाय या पकाने योग्य हो (को०)।
⋙ संस्कारता
संज्ञा स्त्री० [सं०] सस्कार होने का भाव, क्रिया या स्थिति [को०]।
⋙ संस्कारत्व
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'संस्कारता'।
⋙ संस्कारभूषण
संज्ञा पुं० [सं०] कथन या भाषण, जो शुद्धता, सत्यता एवम् यथार्थता से शोभित या युक्त हो [को०]।
⋙ संस्कारवत्व
संज्ञा पु० [सं०] संस्कारयुक्त होने का भाव [को०]।
⋙ संस्कारवर्जित
वि० [सं०] वह व्यक्ति जिसका संस्कार न हुआ हो। ब्रात्य।
⋙ संस्कारवान्
वि० [सं० संस्कारवत्] १. जिसका संस्कार या परिष्कार किया गया हो। संस्कार से युक्त। संस्कारवाल। २. सुंदर गुणों से विभूषित [को०]।
⋙ संस्कारसंपन्न
वि० [सं० संस्कारम्पन्न] संस्कार युक्त। सुशिक्षित।
⋙ संस्कारहीन
वि० [सं०] जिसका संस्कार न हुआ हो। व्रात्य।
⋙ संस्कारी (१)
वि० [सं० संस्कारिन्] जिसका संस्कार हुआ हो। अच्छे संस्कारवाला।
⋙ संस्कारी (२)
संज्ञा पुं० सोलह मात्राओं का एक छंद।
⋙ संस्कार्य
वि०—[सं०] १. संस्कार करने योग्य। २. जिसकी सफाई या सुधार करना हो। ३. प्रभाव डालने योग्य। जिसपर प्रभाव डाला जाय (को०)।
⋙ संस्कृत (१)
वि० [सं०] १. संस्कार किया हुआ। शुद्ध किया हुआ। २. परिमार्जित। परिष्कृत। ३. धो माँजकर साफ किया हुआ। निखारा हुआ। ४. पकाया हुआ। सिझाया हुआ। ५. सुधारा हुआ। ठीक किया हुआ। दुरुस्त किया हुआ। ६. अच्छे रूप में लाया हुआ। सँवारा हुआ। सजाया हुआ। आरास्ता। ७. जिसका उपनयन आदि संस्कार हुआ हो। ८. श्रेष्ठ। सवोंत्तम (को०)। ९. अभिमंत्रित। पुनीत किया हुआ।
⋙ संस्कृत (२)
संज्ञा स्त्री० भारतीय आर्यों की प्राचीन साहित्यिक भाषा। पुरानी आर्यो की लिखने पढ़ने की उच्च भाषा। देववाणी। विशेष—विद्वानों की राय है कि वेदों (संहिताओं) की भाषा अत्यंत प्राचीन है। यह सुदूर अतीत में कभी बोलचाल की आर्यों की भाषा थी। जब उस भाषा में परिवर्तन होने लगा और धीरे धीरे उसके समझनेवाले कम होने लगे, तब संहिताओं का संकलन हुआ। बाद में यास्क ने निघंटु आदि बनाकर उस मंत्र- भाग की भाषा को विद्वानों में सुरक्षित रखा। पीछे जो आर्य- भाषा प्रचलित होती गई, उसपर क्रमशः द्रविड़ आदि आर्येतर भारतीय भाषाओं का प्रभाव पड़ता गया। अतः इस प्रचलित या लौकिक आर्यभाषा को शुदध, व्यवस्थित और सुरक्षित रखने का इंद्र, शाकल्य शाकटायन, पाणिनि आदि वैयाकरणों ने प्रयत्न किया। पाणिनि आदि वैयाकरणों ने दूर दूर तक फैले हुए यथासंभव सब प्रयोगों और रूपों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक आर्यभाषा का व्याकरणनिर्माण किया। यही 'भाषा' या लौकिक संस्कृत कहलाई जो रूप स्थिर हो जाने के कारण साहित्य की सर्वमान्य भाषा हुई और अबतक चली आ रही है। लोगों की बोलचाल की भाषा में अंतर पड़ता रहा, पर यह संस्कृत ज्यों की त्यों रही और विद्वानों तथा शिष्यों की परंपरा द्वारा अपने शुद्ध रूप में व्यवहृत तथा प्रयुक्त होती चली आ रही है। आज भी उसमें साहित्य रचा जा रहा है और पत्र-पत्रिकाएँ आदि निकलती है बोलचाल की भाषाएँ पाली, प्राकृत, अपभ्रंश आदि प्राकृतिक कहलाईं और यह संस्कार की हुई प्राचीन भाषा संस्कृत या अमरभाषा कहलाई।
⋙ संस्कृत (३)
संज्ञा पुं० १. व्याकरण के नियमों द्वारा व्युत्पन्न शब्द। २. द्विजाति का वह व्यक्ति जिसका संस्कार हो गया हो। ३. विद्वान् पुरुष। ४. धार्मिक परंपरा। ५. बलि। आहुति [को०]।
⋙ संस्कृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शुद्धि। सफाई। २. संस्कार। सुधार। परिष्कार। ३. सजावट। आराइश। ४. रहन सहन आदि की रूढ़ि। भीतर बाहर से सस्कार की गई—सभ्यता। शाइस्तगी। ५. पूर्ण करना। पूरा करना (को०)। ६. निर्णय। निश्चयन (को०)। ७. उद्योग। चेष्टा (को०)। ८. २४ वर्ण के वृत्तों की संज्ञा। ९. अंग्रेजी 'कल्चर' शब्द के अनुवाद रूप में प्रयुक्त शब्द।
⋙ संस्क्रिया
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. संस्कार। संस्कृति। २. शुद्ध करना। मंत्र आदि से पवित्र करना (को०)। ३. अंत्येष्टि (को०)। ४. तैयार करना (को०)।
⋙ संस्खलन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संस्खलित] १. च्युत होना। गिरना। २. भूल करना। चूकना।
⋙ सस्खलित (१)
वि० [सं०] १. च्युत। गिरा हुआ। २. भूला हुआ। चूका हुआ।
⋙ संस्खलित (२)
संज्ञा पुं० भूल चूक।
⋙ संस्तंभ
संज्ञा पुं० [सं० संस्तम्भ] १. गति का सहसा रोध। एकबारगी रुकावट। २. चेष्टा का अभाव। निश्चेष्टता। ठक हो जाना। हाथ पैर रुक जाना। ३. शरीर की गति का मारा जाना। लकवा। ४. दृढ़ता। धीरता। ५. हठ। टेक। जिद। ६. आधार। टेक। सहारा।
⋙ संस्तंभन
संज्ञा पुं० [सं० संस्तम्भन] [वि० संस्तंभित, संस्तब्ध] १. गाति का सहसा रुकना या रोकना। एकबारगी ठहर जाना। २. निश्चेष्ट करना या होना। ठक कर देना या हो जाना। ३. बंद करना। ४. सहारा देना। टेकना। ५. रोकनेवाली वस्तु।६. संकुचित करना। समेट लेना (को०)।
⋙ संस्तंभनीय
वि० [सं० संस्तम्भनीय] १. दृढ़ करने योग्य। २. रोके जाने योग्य। ३. सहारा देने योग्य (को०)।
⋙ संस्तंभित
वि० [सं० संस्तम्भित] १. जिसे सहारा दिया गया हो। २. स्तब्ध। निश्चेष्ट। ३. लकवा रोग से ग्रस्त [को०]।
⋙ संस्तंभी
[सं० संस्तम्भिन्] संस्तंभ करने या रोकनेवाला। निवारण करनेवाला [को०]।
⋙ संस्तब्ध
वि० [सं०] १. एकबारगी रुका या ठहरा हुआ। २. निश्चेष्ट। ठक। भौचक्का। ३. सहारा दिया हुआ। जिसे टेक या सहारा दिया हो।
⋙ संस्तर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. तह। पर्त। पहल। २. घास फूस से बनाया हुआ आच्छादन। ३. घास फूस फैलाकर बनाया हुआ बिस्तर। तृण शय्या। ४. विस्तर। शय्या। ५. बिखेरना। विकीर्णन (को०)। ६. विकीर्ण पुष्पराशि।फैलाए हुए फूलों का समूह। ७. यज्ञ या यज्ञ आदि का आयोजन (को०)। ८. विधि, व्यवस्था या आचारादि का प्रचार (को०)।
⋙ संस्तर (२)
वि० छितराया हुआ। विकीर्ण किया हुआ।
⋙ संस्तरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. बिछाना। फैलाना। पसारना। २. छितराना। बिखेरना। ३. तह चढ़ाना। परत फैलाना। ४. बिस्तर। शय्या।
⋙ संस्तव
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्रशंसा। स्तुति। तारीफ। २. जिक्र। कथन। उल्लेख। ३. परिचय। जान पहचान। मेल जोल।
⋙ संस्तवन
संज्ञा पुं० [सं०] [बि० संस्तवनीय, संस्तुत] १. स्तुति करना। प्रशंसा करना। २. यश गाना। कीर्ति बखानना।
⋙ संस्तव प्रीति
संज्ञा स्त्री० [सं०] संस्तव अर्थात् परिचय के कारण होनेवाली प्रीति [को०]।
⋙ संस्तवस्थिर
वि० [सं०] परिचय वा घनिष्टता से दृढ़ [को०]।
⋙ संस्तवान (१)
वि० [सं०] १. यश गान करनेवाला। स्तुति करनेवाला। २. वाग्मी। वाग्पटु [को०]।
⋙ संस्तवान (२)
संज्ञा पुं० १. प्रसन्नता। आनंद। २. गायक। गानेवाला। ३. उदगाता [को०]।
⋙ संस्तार
संज्ञा पुं० [सं०] तह। पहल। २. बिस्तर। शय्या। ३. एक यज्ञ का नाम। ४. वितति। विस्तार। वृद्धि (को०)।
⋙ संस्तारक
संज्ञा पुं० [सं०] विस्तर। शय्या [को०]।
⋙ संस्तार पक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं० संस्तार पडिकत] एक वर्णवृत्ति जिसमें १२+८+८+१२ के योग के ४० वर्ण होते हैं [को०]।
⋙ संताव
संज्ञा पुं० [सं०] १. यज्ञ में स्तुति करनेवाले ब्राह्मणों की अवस्थान भूमि। २. स्तुति। प्रशंसा। ३. परिचय। जान पहचान। ४. संमिलित स्ववन या स्तुति (को०)।
⋙ संस्तीर्ण
वि० [सं०] फैलाया हुआ। पसारा हुआ। बिछाया हुआ। २. बिखेरा हुआ। फैलाया हुआ। छितराया हुआ।
⋙ संस्तुत
वि० [सं०] १. जिसकी खूब स्तुति या प्रशंसा की गई हो। २. परिचित। ज्ञात। ३. एक साथ गिना हुआ। गिनती में शामिल किया हुआ। ४. समान। तुल्य। सामंजस्य युक्त। ५. अभीष्ट। इच्छित (को०)। ६. जिसकी एक साथ या संमिलित होकर स्तुति की गई हो (को०)।
⋙ संस्तुतक
वि० [सं०] भद्र। शिष्ट। सभ्य [को०]।
⋙ संस्तुति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सम्यक् स्तुति। खूब प्रशंसा। गहरी तारीफ। २. भावाभिव्यंजन की एक आलंकारिक पद्धति या शैली (को०)।
⋙ संस्तूप
संज्ञा पुं० [सं०] घूर। कूड़े कचरे का ढेर [को०]।
⋙ संस्तृत
वि० [सं०] फैलाया या बिछाया हुआ। आच्छादित [को०]।
⋙ संस्त्यान (१)
वि० [सं०] दृढ़। जमा हुआ।
⋙ संस्त्यान (२)
संज्ञा स्त्री० वह जो स्थिर या दृढ़ हो। जैसे,—गर्भस्थ भ्रण या गर्भ [को०]।
⋙ संस्त्याय
संज्ञा पुं० [सं०] १. संचय। राशि। ढेर। २. सन्निधि। सामीप्य। घनिष्टता। ३. प्रसार। विस्तार (को०)। ४. घर। आवास (को०)। ५. मित्रों का वार्तालाप [को०]।
⋙ संस्थ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. निज देशवासी। स्वदेशवासी। अपने देश का। २. निवासी (को०)। ३. चर। दूत।
⋙ संस्थ (२)
वि० १. टिकाऊ। ठहरनेवाला। २. पालतू। घरेलू। ३. स्थिर। अचल। २. विद्यमान। मौजूद। ५. मृत। नष्ट। ६. पूर्ण। अंत को प्राप्त। ७. व्यक्त [को०]।
⋙ संस्था
संज्ञा पुं० [सं०] १. ठहरने की क्रिया या भाव। ठहराव। स्थिति। २. व्यवस्था। बँधा नियम। विधि। मर्यादा। रूढ़ि। ३. प्रकट होने की क्रिया या भाव। अभिव्यक्ति। प्रकाश। ४. रूप। आकार। आकृति। ५. गुण। सिफत। ६. ठिकाने लगाना। ७. समाप्ति। अंत। खातमा। ८. जीवन का अंत मृत्यु। ९. नाश। १०. प्रलय। ११. यज्ञ का मुख्य अंग। १२. बध। हिंसा। १३. गुप्तचरों या भेदियों का वर्ग। विशेष—इसके अंतर्गत पाँच प्रकार के दूत कहे गए हैं—वणिक् भिक्षु, छात्र, लिंगी (संप्रदायी) और कृषक। १४. व्यवसाय। पेशा। १५. जत्था। गरोह। १६. समाज। मंडल। सभा। समिति। १७. राजाज्ञा। फरमान। १८. सादृश्य। समानता। १९. विराम। यति (को०)। २०. शव के आग से जलने की आवाज या शव क्रिया (को०)। २१. सोमयज्ञ का एक प्रकार (को०)। यौ०—संस्थाकृत=स्थिरीकृत। निर्धारित। ठहराया हुआ। संस्थाजय=यज्ञांत में किया जानेवाला जप।
⋙ संस्थागार
संज्ञा पुं० [सं०] वह भवन या कक्ष जहाँ सभा आदि की जाय [को०]।
⋙ संस्थाध्यक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] १. व्यापार का निरीक्षक। व्यापाराध्यक्ष। विशेष—कौटिल्य के अनुसार इसका मुख्य काम गिरवी रखे जानेवाले माल का तथा पुरानी चीजों का विक्रय करवाना था। तौल माप का निरीक्षण भी यही करता था। चंद्रगुप्त के समय से तुला द्वारा तौलने में यदि दो तोले का फरक पड़ जाता तो बनिए पर छह पण जुर्माना किया जाता था। क्रय विक्रय संबंधी राजनियमों को जो लोग तोड़ते थे, उनको भी दंड यही देता था। भिन्न भिन्न पदा्र्थो पर कितनी चुंगी लगे कौन कौन सा माल बिना चुंगी दिए शहर में जाय, इन संपूर्ण बातों का प्रबंध भी यही करता था। पदार्थों की कीमतें भी यही नियत करता था। सरकारी पदार्थों का विक्रय भी यही करवाता था और उनके विक्रय के लिये नौकर भी रखता था, इत्यादि। २. किसी समाज, समिति या संस्था का प्रधान व्यक्ति।
⋙ संस्थान (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. ठहरने की क्रिया या भाव। ठहराव। स्थिति। २. खड़ा रहना। डटा रहना। जमा रहना। ३. सन्निवेश। बैठाना। स्थापन। विन्यास। ४. अस्तित्व। जीवन। ५. सम्यक् पालन। पूरा अनुसरण। पूरी पैरवी।६. ठहरने या रहने की जगह। डेरा। घर। ७. बस्ती। जनपद। ८. सार्वजनिक स्थान। सर्वसाधारण के इकट्ठे होने की जगह। ९. रूप। आकृति। शकल। १०. कांति। सौंदर्य। ११. प्रकृति। स्वभाव। १२. रोग का लक्षण। १३. अवस्था। दशा। हालत। १४. मूल तत्वों की समष्टि। योग। जोड़। १५. ठिकाने लगाना। समाप्ति। अंत। खातमा। १६. नाश। मृत्यु। १७. रचना। बनावट। निर्माण। १८. पड़ोस। सामीप्य। निकटता। १९.। चौमुहानी। चौरास्ता। चौराहा। २०. आयोजन। प्रबंध। व्यवस्था। डौल। २१. ढाँचा। चौखटा। २२. साँचा। ढाँचा। डौल। खाका। २३. राशि। समूह। संचय। ढेर (को०)। २४. उद्योग, व्यापार, साहित्य आदि के विभिन्न अंगों की उन्नति के लिये स्थापित मंडल या संस्था। २५. भाग। हिस्सा। खंड (को०)। २६. चिह्न। निशान। विशेषक चिह्न (को०)।
⋙ संस्थान (२)
वि० १. स्थावर। २. सदृश। समान [को०]।
⋙ संस्थापक
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० संस्थापिका] १. खड़ा करनेवाला। स्थापित करनेवाला। २. उठानेवाला। (भवन आदि)। ३. कोई नई बात चलानेवाला। जारी करनेवाला। प्रवर्त्तक। ४. कोई सभा, समाज या सर्वसाधारण के उपयोगी कार्य खोलनेवाला। ५. चित्र, खिलौनें आदि बनानेवाला। ६. रूप या आकार देनेवाला।
⋙ संस्थापन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संस्थापनीय, संस्थापित, संस्थाप्य] १. खड़ा करना। उठाना। निर्मित करना। (भवन आदि)। २. स्थित करना। जमाना। बैठाना। ३. कोई नई बात चलाना। नया काम जारी करना। नया काम खोलना। ४. रूप या आकार देना। ६. एक साथ करना। एकत्र करना। संचयन करना (को०)। ७. निर्णीत करना। निश्चित करना (को०)। ८. नियंत्रित करना। प्रतिबंधित करना (को०)। ९. नियम। विधि (को०)।
⋙ संस्थापना
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. रोकना। नियंत्रण। प्रतिबंध। २. शांत या स्थिर करने के उपाय। ३. दे० 'संथापना' [को०]।
⋙ संस्थापनीय
वि० [सं०] संस्थापन के योग्य।
⋙ संस्थापित
वि० [सं०] १. उठाया हुआ। खड़ा किया हुआ। निर्मित। २. जमाया हुआ। बैठाया हुआ। स्थित किया हुआ। प्रतिष्ठित। ३. जारी किया हुआ। चलाया हुआ। ४. संचित। बटोरा हुआ। ५. ढेर लगाया हुआ। ६. नियंत्रित। प्रतिबंधित। रोका हुआ (को०)।
⋙ संस्थाप्य
वि० [सं०] १. संस्थापन के योग। २. जिसका संस्थापन करना हो। ३. पु्र्ण या समाप्त करने योग्य। जैसे, यज्ञ आदि (को०)। ४. शांतिदायक वस्तिप्रयोग द्वारा चिकित्सा करने लायक (को०)।
⋙ संस्थित (१)
वि० [सं०] १. खड़ा। उठाया हुआ। २. ठहरा हुआ। टिका हुआ। ३. बैठा हुआ। जमा हुआ। दृढ़ता से अड़ा हुआ। ४. रूप में लाया हुआ। निर्मित। ५. ठिकाने लगाया हुआ। ६. समाप्त। खतम। ७. मृत। मरा हुआ। ८. ढेर लगाया हुआ। बटोरा हुआ। ९. मिलता जुलता। समान (को०) १०. अंदर रखा हुआ। अंतर्वर्ती (को०)। ११. लगा हुआ। आसन्न (को०)। १२. प्रस्थान किया हुआ (को०)। १३. (भोजन आदि) अधिक समय से पड़ा हुआ (को०)। १४. आधृत। आधारित (को०)। १५. टिकाऊ (को०)। १६. भावी (को०)। १७. दक्ष। कुशल (को०)।
⋙ संस्थित (२)
संज्ञा पुं० १. आचरण। २. आकृति [को०]।
⋙ संस्थिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. खड़े होने की क्रिया या भाव। २. ठह- राव। जमाव। ३. बैठने की क्रिया या भाव। ४. एक अवस्था में रहने का भाव। ज्यों का त्यों रहने का भाव। ५. दृढ़ता। धीरता। ६. अस्तित्व। हस्तो। ७. रूप। आकृति। सूरत। ८. व्यवस्था। तरतीब। ९. गुण। सिफत। १०. प्रकृति। स्वभाव। ११. समाप्ति। खातमा (विशेषतः यज्ञादि के लिये)। १२. मृत्यु। मरण। १३. कोष्ठबद्धता। कब्जियत। १४. राशि। ढेर। अटाला। १५. साम्णोप्य। आसन्नता (को०)। १६. निवास स्थान। आवासस्यल (को०)। १७. रोक। प्रतिबंध (को०)। १८. अवधि। कालावधि (को०)। १९. प्रलय (को०)।
⋙ संस्पर्द्धा, संस्पर्धा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. किसी के बराबर होने की प्रबल इच्छा। बराबरी की चाह। २. ईर्ष्या। डाह।
⋙ संस्पर्द्धी, संस्पर्वी
वि० [सं० संस्पर्द्धिन्, संस्पर्धिन्] [स्त्री० संस्पर्द्धिनी] १. बराबरी की इच्छा करनेवाला। २. ईर्ष्यालु।
⋙ संस्पर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छी तरह छू जाने का भाव। एक के अंग का दूसरे से लगना। विशेष—धर्मशास्त्रों में कुछ लोगों का संस्पर्श होने पर द्रिजातियों के लिये प्रयश्चित्त का विधान है। यह संस्पर्शदोष शरीर के छू जाने, आलाप, निश्वन, सहभोजन तथा एक शय्या पर बैठने या सोने से कहा गया है। २. घनिष्ठ संबंध। गहरा लगाव। ३. मिलाप। मेल। ४. मिलावट। मिश्रण। ५. इंद्रियों का विषय ग्रहण। ६. थोड़ा सा आवि- र्भाव। कुछ प्रभाव।
⋙ संस्पर्शन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संस्पर्शनीय, संस्पृष्ट] १. छूना। अंग से अंग लगना। २. मिलना। सटना। ३. मिश्रण।
⋙ संस्पर्शी
संज्ञा स्त्री० [सं०] जनी नामक गंध द्रव्य।
⋙ स्पर्शी
वि० [सं० संस्पर्शिन्] संपर्क में आनेवाला। स्पर्श करने— वाला। छूनेवाला।
⋙ संस्पर्शी (२)
संज्ञा पुं० जनी नामक गंध युक्त पौधा [को०]।
⋙ संस्पृष्ट
वि० [सं०] १. छूआ हुआ। २. सटा हुआ। मिला हुआ। ३. जुड़ा हुआ। परस्पर संबद्ध। ४. पास ही पड़ता हुआ। जो निकट ही हो। ५. लेश मात्र प्रभावित। जिसपर बहुत कम असर पड़ा हो। ६. प्राप्त (को०)।
⋙ संस्पृष्टमैथुना
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह लड़की जिसे बरगलाया गया हो या जिसे मैथुन का परिचय मिल गया हो। भ्रष्ट। विशेष—ऐसी लड़की को विवाह के अयोग्य माना गया है।
⋙ संस्फाल
संज्ञा पुं० [सं०] १. भेड़। मेष। २. मेघ। बादल (को०)।
⋙ संस्फुट
वि० [सं०] १. खूब फूटा या खुल पड़ा हुआ। २. खूब खिला हुआ। विकसित। ३. सुस्पष्ट।
⋙ संस्फेट
संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध। लड़ाई।
⋙ संस्फोट
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० संस्फोटि] युद्ध। लड़ाई।
⋙ संस्मरण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संस्मरणीय, संस्मृत] १. पूर्ण स्मरण। खूब याद। २. अच्छो तरह सुमिरना या नाम लेना। ३. लस्कार- जन्य ज्ञान। ४. किसो व्यक्ति या विषय आदि की स्मृति को आधार बनाकर उसके संबंध में लिखा हुआ वह लेख जिससे उसको विशिष्टताओं का आकलन हो सके।
⋙ संस्मरणी
वि० [सं०] १. पूर्ण स्मरण करने योग्य। २. नाम जपने योग्य। ३. महत्व का। न भूलनेवाला। जिसकी याद बराबर- बनी रहे। ४. जिसकाद स्मरण मात्र रह गया हों। अतीत।
⋙ संस्मारक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० संस्मारिका] १. वह जो स्मरण कराता हो। स्मरण करानेवाला। याद दिलानेवाला। २. वह निर्माण या वस्तु जो व्यक्ति, स्यिति या कार्यविरोष की स्मृति बनाया गया हो। स्मारक।
⋙ सस्मारक (२)
वि० स्मरण करानेवाला।
⋙ संस्मरण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संस्मारित] १. स्मरण कराना। याद दिलाना। २. गिनती करना। गिनना (चौपायों के विषय में)।
⋙ संस्मारित
वि० [सं०] १. याद दिलाया हुआ। स्मरण कराया हुआ। २. ध्यान में लाया हुआ। याद किया हुआ।
⋙ संस्मृत
वि० [सं०] १. स्मरण किया हुआ। याद किया हुआ। २. अभिहित। कथित (को०)। ३. आज्ञप्त। आदिष्ट (को०)।
⋙ संस्मृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] पूर्ण स्मृति। पूरी याद।
⋙ संस्यूत
वि० [सं०] १. अभेद्य रूप से अच्छी तरह एक में मिला हुआ। २. सिला हुआ। नत्थी किया हुआ। ३. अनुस्यूत। ओतप्रोत [को०]।
⋙ संस्त्रव
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० संस्रवा] १. एक साथ बहना। २. पूरा बहाव, प्रवाह या धारा। ३. बहती हुई वस्तु। ४. बहता हुआ जल। ५. एक प्रकार का पिंडदान। ६. किसी वस्तु का नोचा हुआ अंश। उखड़ा हुआ चिप्पड़। ७. चूना। गिरना। झरना। रसना।
⋙ संस्त्रवण
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहना। प्रवाहित होना। २. चूना। झरना। गिरना। यौ०—गर्भस्त्रवण=गर्भपात। गर्भस्राव।
⋙ संस्रष्टा
संज्ञा पुं० [सं० संस्रष्ट्ट] [स्त्री० संस्त्रष्ट्री] १. आयोजन करनेवाला। २. मिलाने जुलानेवाला। मिश्रण करनेवाला। ३. रचनेवाला। बनानेवाला। निर्माता। ४. भाग लेनेवाला। सहयोग देनेवाला (को०)। ५. भिड़नेवाला। लड़ई में जुटनेवाला।
⋙ संस्त्राव
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहाव। प्रवाह।२. मवाद का इकट्टा। होना। (सुश्रुत)। ३. किसी द्रव पदार्थ के नीचे जमा हुआ पदार्थ। तलछट। ४. एक प्रकार का पिंडदान। संस्त्रव (को०)।
⋙ संस्त्रावण
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संस्त्राव्य] १. बहाना। प्रवाहित करना। २. बहना। प्रवाहित होना। ३. झरना। चूना टपकना।
⋙ संस्त्रावित
वि० [सं०] १. बहाया हुआ। २. बहा हुआ। ३. झरा हुआ। ४. टपका हुआ।
⋙ संस्त्राव्य
वि० [सं०] १. बहाने या टपकाने योग्य। २. जिसे बहाना या टपकाना हो।
⋙ संस्बार
संज्ञा पुं० [सं०] एक साथ स्वर निकालना। समवेत रूपेण शब्द करना [को०]।
⋙ संस्वेद
संज्ञा पुं० [सं०] स्वेद। पसीना।
⋙ संस्वेदज
वि० [सं०] पसीने से उत्पन्न (कृमि आदि)।
⋙ संस्वेदी
वि० [सं० संस्वेदिन्] जिसके शरीर से स्वेद या पसीना बह रहा है।
⋙ संहंता
संज्ञा पुं० [सं० संहन्तृ] [स्त्री० संहंत्री] १. वध करनेवाला। मारनेवाला। २. संहत करनेवाला। संबद्ध करनेवाला।
⋙ संहत (१)
वि० [सं०] १. खुब मिला। जुटा या सटा हुआ। बिल्कुल लगा हुआ। पूर्ण संबद्ध। २. एक हुआ। एक में मिला हुआ। ३. संयुक्त। सहित। ४. जो मिलकर ठोस हो गया हो। मिलकर खूब बैठा हुआ। कड़ा। सख्त। ५. जो विरल या झीना न हो। गठा हुआ। घना। ६. द्दढ़ांग। मजबूत। दृढ़।७. एकत्र। इकट्ठा। ८. मिश्रित। मिला हुआ। ९. एक मत (को०)। १०. अवरुद्ध। बंद (को०)। ११. चोट खाया हुआ। आहत। घायल। यौ०—संहतकुलीन। संहातजानु। संहततल=अंजुलिवद्ध (हाथ)। जिसकी दोनों अँजुरिया मिली हुई हों। संहतपत्रिका। संहतबल=सुगठित सैन्य। संगठित सेना। संहतभू=जिसकी भौंह परस्पर मिली हों। एक में मिली हुई भौंहोंवाला। कुंचित भ्रू वाला। संहतमूर्ति=जिसकी शरीराकृति हृष्ट पुष्ट हो। द्दढ़ शरीरवाला। संहतस्तनी=पिष्ट और घने या अविरल स्तनोंवाली। संहतहस्त=हाथ से हाथ मिलाए हुए।
⋙ संहत (२)
संज्ञा पुं० नृत्य में एक प्रकार की मुद्रा।
⋙ संहतकुलीन
वि० [सं०] सम्मिलित परिवार का अथवा ऐसे कुटुंब का जो निकटतम संबंधी हो।
⋙ संहतजानु, संहतजानुक
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जिसने घुटने मिलाए हुए हों। वह जिसने दोनों घुटने सटाए हों। २. बैठने की एक मुद्रा। ३. वह जिसके घुटने चलने में परस्पर टकराते हों। लग्नजानुक (को०)।
⋙ हतता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. घना संपर्क, संश्लेष, लगाव या मेल। २. निविड़ता। संपृक्तता। परस्पर संपृक्त होना। सांद्रता। ३. ऐक्य। सहमति। एकता। ४. सौमनस्य। अविरोधिता [को०]।
⋙ संहतत्व
संज्ञा पुं० [सं०] संहत होने की क्रिया, स्थिति या भाव। संहतता [को०]।
⋙ संहतपत्रिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] सोआ। शतपुष्पा।
⋙ संहतल
संज्ञा पुं० [सं०] १. अंजलि। अँजुरी। २. दोहत्थल। दोहत्थड़ [को०]।
⋙ संहतांग
वि० [सं० संहताङ्ग] १. दृढ़ाग। हृष्ट पुष्ट। मजबूत। २. परस्पर संपृक्त या मिला हुआ (को०)।
⋙ संहतांजलि
वि० [सं० संहताञ्जलि] जो हाथ जोड़े हो। कर बद्ध।
⋙ संहताख्य
वि० [सं०] पवमान नामक अग्नि।
⋙ संहति
संज्ञा स्त्री०[सं०] मिलाव। मेल। २. जुटाव। बटोर। इकट्ठा होने का भाव। ३. राशि। ढेर। अटाला। ४. समूह। झुंड। ५.परस्पर मिलकर ठोस होने का भाव। निविड़ संयोग। गठन। ठोसपन। घनत्व। ६. संधि। जोड़। ७. शरीर। देह। जिस्म (को०)। ८. शक्ति। ताकत। बल (को०)। ९.संयुक्त यत्न। सामूहिक चेष्टा (को०)। १०. परमाशु का परस्पर मेल।
⋙ संहतिशाली
वि० [सं० संहतिशालिन्] घन। ठोस। द्दढ़ [को०]।
⋙ संहतिपुष्पिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] सोआ। शतपुष्पा।
⋙ संहनन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. संहत करना। एक में मिलाना। जोड़ना। २. खूब मिलाकर घना या ठोस करना। ३. बध। मार डालना। ४. संयोग। मेल। मिलावट। ५. कड़ाई। ६. पुष्टता। मजबूती। बलिष्ठता। ७. मेल। मुआफिकत। सामंजस्य। अनुकूलता। ८. शरीर। देह। ९. कवच। बक्तर। वर्म। १४. शरीर का मर्दन। मालिश।
⋙ संहनन (२)
वि० हंता। हनन करनेवाला। विनाशक। २. ठोस। दृढ़। ३. मजबूत या दृढ़ करनेवाला। ४. एक दुसरे से टकरानेवाला [को०]।
⋙ संहनननीय
वि० [सं०] १. दृढ़। मजबूत। मिला हुआ। २. जो संहनन के योग्य हो [को०]।
⋙ संहरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक साथ करना। बटोरना। एकत्र करना। संग्रह करना। २. एक साथ बाँधना। गूँथना (केशों का)। ३. जबरदस्ती ले लेना। छीनना। ४. लौटा लेना। जैसे, अभिमंत्रित अस्त्र या माया आदि। समेटना। संकुचित करना (को०)।५. अवरोध करना। रोकना। ६. संहार करना। नाश करना। ध्वंस करना। ७. प्रलय।
⋙ संहरना पु (१)
क्रि० अ० [सं० संहार] नष्ट होना। संहार होना।
⋙ संहरना पु (२)
क्रि० स० [सं० संहारण] संहार करना। ध्वंस करना। उ०—सुरनायक सो संहरी परम पापिनी बाम।—केशव (शब्द०)।
⋙ संहर्तव्य
वि० [सं०] १. संहरण के योग्य या जिसका संहरण किया। जाय। २. एकत्र करने योग्य। ३. पहले जैसा करने योग्य। वापस करने लायक [को०]।
⋙ संहर्त्ता
वि० संज्ञा पुं० [सं० संहर्तृ] [स्त्री० सहर्त्री] १. इकट्ठा करनेवाला। बटोरने या समेटनेवाला। एकत्र करनेवाला। २. नाश करनेवाला। ३. बध करनेवाला। मारनेवाला।
⋙ संहर्ष
संज्ञा पुं० [सं०] १. उमंग से रोओं का खड़ा होना। पुलक। उमंग। २. भय से रोंगटे खड़े होना। ३. चढ़ा ऊपरी। एक दूसरे से बढ़ने की चाह। स्पर्द्धा। लाग डाँट। होड़। ४. ईर्ष्या। डाह। ५. वायु। हवा (को०)। ६. प्रसन्नता। आनंद। हर्ष (को०)। ७. काम का वेग। कामोत्तेजना (को०)। ८. संघर्ष। रगड़ । ९. मर्दन। शरीर की मालिश।
⋙ संहर्षण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० संहर्षित, संहृष्ट] १. पुलकित होना। २. स्पर्द्धा। लाग डाँट। चढ़ा ऊपरी।
⋙ संहर्षण (२)
वि० [वि० स्त्री० संहर्षिणी] पुलकित करनेवाला। आनंद से प्रफुल्लित करनेवाला।
⋙ संहर्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] पित्तपापड़ा। पर्पटक। शाहतरा।
⋙ संहर्षित
वि० [सं०] पुलकित। रोमांचित।
⋙ संहर्षी
वि० [सं० संहार्षिन्] [वि० स्त्री० संहर्षिणी] १. पुलकित होनेवाला। २. पुलकित करनेवाला। ३. स्पर्द्धा या ईर्ष्या करनेवाला।
⋙ संहवन
संज्ञा पुं० [सं०] १. चार मकानों का चौकोर समूह। २. साथ मिलकर हवन करना। ३. उचित या ठीक ढंग से यज्ञादि करना। यथेचित रीति या सरणि से यज्ञ करना [को०]।
⋙ संहीत
संज्ञा पुं० [सं०] १. संघात। समूह। जमावड़ा। वि० दे० 'संघात'। २. एक नरक का नाम। ३. शिव के एक गण का नाम।
⋙ संहात्य
संज्ञा पुं० [सं०] समझौते की शर्तों का परित्याग। संधि की शर्तीं को न मानना या भंग करना [को०]।
⋙ संहार
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक साथ करना। इकट्ठा करना। समेटना। २. संग्रह। संचय। ३. संकोव। आकुंचन। सिकुड़ना। ४. समेटकर बाँधना। गुँथना (केशों का)। जैसे, विण- संहार। ५. छोड़े हुए बाण को फिर वापस लेना। ६. खुलासा। सार। संक्षेप कथन। ७. नाश। ध्वस। ८. समाप्ति। अंत। खातमा। जैसे,—रूपक के किसी अंक या रूपक का। काव्य- संहार। ९. कल्पांत। प्रलय। १०. एक नरक का नाम। ११. कौशल। निपुणाता। १२. व्यर्थ करने की क्रिया। निवारण। परिहार। रोक। जैसे,—किसी अस्त्र का संहार। १३. उच्चारण संबंधी एक दोष (को०)। १४. झुंड। समूह (को०)।१५. अभ्यास। निरंतर प्रवृत्ति (को०)। १६. भीतर की ओर करना। अंदर करना। सिकोड़ना। जैसे,—हाथी द्वारा अपनी सूँड़ (को०)। १७. संहारक। संहर्ता (को०)। १८. एक असुर (को०)।
⋙ संहारक
वि, संज्ञा पुं, [सं०] [स्त्री० संहारिका] १. संहार करनेवाला। संहर्ता। नाशक। २. संकोचन करनेवाला। संक्षिप्त कर्ता (को०)। ३. संग्रहकर्ता। एकत्र करनेवाला।
⋙ संहारकारी
वि० [सं० सहारकारिन्] [वि० स्त्री० सहारकारिणी] संहार या नाश करनेवाला।
⋙ संहारकाल
संज्ञा पुं० [सं] विश्व के नाश का समय। प्रलयकाल। उ०—बेटा बलिष्ट खर को मकाराक्ष आयो। संहार काल जनु काल कराल धायो।—केशव (शब्द०)।
⋙ संहारना पु
क्रि० स० [सं० संहरण] १. मार डालना। उ०— ओहि धनुष रावन संहारा। ओहि धनुष कंसासुर मारा।—जायसी (शब्द०)। २. नाश करना। ध्वंस करना।
⋙ संहार भैरव
संज्ञा पुं० [सं०] भैरव के आठ रूपों या मूर्तियों में से एक। कालभैरव।
⋙ संहार मुद्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] तांत्रिक पूजम में अंगों की एक प्रकार की स्थिति, जिसे विसर्जन मुद्रा भी कहते हैं।
⋙ संहारिक
वि० [सं०] सब कुछ संहार करनेवाला।
⋙ संहारी
वि० [सं० संहारिन्] नाश करनेवाला। विनाश करनेवाला। संहार करनेवाला [को०]।
⋙ संहार्य
वि० [सं०] १. समेटने या बटोरने योग्य। संग्रह करने योग्य। इकट्ठा करने लायक। २. एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर करने योग्य। हटाने लायक। ले जाने लायक। ३. जिसे ले जाना हो। ४. रोकने योग्य। निवारण या परिहार के योग्य। ५. जिसे रोकना हो। जिसका निवारण या परिहार करना हो। ६. फुसलाने या बहकाने योग्य। ७. जिसका किसी पर हक या अधिकार हो (को०)।
⋙ संहित
बि० [सं०] १. एक साथ किया हुआ। एकत्र किया हुआ। बटोरा हुआ। समेटा हुआ। २. संमिलित। मिलाया हुआ। ३. जुड़ा हुआ। लगा हुआ। संबद्ध। ४. संयुक्त। सहित। अन्वित। पूर्ण। ५. मेल में आया हुआ। हेल मेलवाला। मेली। ६. क्रम या परंपरागत संबंध या लगाव रखनेवाला। ७. रखा हुआ। संधान के लिये जो धनुष पर रखा गया हो। (को०)। ८. अनुकूल (को०)। ९. रचित। निर्मित (को०)।
⋙ संहित पुष्पिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सोआ नाम का साग। २. धनिया।
⋙ संहिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मेल। मिलावट। संयोग। २. पाशिनि व्याकरण का एक पारिभाषिक शब्द जिसके अनुसार दो वर्णें का परस्पर अत्यंत (परम) संनिकर्ष होता है। संधि। ३. ऋग्वेदादि चारों वेदों के मंत्रों का संकलन और उनके गदों की विशेष रीति का (जिसमें व्याकरण- नुसारी संधि की गई हो) पाठ। वह ग्रंथ जिसमें पदपाठ आदि का क्रम नियमानुसार चला आता हो। कोई ग्रंथ जिसका पाठ प्राचीन काल से गृहीत चला आता हो। जैसे,—मनु, अत्रि आदि की धर्मसंहिताएँ या स्मृतियाँ। विशेष—स्मृति या धर्मशास्त्र सबंधी १९ संहिताएँ कही जाती हैं जिनमें मनु, अत्रि, विष्णु, हारीत, कात्यायन, बृहस्पति, नारद, पराशर, व्यास, दक्ष, गौतम आदि प्रसिद्ध हैं। रामायण को भी कभी कभी संहिता कह देते हैं। वेदव्याम कृत एक 'पुराण संहिता' का भी उल्लेख मिलता है (दे० 'पुराण')। इसके अतिरिक्त और विषयों के ग्रंथ भी संहिता कहे जाते हैं। जैसे,—भृगुसंहिता (फलित ज्योतिष); गर्गसंहिता (कृष्ण की कथा) आदि। ४. संकलन। संग्रह। संचय (को०)। ५. नियमानुसार विशिष्ट रूप से क्रमबद्ध गद्य पद्य आदि का संग्रह (को०)। ६. संसार का भरणपोषण करनेवाली परम शक्ति (को०)। ७. वेदों का मंत्र भाग। मुख्य वेद। विशेष दे० 'वेद'। यौ०—संहिताकार = संहिता का रचयिता। संहितापाठ = वेद के मंत्रों का सुव्यवस्थित क्रम।
⋙ संहिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक साथ रखना। लगाव या संपर्क- स्थापन [को०]।
⋙ संहूति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शोर। हल्ला। २. एक साथ पुकारना। एक साथ चिल्लाना [को०]।
⋙ संहृत
वि० [सं०] एकत्र किया हुशा। समेटा हुआ। २. संगृहीत। जुटाया हुआ। ३. नष्ट। ध्वस्त। ४. समाप्त। खत्म। ५. निवारित। रोका हुआ। ६. जिसे संक्षिप्त किया गया हो। संकुचित (को०)। ७. अपहृत (को०)।
⋙ संहृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. बटोरने या समेटने की क्रिया। २. संग्रह जुटाव। ३. नाश। ध्वंस। ४. प्रलय। ५. अंत। समाप्ति। ६. रोक। परिहार। ७. संक्षेप। खुलासा। ८. ग्रहण। धारण (को०)। ९. हरण। छोनना। लूट खसोट।
⋙ संहृषित
वि० [सं०] १. पुलकित। रोमांचित। संहर्षित। २. भय के कारण जड़ या निश्चेष्ट [को०]।
⋙ संहृष्ट
वि० [सं०] १. अंचित। खड़ा (रोम)। २. जिसके रोएँ उमंग से खड़े हों। पुलकित। प्रफुल्ल। ३. जिसके रोंगटे डर से खड़े हों। डरा हुआ। भीत। ४. प्रतिस्पर्धा के कारण दिप्त (को०)। ५. प्रज्वलित। जलता हुआ। प्रदीप्त (अग्नि)। यौ०—संहृष्टना = प्रसन्नमना। हर्षित हृदय। संहृष्टरोमांग, संहृष्टरोमा = प्रसन्नता के कारण जिसके शरीर के रोएँ खड़े हों। संहृष्टवत् = प्रसन्नता या उल्लासपूर्वक। संहृष्टवदन = जिसका चेहरा प्रसन्नता से खिला या दमक रहा हो।
⋙ संहृष्टी
वि० [सं० संहृष्टिन्] उत्तेजित। उत्थित। खड़ा। जैसे— पुरुष की जननेंद्रिय (को०)।
⋙ संह्नाद
संज्ञा पुं० [सं०] १. ऊँचा स्वर। चीख। २. एक असुर जो हिरणयकशिपु का पुत्र था। ३. शोर। कोलाहल।
⋙ संह्लादन
संज्ञा पुं० [सं०] चिल्लाना। कोलाहल करना। शोर मचाना। चीखना।
⋙ संह्लीण
वि० [सं०] १. पूर्णतया लज्जित या शर्मिंदा। २. संकोचशील। सलज्ज [को०]।
⋙ संह्लाद
संज्ञा पुं० [सं०] १. आनंद विशेष। २. दे० 'संह्लाद' [को०]।
⋙ संह्लादी
वि० [सं० संह्लादिन्] प्रसन्नता से भरा हुआ। प्रफुल्ल। हर्षित। आनंदयुक्त [को०]।
⋙ सँइतना †
क्रि० स० [सं० सञ्वय] १. लीपना। पोतना। चौका लगाना। २. संचय करना। ३. सुरक्षित रखना। ठिकाने से रखना। सहेजकर रखना। ४. यह देखना कि जितना और जैसा चाहिए, उतना और वैसा है या नहीं। सहेजना।
⋙ सँउपना पु ‡
संज्ञा स्त्री० [सं० समर्पण, प्रा० समप्पण, हिं० सौंपना] दे० 'सौपना'।
⋙ सँकरा † (१)
वि० [सं० सङ्कीर्ण] [वि० स्त्री० सँकरी] जो अधिक चौड़ा या विस्तृत न हो। पतला और तंग। जैसे,—सँकरा रास्ता।
⋙ सँकरा (२)
संज्ञा पुं० कष्ट। दुःख। विपत्ति। मुहा०—सँकरे में पड़ना = दुख में पड़ना। कष्ट में पड़ना।
⋙ सँकरा पु † (३)
संज्ञा स्त्री० [सं० श्रृङ्खला] शृंखला। साँकल। सीकड़। जंजीर। उ०—घुँघरवार अलकै विष भरे। सँकरे प्रेम चहुँ गये परे।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सँकरा (४)
संज्ञा पुं० [सं० खङ्कराभरण] एक राग। दे० 'शंकराभरण'।
⋙ सँकराना (१)
क्रि० स० [हिं० सँकरा + आना (प्रत्य०)] १. संकुचित करना। तंग करना। २. बंद करना।
⋙ सँकराना † (२)
क्रि० अ० संकुचित या संकीर्ण होना। जैसे,—यह रास्ता आगे चलकर सँकरा गया है।
⋙ सँकलपना पु †
क्रि० अ० [सं० सङ्कल्प] संकल्प करना। त्याग करना। छोड़ देना। उ०—सुख सँकलपि दुख साँबर लीन्हेउँ।—पदमावत, पृ० १३७।
⋙ सँकाना पु †
क्रि० अ० [सं० शड्क] शंकित होना। भीत होना। डरना। उ०—मुँह मिठास दृग चीकने, भौंहैं सरल सुभाय। तऊ खरे आदर खरौ, छिन छिन हियौ सँकाय।—बिहारी (शब्द०)।
⋙ सँकारा पु
संज्ञा पुं० [सं० सकाल] प्रातःकाल। उषःकाल। उ०— वहै पुकारहिं साँझ सँकारा।—पदमावत, पृ० १०८।
⋙ सँकुचना
क्रि० अ० [हिं० सकुचना] संकुचित होना। दे० 'सकुचना'।
⋙ सँकुचाना
क्रि० अ० [हिं० सकुचाना] दे० 'सकुचाना'।
⋙ संकेत †
वि० [हिं०] १. दे० 'सँकरा'। २. दे० 'संकेत (१)'।
⋙ सँकेतना (१)
क्रि० स० [सं० सङ्कीर्ण] संकट में डालना। कष्ट में डालना। आपत्ति में डालना। उ०—भएउ चेत, चेतन चित चेता। नैन झरोखे जीव सँकेता।—जायसी (शब्द०)।
⋙ संकेतना पु † (२)
क्रि० अ० संकीर्ण होना। संकुचित होना। मुँदना। उ०—कवल सँकेता कुमुदिनि फूली। चकई बिछुरि अचक मन भूली।—पदमावत, पृ० ५४२।
⋙ सँकेलना †
क्रि० स० [सं० सँङ्कृष्ट] खींचकर एकत्र करना। समे- टना। उ०—मानहु तिमिर अरुनमय रासी। बिरची बिधि सँकेलि सुखमा सी।—मानस, २।२३६। (ख) आएऊ इहाँ समाज सँकेली।—मानस, २।२९७।
⋙ सँकोच
संज्ञा पुं० [सं० सङ्कोच] दे० 'संकोच'। उ०—नीच कीच बिच मगन जस मीनहिं सलिल सँकोच।—मानस, २।२५१।
⋙ सँकोचना (१)
क्रि० स० [सं० सङ्कोच] संकुचित करना। संकोच करना। उ०—नींद तन परति राति प्रेम पनु एक भाँति सोचत सँकोचत बिरंचि हरि हर कै।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ सँकोचना (२)
क्रि० अ० संकुचित होना।
⋙ सँकोची
वि० [सं० सङ्कोचिन्] दे० 'संकोची'। उ०—चुपहि रहे रघुनाथ सँकोची।—मानस, २।२६९।
⋙ सँगरा
संज्ञा पुं० [फा़० संग? ] १. कूओं के तख्ते पर बना हुआ वह छेद जिसमें पानी खींचने का पंप बैठाया हुआ होता है। २. मोटे बाँस का वह छोटा टुकड़ा जिसकी सहायता से पेशराज लोग पत्थर उठाते हैं। सेंगरा।
⋙ सँघराना ‡
क्रि० स० [हिं० संग ? ] दुखी या उदासीन गौ को, उसका दूध दूहने के लिये, परचाना और फुसलाना। विशेष—जब बच्चा देने के उपरांत गौ उस बच्चे की नहीं चाटती या दूध नहीं पिलाती, तब उस बच्चे के शरीर पर शीरा आदि लगा देते हैं। जिसकी मिठास के कारण वह उसे चाटने और दूध पिलाने लगती है। इसी प्रकार जब बच्चा मर जाता है और गौ दूध नहीं देती, तब कुछ लोग उसके बछड़े की खाल में भूसा भरकर उसे गौ के सामने खड़ा कर देते हैं, जिसे देखकर वह दूध दूहने देती है। गौ के साथ इसी प्रकार की क्रियाएँ करने की 'सँघराना' कहते हैं।
⋙ सँघात
संज्ञा पुं० [हिं० संग] साथ। संग। उ०—धुआ उठै मुख साँस सँघाता।—पदमावत, पृ०।
⋙ सँघाती †
संज्ञा पुं० [हिं० संग, तुल० सं० सङ्घात] साथी। मित्र। सहचर। यौ०—संग सँघाती = संगी साथी।
⋙ संघेरना ‡
क्रि० सं० [हिं० सँघेरा या संग + घेरना] रस्सी से दो गौओं में से एक का दाहिना और दूसरी का बायाँ पैर एक में, इसलिये बाँधना कि जिसमें वे चरने के समय जंगल में बहुत दूर न निकल जायँ।
⋙ सँघेरा ‡
संज्ञा पुं० [हिं० संग + घेरना] वह रस्सी जिससे दो गौओं का एक पैर इसलिये एक साथ बाँध दिया जाता है जिसमें वे जंगल में चरती चरती बहुत दूर न निकल जायँ।
⋙ सँचरना पु †
क्रि० अ० [सं० सञ्चरण] घूमना। फिरना। चलना। उ०—ठाँवहिं ठाँव बीन्ह सब बाँटी। रहा न बीच जो सँचरै चाँटी।—जायसी (शब्द०)।
⋙ संचारना पु
क्रि० स० [हिं० संचार + ना (प्रत्य०)] उत्पन्न करना। जन्म देना। उ०—नूर मुहम्मद देखि तौ भा हुलास मन सोइ पुनि इबलीस सँचारेउ डरत रहै सब कोइ।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सँजुत
वि० [सं० संयुत] संयुक्त। मिश्रित। उ०—भई सँजुत आदम कै देहा।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सँजूत
वि० [सं० संयुक्त] सावधान। तैयार। सन्नद्ध। उ०—तेहि रे पंथ हम चाहहिं गवना। होहु सँजूत बहुरि नहिं अवना।—जायसी ग्रं०, पृ० ६२।
⋙ सँजोइ पु
क्रि० वि० [सं० संयोग] साथ में। संग में। उ०—घरी तीसरी दूसरे पहर गहर जनि होइ। भामिनि भोजन करन को अँचवति सखी सँजोइ।—देव (शब्द०)।
⋙ संजोइल पु
वि० [सं० सज्जित, हिं० सँजोना अथवा सं० संयोजित] १. अच्छी तरह सजाया हुआ। सुसज्जित। उ०—सूर सँजोइल साजि सुबाजि, सुसेल धरे बगमेल चले हैं। भारी भुजा भरी,भारी सरीर, बली बिजयी सब भाँति भले हैं।—तुलसी २. एक स्थान (शब्द०)। पर जमा किया हुआ। एकत्र। ३. संघटित। एकत्रित। उ०—होंहु सँजोइल रोकहु घाटा।—मानस, २।१९०।
⋙ सँजोऊ पु
संज्ञा पुं० [हिं० सँजोना] १. तैयारी। उपक्रम। उ०— अबहीं बेगिहि करौ सँजोऊ। तस मारहु हत्या नहिं होऊ।—जायसी (शब्द०)। २. साज सामान। सामग्री। उ०— बेगहु भाइहु सजहुँ सँजोऊ। सुनि रजाइ कदराइ न कोऊ।—मानस, २।१९१। ३. संयोग। उ०—ओहि आगे थिर रहा न कोऊ। दहुँ का कहँ अस जुरै सँजोऊ।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सँजोग
संज्ञा पुं० [सं० संयोग] दे० 'संयोग'। उ०—वर सँजोग मोहि मेरवहु कलस जात हौं मानि। जा दिन इच्छा पूजै बेगि चढाऊँ आनि।—जायसी। (शब्द)। (ख) जौ बिधिबस अस बनै सँजोगू। तौ कृतकृत्य होइ सब लोगू।—मानस, २।२२२।
⋙ सँजोना †
क्रि० स० [सं० सज्जा अथवा सं० संयोजना] १. सज्जित करना। अलंकृत करना। सजाना। उ०—(क) कुल हमरे में होइ, यातें पाछें कौन जो। विधिवत कव्य सँजोइ, नित्त हमें तर्पित करे।—लक्ष्मणसिंह (शब्द०)। (ख) हे प्रेयंवदा, तू जा पैरों पर पड़कर जैसे बने इसे मना ला तबतक मैं अर्घ, जल सँजोती हूँ।—लक्ष्मणसिंह (शब्द०)। २. एकत्र करना। संचित करना। ३. पूरा करना। ४. सँभालना।
⋙ सँजोवन †
संज्ञा पुं० [हिं० सँजोना] सज्जित करने की क्रिया। सजाने का व्यापार।
⋙ सँजोवना पु
क्रि० सं० [हिं० सँजोना] दे० 'सँजोना'। उ०—अस कहि भेंट संजोवन लागे।—मानस २।
⋙ सँजवल पु †
वि० [हिं० सँजोना] १. सुसज्जित। २. सेना सहित। उ०—होहि सँजोवल कुँवर जो भोगी। सब दर छेंकि धरहिं, अब योगी—जायसी (शब्द०)। ३. सावधान। होशियार।
⋙ संजोवा †
संज्ञा पुं० [हिं० सँजोना + वा (हिं० प्रत्यय)] १. सजावट। शृंगार। २. जमाव। जमघट।
⋙ सँजोह †
संज्ञा पुं० [सं० संयोग] लकड़ी का वह चौखटा जो जुलाहे कपड़ा बुनते समय छत से लटका देदे हैं और जिसमें राछ या कंधी लगी होती है। ढरकी फेंकते समय इसे आगे बढ़ा देते हैं और उसके पश्चात् इसे खींचकर बाने को कसते हैं। इसे हथ्था भी कहते हैं।
⋙ सँझला ‡
वि० [सं० सन्ध्या, प्रा० संझा + हिं० ला (प्रत्य०)] [वि० स्त्री० सँझली] १. संध्या संबंधी। संध्या का। उ०—पडौ़ना दिन भरि चिल्लान औ सँझली जून मरिगा।—सरस्वती (शब्द०)। २. मँझले से छोटा और छोटे से बड़ा। मँझले और छोटे के बीच का (को०)।
⋙ सँझवती †
संज्ञा स्त्री० [सं० सन्ध्यावर्तिका] दे० 'सँझवाती'।
⋙ सँझवाती (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सन्ध्या + वती] संध्या के समय जलाया जानेवाला दीपक। शाम का चिराग। उ०—चंद देख चकई मिलान सर फूले ऐसे, विपरीतकाल है सुदेह कहियत है। वाती सँझवाती धनसार नीर चंदन सो बारि लीजियत न अनल चहियतु है।—हृदयराम (शब्द०)। २. वह गीत जो संध्या समय गाया जाता है। प्रायः यह विवाह के अवसर पर होता है।
⋙ सँझवाती (२)
वि० संध्या संबंधी। संध्या का।
⋙ सँझिया, सँझैया
संज्ञा पुं० [सं० सन्ध्या] वह भोजन जो संध्या के समय किया जाता है। रात्रि का भोजन।
⋙ सँझोखा
संज्ञा पुं० [सं० सन्ध्या] दे० 'सँझोखे'।
⋙ सँझोखे पु
संज्ञा स्ञी० [सं० सन्ध्या] दे० संध्या का समय। शाम का वक्त। उ०—गोप अथाइनि ते उठे गोरज छाई गैल। चलि बलि अलि अभिसारिके भली सँझोखे सैल।—बिहारी (शब्द०)।
⋙ सँझोती ‡
संज्ञा स्त्री०, वि० [हिं० संझा + औती (प्रत्य०)] दे० 'सँझवाती'।
⋙ सँटिया
संज्ञा स्त्री० [देश०] बाँस की लंबी पतली छड़ी। साँटी। पतला बेंत या छड़ी। उ०—सँटिया लिए हाथ नँदरानी थरथरात रिस गात।—सूर०, १०।३४१।
⋙ सँठ (१)
संज्ञा पुं० [सं० शान्त] शांति। निस्तब्धता। खामोशी। मुहा०—सँठ मारना = चुपकी साधना। चुप रहना। कुछ न बोलना। न बोलना।
⋙ सँठ (२)
संज्ञा पुं० [सं० शठ] १. शठ। धूर्त। २. नीच। बाहियात।
⋙ सँड़सा
संज्ञा पुं० [ सं० सन्देश ] [स्त्री० अल्पा० सँड़सी] लोहे का एक औजार जो दो छड़ों से बनता है। गहुआ। जबूरा। विशेष—इसके एक सिरे पर थोड़ा सा छोड़कर दोनों छड़ों को आपस में कील से जड़ देते हैं। प्रायः इसे लोहार गरम लोहा आदि पकड़ने के लिय रखते हैं।
⋙ सँड़सी
संज्ञा स्त्री० [सं० सन्देश] पतले छड़ों का एक प्रकार का सँड़सा। जैबूरी। विशेष—इसके दोनों छड़ों का अगला भाग अर्ध वृत्ताकार मुड़ा हुआ होता है। इससे पकड़कर प्रायः चूल्हे पर से गरम बटुली आदि गोल मुँहवाले बरतन उतारते हैं।
⋙ सँडाई †
संज्ञा स्त्री० [हिं० साँड] दे० 'संडाई'।
⋙ संड़ास पु † (१)
संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'सँड़ासी'।
⋙ सँड़ास ‡ (२)
संज्ञा स्त्री० [हिं०] सँड़ी हुई वस्तु की गंध। सँड़ाँध।
⋙ सँड़ासी †
संज्ञा स्त्री० [सं० सन्दंशिका] दे० 'सँड़सी'। उ०—खिन खिन जीव सँड़ासिन्ह आँका। आवहिं डीँव छुवावहिं बाँका।—पदमावत, पृ० ७०३।
⋙ सँतरँज पु०
संज्ञा पुं० [अ० शतरंज; तुल० सं० चतुरङ्ग] दे० 'शतरंज'। उ०—मया सूर परसन भा राजा। साहि खेल सँतरँज कर साधा।—पदमावत, पृ० ६१२।
⋙ सँदेस पु †
संज्ञा पुं० [सं० सन्देश] दे० 'सँदेसा'। उ०—पितु सँदेस सुनि कृपानिधाना।—मानस, २।९७।
⋙ सँदेसड़ा पु †
संज्ञा पुं० [हिं० संदेस + ड़ा (प्रत्य०)] दे० 'सँदेसा'। उ०—पिउ सौं कहेहुँ संदेसड़ा, है भौरा ! हे काग।—जायसी ग्रं०, पृ० १५४।
⋙ सँदेसरा पु †
संज्ञा पुं० [हिं० संदेस + रा (प्रत्य०)] दे० 'सँदेसा'। उ०—जब लगि कह न सँदेसरा ना ओहि भूख न प्यास।—पदमावत, पृ० ३६५।
⋙ सँदेसा
संज्ञा पुं० [सं० सन्देश] किसी के द्वारा जबानी कहलाया हुआ समाचार आदि। खबर। हालचाल। क्रि० प्र०—आना।—जाना।—पाना।—भेजना।—मिलना।
⋙ सँदेसी †
संज्ञा पुं० [हिं० संदेसा + ई (प्रत्य०)] वह जो सँदेसा ले जाता हो। संदेशवाहक। बसीठ।—उ०—राजा जाइ तहाँ वहि लागा। जहाँ न कोई सँदेसी कागा।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सँदेहिल पु
वि० [सं० संदेह + हिं०, इल (प्रत्य०)] संदेहास्पद। संदेहयुक्त। उ०—नाम धर्यो संदिग्ध पद सब्द संदेहिल जासु।—भिखारी ग्रं०, भा० २, पृ० २२२।
⋙ सँपुटी पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्पुट] कटोरी। प्याली।
⋙ सँपूरन
वि० [सं० सम्पूर्ण] १. पूर्ण। उ०—अष्टम मास सँपूरन होई।—सूर०, ३।१३। २. सफल। सिद्ध। ३. समाप्त [को०]।
⋙ सँपेरा
संज्ञा पुं० [हिं० साँप + एरा (प्रत्य०)] [स्त्री० सँपेरिन] साँप पालनेवाला आदमी। मदारी। साँप का तमाशा दिखलानेवाला।
⋙ संपोला
संज्ञा पुं० [हिं० साँप + ओला (अल्पा० प्रत्य०)] साँप का बच्चा। मुहा०—सँपोला पालना = ऐसे व्यक्ति को प्रश्रय देना जो आगे चलकर उसी पर वार करे। नितराम् अविश्वसनीय व्यक्ति को प्रश्रय देना।
⋙ सँपोलिया
संज्ञा पुं० [हिं० साँप + वाला] १. साँप पकड़नेवाला। सँपेरा। † २. दे० 'सँपोली'-२।
⋙ सँपोली
संज्ञा स्त्री० [हिं० साँप + ओली (प्रत्य०)] १. वह पिटारी जिसमें सँपेरे साँप रखते हैं। २. बाँस के पोर पर से सूखकर अलग हो जानेवाली सूप के आकार की खोल। सुपेली।
⋙ सँभरना पु †
क्रि० अ० [हिं० सँभलना] दे० 'सँभलना'।
⋙ सँभलना
क्रि० अ० [हिं० सँभालना] १. किसी बोझ आदि का ऊपर लदा रह सकना। पकड़ में रहना। थामा जा सकना। जैसे,— यह वोझ तुमसे नहीं सँभलेगा। २. किसी सहारे पर रुका रह सकना। आधार पर ठहरा रहना। जैसे,—इस खंभे पर यह पत्थर नहीं सँभलेगा। ३. होशियार होना। सचेत होना। सावधान होना। जैसे,—इन ठगों के बीच सँभल कर रहना। ४. चोट या हानि से बचाव करना। गिरने पड़ने से रुकना। जैसे,—वह गिरते गिरते सँभल गया। ५. बुरी दशा को फिर सुधार लेना। जैसे,—इस रोजगार में इतना घाटा उठाओगे कि सँभलना कठिन होगा। ६. कार्य का भार उठाया जाना। निर्वाह संभव होना। जैसे,—हमसे इतना खर्च नहीं सँभलेगा। ७. स्वस्थता प्राप्त करना। आरोग्य लाभ करना। चंगा होना। जैसे,—बीमारी तो बहुत कड़ी पाई, पर अब सँभल रहे हैं।
⋙ सँभला †
संज्ञा पुं० [हिं० सँभलना] एक बार बिगड़कर फिर सुधरी हुई फसल।
⋙ सँभार पु †
संज्ञा पुं० [हिं० सँभालना, सं० सम्भार] १. देखरेख। खबरदारी। निगरानी। २. पालन पोषण। उ०—करिय सँभार कोसलराइ।—तुलसी (शब्द०)। यौ०—सार सँभार = पालन पोषण और निरीक्षण का भार। उ०—सब कर सार सँभार गोसाई।—तुलसी (शब्द०)। ३. वश में रखने का भाव। रोग। निरोध। उ०—रे नृप बालक कांलबस बोलत तोहि चन सँभार। — तुलसी (शब्द०)। ४. तन बदन की सुधि। होश हवास। ५. तैयारी [को०]।
⋙ सँभारना पु †
क्रि० स० [सं० सम्भार] १. दे० 'संभालना'। २. याद करना। स्मरण करना। मन में इकट्ठा करके लाना। उ०—बंदि पितर सब सुकृत सँभारे। जो कुछे पुन्य प्रभाव हमारे। तौ सिव धनुष मृनाल की नाई। तोरहिं राम, गनेस गोसाई।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ सँभाल
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भार] १. रक्षा। हिफाजत। २. पोषण का भार। देखरेख। निगरानी। ४. प्रबंध। इंतजाम। जैसे,— घर की सँभाल वही करता है। ५. तन बदन की सुध। होश हवास। चेत। आपा। जैसे,—वह इतना विकल हुआ कि शरीर की सँभाल न रही।
⋙ सँभालना
क्रि० स० [सं० सम्भार] १. भार को उपर ठहराना। बोझ ऊपर रखे रहना। भार ऊपर ले सकना। जैसे,—इतना भारी बोझ कैसे सँभालोगे। २. रोक या पकड़ में रखना। इस प्रकार थामे रहना कि छूटने या भागने न पावे। रोके रहना। काबू में रखना। जैसे,—सँभालो, नहीं तो छूटकर भाग जायगा। ३. किसी वस्तु को अपनी जगह से हटने, गिरने पड़ने, खिसकने आदि से रोकना। यथास्थान रखना। च्चुत न होने देना। थामना। जैसे—टोपी सँभालना, धोती सँभालना। ४. गिरने पड़ने से रोकने के लिये सहारा देना। गिरने से बचाना। जैस,—मैने सँभाल लिया, नहीं तो वह गिर पड़ता। ५. रक्षा करना। हिफाजत करना। नष्ट होने या खो जाने से बचाना। जैसे,—इस पुस्तक को बहुत सँभालकर रखना। ६. बुरी दशा को प्राप्त होने से बचाना। बिगड़ी दशा में सहायता करना। खराबी से बचाना। उद्धार करना। जैसे,—उसने बड़े बुरे दिनों में सँभाला है। ७. पालन पोषण करना। परवरिश करना। ८. देखरेख करना। निगरानी करना। ९. प्रबंध करना। इंतजाम करना। व्यवस्था करना। जैसे,—घर सँभालना। १०. निर्वाह करना किसी कार्य का भार अपने ऊपर लेना। चलाना। जैसे,—उसका खर्च हम नहीं सँभाल सकते। ११. दशा बिगड़ने से बचाना। रोग, व्याधि, आपत्ति इत्यादि की रोक करना। जैसे,—बीमारी बढ़ जाने पर सँभालना कठिन हो जाता है। १२. कोई वस्तु ठीक ठीक है, इसका इतमीनान कर लेना। सहेजना। जैसे— देखो १००) हैं, इन्हें सँभालो। १३. स्मरण करना। याद करना। दे० 'सँभारना'। १४. किसी मनोवेग को रोकना। जोश थमना। जैसे,—उसकी कड़ी बातें सुनकर मै अपने को सँभाचल न सका। संयो० क्रि०—देना।—लेना।
⋙ सँभाला
संज्ञा पुं० [हिं० सँभालना] जीवन की ज्योति का बुझने के पूर्व टिमटिमा उठना। मरने के पहले कुछ चेतनता सी आजाना। चैतन्य बाई होना। जैसे,—कल सँभाला लिया था, आज मर गया। क्रि० प्र०—लेना।
⋙ सँभालू
संज्ञा पुं० [हिं० सिंधुवार] श्वेत सिंधुवार वृक्ष। मेवड़ी।
⋙ सँयोना पु
क्रि० स० [हिं० सँजोना अथवा सं० संयोजन] दे० 'सँजोना'।
⋙ सँवर पु †
संज्ञा स्त्री० [सं० स्मरण] १. याद। स्मरण। स्मृति। २. खबर। हाल चाल।
⋙ सँवरना (१)
क्रि० अ० [सं० सम् √ वृ > संवरण (= व्यवस्थित करना)] १. बनाना। दुरुस्त होना। २. सजना। अलंकृत होना।
⋙ सँवरना पु (२)
क्रि० स० [सं० स्मरण, हिं० सुमिरना] याद करना। उ०—सँवरौं आदि एक करतारू।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सँवरा ‡
वि० [हिं० साँवला] दे० 'साँवला'।
⋙ सँवरिया
वि० [हिं० साँवला + इया (प्रत्य०)] दे० 'साँवला'। उ०— बिरिख सँवरिया दहिने बोला।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सँवाँ † (१)
संज्ञा पुं० [सं० श्यामाक] साँवाँ नाम का अन्न।
⋙ सँवाँ † (२)
वि० [सं० समान] समान। सदृश। तुल्य।
⋙ सँवाग †
संज्ञा पुं० [हिं० स्वाँग] रूप बदलना। भेष बदलना। उ०— भीख लेहि जोगिनि फिर माँगू। केतन पाइय किए सँवागू।—पदमावत, पृ० ६०५।
⋙ सँवार पु † (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० संवाद या स्मरण] हाल। समाचार। उ०—पुनि रे सँवार कहेसि अरु दूजी। जो बलि दीन्ह देवतन्ह दूजी।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सँवार (२)
संज्ञा स्त्री० [हिं० सँवारना] १. सवारने की क्रिया या भाव। २. एक प्रकार का शाप या गाली। विशेष—कभी कभी लोग यह न कहकर कि 'तुम पर खुदा की मार या फटकार' प्रायः 'तुम पर खुदा की सँवार' कह दिया करते हैं।
⋙ सँवारना
क्रि० स० [सं० सम्वर्णन या संवरण] १. सजाना। अलंकृत करना। उ०—कंठ कठुला नीलमनि अंभोज माल सँवारि।—सूर०, १०।१६९। २. दुरुस्त करना। ठीक करना। उ०—सो देही नित दिखि के चोंच सँवारे काग।—कविता कौ०, भा०, १, पृ० १९७। ३. क्रम से रखना। ठीक ठीक लगाना। ४. कार्य सुचारु रूप से संपन्न करना। काम ठीक करना। मुहा०—बिगड़ी सँवारना = बिगड़ी बात बनाना।
⋙ सँहरना पु
क्रि० अ० [सं० संहार] नष्ट होना। उ०—हैहय मारे नृपजन सँहरे। सो जस लै किन जुग जुग जीजै।—केशव (शब्द०)।
⋙ सँहारना पु
क्रि० स० [सं० संहरण] दे० 'संहारना'। उ०—उहाँ तो खड्ग नरंदइ मारों। इहाँ तो बिरह तुम्हार सँहारों।—जायसी (शब्द०)।